कोरोना का
असर कम बिकवाली में परिवार का भरण पोषण हो रहा कठिर्न, संकट से
उभरने लगेंगे महीनों
अनूपपुर। कोरोना संक्रमण का प्रभाव व्यापार जगत को सबसे अधिक प्रभावित किया
है, जिसमें
सबसे अधिक प्रभावित असंगठित क्षेत्र के श्रमिक, जिनके घर का
खर्चा प्रतिदिन मेहनत के बाद ही चलता है। इनमें कभी बाजारों में फुटपाथों पर तो
कभी ठेला के माध्यम से गलियों में फेरी लगाकर सब्जी और फल बेचने वालों कोरोबारियों
की तो कोरोना में कमर ही टूट सी गई है। लॉकडाउन के कारण जहां पूरी दुनिया घरों में
कैद है, ऐसी स्थिति में जान जोखिम और परिवार के भरण पोषण की जिम्मेदारी
सम्भाले दर्जनों सब्जीबाला और फल ठेला पर घर-घर लोगों को पहुंचाने के काम में जुटे
है। लेकिन संकट की इस घड़ी में जहां जान पर बात आ पड़ी है वहीं बाजार में सब्जियों
और फल की कम आवक के साथ ग्राहकों की कम मांग ने इनके परिवार के जीवनयापन को
परेशानियों में डाल दिया है।
प्रशासन के
निर्देश में ठेला पर प्रतिदिन सुबह 9 बजे से दोपहर 12 बजे
तक सब्जियों और फल लेकर वार्डो में बेचने वाले संतोष महरा का कहना है कि इस कोरोना
में उनका कारोबार बुरी तरह प्रभावित हुआ है। लोगों के पास रोजगार के साथ आय के
साधन भी फिलहाल नहीं है। उसके बाद बाजार की सारी दुकानें बंद है, वाहनों
की कम संख्या में आवाजाही हो रही है। जिसके कारण उनकी मांगों के अनुसार सब्जियां
भी उपलब्ध नहीं हो पा रही है। जो उपलब्ध हो रही है वह महंगा है, जिसे
सुनकर ग्राहक भी खरीदी में हाथ खींच रहे हैं। थोक व्यापारियों का थोड़ी बहुत कर्ज
भी आ रहा है। इसमें दो तरह की परेशानियां बनती है, एक महंगाई के
कारण शाम तक सब्जियां बच जाती जो खराब हो जाती है, वहीं कम मांग
पर आय कम होता है। जिसमें सब्जियों के मंगवाने तथा बेचने के उपरांत मुनाफा शून्य
मालूम पड़ता है। दिनभर में ५० - ७० रु. सब कुछ काट कर मिल जाते है। शासन द्वारा
दिया जा रहा राशन से ही परिवार का भरण पोषण किया जा रहा है। उनका कहना है कि अगर
लॉकडाउन की अवधि बढ़ती है या हटती है तो पूर्व की तरह कारोबार करने और आय अर्जित
करने में कुछ माह का समय लगेगा।
फल का हाथ
ठेला लगाने वाले दान बहादुर राठौर का कहना है कि कारोबार पूरी तरह टूट सा गया है।
सभी फल बाहर से आते है जो नामात्रा के लिए
आ रहे है। लगातार फलो की आवक न होने से दाम बढ़े है जिससे ग्रहकी कम होती है। हम
छोटे कारोबारी दिनभर मेहनत कर जो लाभ आता है उससे ही भविष्य की दीवार खड़ी करते
हैं। लेकिन अभी तो माहभर से कारोबार न के बराबर चल रहा है। प्रशासन के निर्देश में
तीन घंटे में पूरा नगर भी नहीं फेरी लगा पाते हैं। जो खरीदार भी मिलता है वह कम फल
की मांग रखता है। दान बहादुर का कहना है कि पूर्व में दिनभर में 500-700
रूपए का मुनाफा आ जाता था, लेकिन अब घर से ही नुकसान सहना पड़ रहा
है।
वहीं गांव से
किसानों द्वारा सब्जियों को बाजार नहीं उतारने से उनकी रोजी रोटी के अब लाले पड़ते
नजर आ रहे हैं। इसका मुख्य कारण यह भी है कि अब पूर्व की भांति लोगों के पास
पर्याप्त पैसे और काम भी नहीं है। जब काम ही नहीं होगा तो बिना पैसे खरीदारी भी
कैसे करेंगे। सब्जी कारोबारियों ने बताया कि सरकार ने किसान, गरीब
परिवारों के लिए राशन के साथ अन्य राहत अनुदान दिया है, लेकिन हम
छोटे कारोबारियों के लिए अबतक किसी प्रकार की मदद की घोषणा सरकार ने नहीं की है।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें