अनूपपुर। जन जातीय अस्मिता को
बचाने एवं अपने संवैधानिक अधिकार पाने के लिए पुष्पराजगढ़ क्षेत्र के महरा समुदाय
ने जन जातीय वर्ग मे शामिल कराने हेतु बुधवार को विधायक फुंदेलाल सिंह मार्को को
ज्ञापन सौंपा गया।
ज्ञापन में बताया की म.प्र. गठन
के पूर्व एवं संविधान लागू होने के पूर्व
सेंट्रल प्रावीसस एंड बरार राज्य के 31 मार्च 1949
के
राजपत्र मे आदिवासी की सूची मे कृ 69 पर दर्शाया गया है, 26 जनवरी
1950 को
भारत का संविधान लागू होने के बाद म.प्र. गजट 8 दिसंबर 1950
मे
भी महरा को आदिवासी सूची मे कृ. 69 मे परिभाषित किया गया है, इसके
बाद जन जातीय वर्ग से महरा जाति कैसे विलोपित हो गई, जो
आश्चर्यजनक है। यह समुदाय आदिवासी वर्ग का अहम हिस्सा होते हुए भी अपने वास्तविक
एवं संवैधानिक अधिकार के लिए संघर्ष करता रहा है। लेकिन प्रशासनिक त्रुटि के कारण
अनुसूचित जाति मे शामिल कर दिया गया। जिससे समाज को अपुर्णणीय क्षति हुई है। महरा
समाज आदिकाल से म.प्र. मे निवास कर रही है इस जाति की रहन-सहन, खान-पान,
वेश-भूषा,
तीज-त्यौहार
के साथ समस्त सामाजिक, धार्मिक क्रियाकलाप जन जातियो के सदृश
है। सरकार से आरक्षण की मांग को लेकर मध्यप्रदेश मे महरा जाति को किस आधार पर
अनुसूचित जाति मे जोड़ा गया है, जो सोचनीय विषय है। अनुसूचित जाति मे
शामिल करने का प्रमुख आधार अस्पृश्यता होती है। महरा जाति के साथ कभी भी छुआ छूत
नही किया जाता रहा है। मध्यप्रदेश के महरा जाति को महार समझकर अनु जाति मे शामिल
किया गया है, जबकि महरा जाति एक स्वतंत्र जाति है। इसमे कोई मात्रात्मक एवं
उच्चारणगत त्रुटि नही है महरा समाज के लोग कभी अस्पृश्य धंधा नही किए है। इस जाति
का कार्य कृषि एवं मजदूरी करना रहा है। उक्त संबंध में ज्ञापन सौपते हुए
मध्यप्रदेश महरा जाति विकास संगठन के अध्यक्ष पूरन चंदेल, सचिव बब्बू
प्रसाद चंद्रवंशी, अरुण कुमार महरा, मुकेश कुमार महरा, जनपद
सदस्य पुष्पराजगढ़ के साथ समस्त महरा समाज के लोगों की उपस्थिति रहे।
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