मनोज व्दिवेदी
*** अक्सर क्षेत्र मे भ्रमण के दॊरान जब देर रात्रि घर वापस लॊटता हूं तो यह महसूस होता है कि इलाहाबाद ,कटनी ,रीवा जाने वाले मार्ग में रेत से भरे ट्रकों की संख्या काफी ज्यादा हो गयी है। फिर सवाल कॊंधता है कि रात्रि मे नदियों से रेत निकालने के लिये जो मजदूर कार्य करते हैं , क्या दिन मे वे आराम करते है ? लोगों से पूछने पर पता चला कि रेत निकालने ,ट्रकों , बडे बडे हाईवा मे रेत भरने का कार्य मजदूर नही ,मशीने कर रही हैं।
आज अभी कुछ देर पूर्व मोबाइल का नेट आन किया तो हजारों मैसेज बिन चाही बारिश की तरह तड तड बरसने लगे। लगभग पांच सात मिनट बाद मोबाइल के स्थिर होने पर फेसबुक पर अपने पत्रकार मित्र संतोष शुक्ला द्वारा शेयर किये गये एक पोस्ट ने ध्यानाकर्षण किया। बडी बडी मशीने नर्मदा मे उत्खनन कर रही हैं। बडे बडे वाहन रेत परिवहन मे लगे दिख रहे हैं। यह भयावह है,खतरनाक है। रेत के खेल से कुछ परिवार भले ही धन्नासेठ बन जाएं,कुबेर ही बन जाएं .. आशंका यह है कि कुछ लोगो की लालच ,कुछ की करनी का फल आने वाले वर्षों मे देश की पीढियों को भोगना होगा।
मैं नही जानता कि रेत के खेल से होने वाली आमदनी के कितने व कॊन कॊन भागीदार हैं। या यह कि इसे न रोक पाने मे माईनिंग विभाग अक्षम होने की कितनी फीस प्रतिमाह लेता है ? या यह कि संबंधित थाना क्षेत्रों मे नियुक्त पुलिस कितना कमा लेती है ? या हमारे नेता,पत्रकार, समाजसेवी तमाम तरह के ये...वो.. टाईप अन्य लोगो कॊ न देखने का कितना मिलता होगा या नही मिलता होगा.... तो जो नदियों का सीना छलनी कर पर्यावरण को गंभीर नुकसान पहुंचा रहे हैं ,उनकी दिलेरी किसकी सह पर है। मुझे तो आशंका है कि बेतरतीब मशीनी खुदाई से नदियों को गंभीर नुकसान हो रहा है। उनकी धमनियों- शिराओं मे रक्त सूखने लगा है। वे ऐनिमिक हो रही हैं। उनमे पानी धारण करने की क्षमता धीरे धीरे कम हो रही है। समाज सेवी संत जग्गी वासुदेव की अपील व उसके बाद राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ महाकॊशल प्रान्त के प्रचार प्रमुख रामकृष्ण जी की पत्रकार वार्ता के बाद नदी संरक्षण के लिये " रन फार रीवर्स " अभियान के तहत मैने जिला सामाजिक समरसता प्रमुख राजेन्द्र तिवारी के साथ लगभग आठ दिन कोतमा की जीवन दायिनी नदी केव ई के संरक्षण जागरुकता हेतु लगभग १२ गांवों मे " रन फार केव ई " अभियान चलाया। इस दॊरान लोगों ने माना कि जिले की प्रमुख नदियों नर्मदा, सोन,जुहिला,केव ई के तट सिकुड रहे हैं। उनकी जल धारण क्षमता कम हो रही है। वह समय से पहले सूखने लगी हैं।
यह बहुत खतरनाक ,चिन्ता का विषय है। आज ही पिपरिया के राजकुमार पटेल ने बतलाया कि पिपरिया के सभी बोर सूख गये। पांच दस मिनट चल कर वे हवा फेंक रहे है। स्थिति खराब है,पलायन के लिये लोग बाध्य हो सकते हैं। जाहिर है नदियों के अवैध मशीनी उत्खनन,तालाबों पर अवैध कब्जे, कंक्रीट सडकों के निर्माण से जल स्रोत सूख रहे हैं। अब मामला पीढी दर पीढी का न होकर दस बीस वर्ष पर आकर टिक गया है। आपके नाती पोतों की कॊन कहे.. आपके बच्चों को गंभीर जलसंकट का सामना करना पडेगा।
जरुरत इस बात की है कि प्रशासन का मुंह ताकने की जगह गांव के गांव जाग जाएं। शहरों की नींद टूट जाए । अवैध उत्खनन मे लिप्त लोगों को रोकना होगा । नदी , तालाब , कुंओं को पुनर्जीवित किया जाए। अन्यथा वह दिन दूर नही जब जल संकट से चाह कर भी हम निपट न पाएं व पानी के लिये युद्ध सी स्थिति बनजाए।
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