जिला मुख्यालय की स्थिति दिखा
रही आईना
अनूपपुर। विकास की बात तब बेमानी लगने
लगती है जब उसे दिशा देने वाले ही मौन हो जाते है और उसका खामियाजा आमजन को तमाम
प्रकार की पेरशानियो का सामना कर चुकाना पड़ता है। ऐसा ही हाल इन दिनों जिला
मुख्यालय का है। चल रहे सड़क निर्माण की गुणवत्ता मापदण्डो मे कितनी खरी है यह तो
कार्य कराने वाले विभाग के इंजीनियर ही जान सकते है लेकिन जो सामने दिखाई पड़ रहा
है इसमे भ्रष्टाचार से इंकार नही किया जा सकता। भारी भरकम वाहनो के निकलने वाले इस
मार्ग का निर्माण अभी पूरा नही हो सका है लेकिन सड़को मे दरारे खुल कर दिखाई देने
लगी है। युवाओ ने कई बार उड़ते धूल के गुब्बारों के विरोध मे मोर्चा भी खोला
प्रशासन ने सोची समझी चाल के तहत कुछ दिन पानी का छिड़काव करवाया लेकिन वह ढाक के
तीन पात वाली कहावत साबित हुई।
सड़को के निर्माण का कार्य कछुआ
गति से चलने के बाद भी समय अंतराल मे रूक जाता है। जब भी किसी अधिकारी या
जनप्रतिनिधियो से बात की जाती है तो वही रटा -रटाया जवाब मिलता है ठेकेदार ने भुगतान
न होने के कारण कार्य रोक दिया है। जल्द भुगतान कर कार्य शुरू कराया जायेगा।
जनप्रतिनिधियो से इस मामले मे बात करने पर जबाव सामने आता है कि मै अधिकारियो से
बात करता हूं और कार्य को गति जल्द दी जायेगी। ठेकेदार कहता है अत्याधिक कमीशन
मांगा जा रहा है और न देने के कारण समस्यायें खड़ी हो रही है। जनता को इन जवाबो से
कोई सरोकार नही उसे कार्य चाहिये। यही हालात रहे तो जनता कभी भी सड़को पर आ सकती
है।
किसी भी स्थान पर सड़कों का
निर्माण कार्य करने वाले ठेकेदार को विभाग द्वारा भले ही निर्देश दिये जाते है कि
जब तक कार्य पूर्ण न हो जाये उक्त क्षेत्र मे सतत पानी का छिड़काव करना होगा।
लेकिन ठेकेदार अपनी मदमस्त चाल के आगे निर्देशो की कोई परवाह नही करता। निर्माण
कार्य के दौरान यदा कदा ठेकेदार ने हो-हल्ला मचाने पर पानी का छिड़काव किया होगा
अन्यथा धूल के गुब्बारो के बीच आमजन को विभिन्न प्रकार की स्वास्थ्य संबंधी
समस्याओ को झेलने विवस होना पड़ता है।
३ सालो से अमरकंटक तिराहा से
लेकर तुलसी महाविद्यालय तक चल रहे सड़क निर्माण कार्य की गुणवत्ता तो स्वयं सड़को
मे आई दरारें बता रही है। निर्माण कार्य पूर्ण अभी हुआ नही है और दरारे पडऩी शुरू
हो गई। लोक निर्माण विभाग गुणवत्ता पूर्ण सड़क बनवाने को लेकर अपनी पीठ थपथपा रहा
है। निर्माण के दौरान ठेकेदार द्वारा कहीं पर भी दिशा सूचक बोर्ड नही लगाया जाता
आधी अधूरी सड़क हमेशा राहगीरो व वाहन चालको को दुर्घटना का शिकार बना लेती हैं। अब
तक सैकड़ो लोग दुर्घटना का शिकार हुये है। किसी को भी न तो विभाग के द्वारा न ही
ठेकेदार के द्वारा क्षतिपूर्ति दी गई है। यदि जिम्मेदार इस प्रकार के
कार्य को ही विकास कहते है तो फिर समाझ आसान है कि एक ही थाली के सब चट्टे-बट्टे
है। शासन द्वारा विकास के लिए जो राशि दी जाती है वह ऐसे ही कमीशन और भ्रष्टाचार
की भेंट चढ़ जाती है। तो फिर विकास के कार्य कितने मजबूती से होंगे समझा जा सकता
है।
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