अनूपपुर। पुत्र की दीर्घायु के साथ उसकी सुख-समृद्धि की कामनाओं वाला भाद मास के
शुक्ल पक्ष की षष्ठी तिथि को मनाए जाने वाला व्रत हरषष्ठी छठ निर्जला व्रत रविवार
को कोरोना संक्रमण के बीच श्रद्धाभाव के साथ जिलेभर में मनाया गया।
भाद मास के
शुक्ल पक्ष की षष्ठी तिथि को मनाए जाने वाले इस व्रत को माताओं ने विधि-विधान के
साथ अपने ईष्टदेव के विशेष पूजन अर्चन उपरांत शाम को पसही के चावल और दही के सेवन
के साथ समाप्त किया। मान्यताओं के अनुसार माताएं इसे अपने पुत्र की लम्बी आयु के
साथ उसकी समृद्धिओं की प्रार्थनाओं के लिए करती है। जबकि धार्मिक ग्रंथ स्कंद
पुराण में वर्णित है कि हरछठ देव धर्म स्वरूप नंदी बैल का पूजन कर भगवान शिव की
सवारी नंदी बैल को धर्म का स्वरूप मान जिसकी पूजा कर माताएं अपने पुत्र के लिए
लंबी उम्र की कामना करती हैं।
इस व्रत में
मिट्टी से भगवान की मूर्ति का निर्माण कर बांस की लकडी, छुईला
के पत्ते, कांस एवं महुआ के पत्ता को सजा कर विधि-विधान से पूजा अर्चना
करते हुए अपने संतान की लंबी उम्र और उनकी सुख समृद्धि की ईश्वर से की।
बताया जाता
है कि हरछठ पूजा में पांच वृक्षों जिसे पंच वृक्ष कहा जाता है के पांच वृक्षों के
तना को मिलाकर जिसे छूला डांडी, छूलजारी के नाम से भी जाना जाता
है में महुआ, छूला, बेर की टहनी, कांश,
बांस
वृक्ष को घर के आंगन में बावली या तालाब नुमा स्थान बनाकर स्थापित कर सप्त धान
जिसे सतनजा या सतदाना भी कहते हैं धान, चना, गेहूं,
ज्वार,
मक्का,
जौ,
बाजरा
का प्रसाद बनाया जाता है। अन्य पूजन सामग्री के साथ-साथ घरों में कई प्रकार से
प्रसाद बनाकर बांस की टोकरी मिट्टी के छोटे-छोटे कुल्हड़ में पूजन सामग्री को रख
कर पूजन किया जाता है। जिसमें विशेष रूप से वरुण देव पंचव्रछ एवं सप्त धान का
विशेष महत्व होता है, जिनसे यह पूजा संपन्न होती है। पूजा के
बाद माताएं पसही चावल जो बिना हल के उगे चावल बना कर भैस के दही या दही का सेवन
प्रसाद के रूप में करती है। हालांकि यह क्षेत्रीय विधाओं के आधार पर अलग अलग होते
हैं।
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