राजेश शुक्ला की खरी खरी
अनूपपुर। अपने
12 वर्ष के शासनकाल में ऐसे बहुत से अवसर आए हैं जब जनता ने यह महसूस किया कि क्या
मुख्यमंत्री शिवराज सिंह ब्राह्मण विरोधी हैं? एक के बाद एक घटते घटनाक्रम से प्रदेश में यह संदेश गया कि अपनी कुर्सी बचाए
रखने के लिये वे दिग्विजय सिंह की राह पर चल पडे हैं। 2002-03 में दिग्विजय सिंह
की कार्यशैली ठीक वैसी ही थी जैसी अब शिवराज की है। केन्द्र को धमकाना, जातिगत द्वेष पैदा करना, सत्ता-पार्टी से स्वयं
को बडा साबित करना ये दोनो नेताओं के मिलते जुलते आचरण हैं। इसलिये 2018 विधानसभा
चुनाव मे भाजपा यदि विधायकों,नेताओं के आचरण से
खतरे मे है तो उससे भी बडा खतरा मुख्यमंत्री का व्यवहार है। शिवराज सिंह चौहान, नन्दकुमार चौहान तथा प्रदेश महामंत्री अजय प्रताप सिंह पर ब्राह्मणों की
उपेक्षा,एक जातिवर्ग के पोषण का आरोप ऐसे ही नही
लगता रहा है। नजदीक के कुछ वर्षाे मे पार्टी द्वारा जितनी प्रशासनिक-संगठनात्मक
नियुक्तियां हुई है,उनमे एक जाति विशेष को
लक्ष्य किया गया। प्रदेश मे चौहान के कार्यकाल मे लक्ष्मीकांत शर्मा,कैलाश विजयवर्गीय,गोपाल भार्गव, रघुनन्दन शर्मा,अनूप मिश्रा, नरोत्तम मिश्रा,विनोद गौंटिया के साथ
मालवा ,महाकौशल,विन्ध्य क्षेत्र के तमाम ब्राह्मण चेहरों को उपेक्षित किया गया। राजेन्द्र
शुक्ला, संजय पाठक,दीपक जोशी जैसे चेहरे चुप रहो-छुप रहो कि नीति पर चलते हुए अपनी कुर्सी बचाए
हुए हैं। पार्टी सूत्रों की माने तो संघ -भाजपा मे समन्वय के लिये लाए गये सुहास
भगत,अतुल राय भी नन्दकुमार चौहान- शिवराज
सिंह-अजय प्रताप सिंह के सामने असहाय दिखे। नन्दकुमार चौहान की विदाई के साथ नये
दावेदारों मे प्रमुखता से सामने आए ब्राह्मण चेहरों नरोत्तम मिश्रा, वी.डी.शर्मा का मुखर विरोध स्वमं मुख्यमंत्री ने किया। ऐसा नही कि वे सिर्फ
ब्राह्मणों का ही विरोध कर रहे हैं, अध्यक्ष के लिये आदिवासी स्वाभिमान का प्रतीक फग्गन सिंह कुलस्ते से उनका
विरोध जगजाहिर है। 2013 चुनाव के पूर्व आदिवासी वोट बैंक को लुभाने के लिये
कुलस्ते का चेहरा सामने कर आदिवासी स्वाभिमान यात्रा तो निकाली गयी लेकिन जब बात
अध्यक्ष की हुई तो नन्दकुमार का नाम आगे बढा दिया। कोल समाज का बडा चेहरा रामलाल
रोतेल एक उदाहरण है,प्रदेश मे जातिगत
ढांचे को जितना नुकसान शिवराज ने पहुंचाया है उसकी भरपाई निकट भविष्य में होती नही
दिख रही। आरक्षण के पक्ष मे माई के लाल वाला भाषण हो या दो अप्रैल को दलितों का हिंसक
प्रदर्शन, दस अप्रैल को बिना अगुवाई के
स्वत:स्फूर्त सवर्ण बन्द का मामला हो या अब संगठन अध्यक्ष के चयन मे ब्राह्मणों का
खुला विरोध,यह सब प्रदेश की जनता को शिवराज सरकार
का खुला संकेत है कि भाजपा में ब्राह्मणों के लिये कोई जगह नही है। इसकी पुष्टि
गोपाल भार्गव,हितेष बाजपेयी के बयानों से हो रहा है
जो इस विरोध की तपिश को महसूस कर रहे हैं। स्पष्ट कहें तो शिवराज आज भाजपा की
मजबूरी हो गये हैं ताकत नहीं। गले मे लटका ऐसा पत्थर जिसे समय पर न उतार फेंका गया
तो भाजपा का डूबना तय है।
आपने सही लिखा,किसी भी पार्टी लगातार सत्ता में रहना जनता के हित मे उचित नही,परिवर्तन जरूरी है।आज समय है बदलाव का।
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