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सोमवार, 10 अगस्त 2020

इंगांराजविवि में एक दिवसीय राष्ट्रीय वेबिनार का आयोजन



अनूपपुर/अमरकटंकइन्दिरा गाँधी राष्ट्रीय जनजातीय विश्वविद्यालय के जनजातीय अध्ययन संकाय, लुप्तप्राय भाषा केंद्र तथा राजभाषा अनुभाग के संयुक्त तत्वावधान में अंतरराष्ट्रीय मूल निवासी दिवस पर रविवार को राष्ट्रीय वेबिनार के आयोजन में कोविड-19 तथा मूल निवासियों की वैमनस्यता विषय रखी गई। जिसमे प्रो.एस.एन.मुंडा, कुलपति, डॉ. श्याम प्रसाद मुखर्जी विश्वविद्यालय रांची तथा प्रो. अन्नपूर्णा नौटियाल, कुलपति, एच. एन. बी. गढ़वाल विश्वविद्यालय, श्रीनगर शमिल रहे।
वेबिनार में इंगांराजविवि के कुलपति प्रो. श्रीप्रकाश मणि त्रिपाठी कहा कि आदिवासी संस्कृति के संरक्षक, संचालक और सृजक है। यह लोग संतोषी, सहज, सौम्य, लोभरहित, अहंकार रहित होते है। सद्जीवन और सहज जीवन इनकी विषेशता है। विश्व भर में लगभग 5000 आदिवासी संस्कृतियॉ है जो 90 से अधिक देशों में विद्यमान है। भारत में लगभग 645 प्रकार की जनजातियां है। इनकी कला एवं संस्कृति अद्भुत है जनजातीय समुदायों के रहन-सहन पर प्रकाश डालते हुए उन्होंने उनकी प्रतिरोधक क्षमता एवं दीर्घजीवी होने का कारण उनके प्रकृति के समीप होने तथा कंदमूल का सेवन करने को बताया। वर्तमान परिस्थिति में हमारा समाज जनजातीय जीवनशैली से प्रेरित हो सकता है। यह सदैव प्रकृति और परिवेश को समद्घ रखने वाले लोग है। इनकी वंदना तो स्वयं भगवान राम ने की थी। राम के आदर्शो का अनुकरण कर हम समाज के सभी वर्गो को एक साथ लेकर चले और एक आदर्ष, सामाजिक रूप से समरस और सशक्त भारत का निर्माण करें।   
लुप्तप्राय भाषा केंद्र के निदेशक प्रो. दिलीप ङ्क्षसह कहा इंगाँराजविवि तथा उसके परिवेश में निवास करने वाले जनजातीय समूहों के बारे में संक्षिप्त विवरण देते हुए उनकी जीवनशैली पर कोविड-19 के प्रभाव का परिचय दिया।

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