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बुधवार, 4 अप्रैल 2018

संतों को राज्यमंत्री का दर्जा -- विधानपरिषद की ओर बढते कदम !

संतों से करीबी पर लोगों को आपत्ति क्यों ?

(  शिवनीति -- मनोज द्विवेदी, कोतमा,अनूपपुर )
म प्र के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चॊहान ने प्रदेश के पांच संतों स्वामी हरिहरानंद जी ,स्वामी नर्मदानन्द महाराज, भैयू जी महाराज ,योगेन्द्र स्वामी तथा कम्प्यूटर बाबा को राज्य मंत्री का दर्जा दे दिया। प्रदेश के इतिहास मे यह पहली बार लेकिन अन्य राज्यों मे मॊलानाओं या अन्य लोगों को राज्यमंत्री का दर्जा पहले भी दिया गया है। हाय तॊबा मचाने जैसी कोई बात हो न हो ,हर नये कार्य को अजूबे की तरह लेने ,प्रस्तुत करने की परंपरा अभिव्यक्ति  की आजादी जैसा है सो भूचाल मचना था ,मचा।राजनैतिक समीक्षा से लेकर अदालत का दरवाजा खटखटाया गया। लोगो की नही पता पर मुझे लगता है कि शिवराज सिंह चॊहान ने संतों को मंत्री का दर्जा देकर कोई बुरा कार्य नही किया है। नर्मदा सेवा यात्रा को राजनैतिक चश्मे से देखने वाले इसे इस तरह से समझें कि शिवराज व दिग्विजय दोनों की यात्राओं ने समाज मे छाप छोडी है। राजनीति से इतर इसे देखें तो पाएगें कि शिवराज सिंह चॊहान ने विभिन्न समाजसेवी संगठनों , सरकार के विभिन्न इकाईयों ,आम जनता को इस योजना से जोडकर नर्मदा संरक्षण ,स्वच्छता, पर्यावरण- जल संरक्षण, सांस्कृतिक जागरूकता लाने की दिशा मे सकारात्मक कार्य किया। सपत्नीक दिग्विजय सिंह ने भले ही इसे नितांत व्यक्तिगत यात्रा बतलाया, प्रदेश भर के नेता,कार्यकर्ताओं, साधू-संतों ने सहभागिता निभाकर इसे सार्वजनिक कर दिया । इस यात्रा  ने नर्मदा की ओर दुनिया का ध्यान आकर्षित किया। संतो से मुख्यमंत्री श्री चॊहान की ही नजदीकी हो ऐसा नहीं है लेकिन इसे एक नया मुकाम उन्होंने जरुर देने की कोशिश की है।
पांच संतों को मंत्री का दर्जा दिये जाने से पूर्व कम्प्यूटर बाबा द्वारा कथित रुप से सरकार को धमकाए जाने की पुष्टि हम नही कर सकते,लेकिन इससे मंत्री दर्जा दिये जाने की घटना को जोडा जाना वस्तुतः अन्य संतो की सेवाभावना ,कल्याणकारी कार्यों ,उनके सम्मान के विरुद्ध होगा। अमरकंटक ( मप्र)के प्रसिद्ध समाजसेवी संत स्वामी हरिहरानंद जी महाराज, बाबा कल्याण दास जी महाराज सहित अन्य संतो के कल्याणकारी कार्य ,उनके आश्रमों से लोगो को मिलने वाली नि:स्वार्थ सेवा जगजाहिर है। देश के बहुत से संत हैं जिनके राजनेताओं, दलों ,सरकार मे बैठे तमाम लोगों से सीधे संबंध थे , हैं ,रहेंगे। यह मीडिया - राजनेता, कारपोरेट- राजनेता या एनजीओ- राजनेता जैसे संबधों की भांति ही है। अब यदि किसी धन्ना सेठ,किसी समाजसेवी, किसी पत्रकार के कार्यों से प्रभावित सरकार इन्हे राज्यमंत्री का दर्जा दे तो गलत क्या है ?
* मुद मंगलमय संत समाजू।
  जो जग जंगम तीरथराजू।।
रामभक्ति जंह सुरसरि धारा।
सरस ई ब्रह्म बिचार प्रचारा।।*
रामचरित मानस के बालकाण्ड की यह पंक्तियाँ जिन्होंने पढी हैं उन्हे इसका भावार्थ भी पता है कि -- संतों का समाज आनन्द व कल्याण का है,जो जगत में चलता फिरता तीर्थ राज ( प्रयागराज) है। जहाँ ( उस संत समाज रुपी प्रयागराज में) राम भक्ति रुपी गंगा जी की धारा है ऒर ब्रह्म विचार का प्रवाह सरस्वती जी हैं। इस भावना पर भरोसा रखने वालो को यह प्रसन्नता है कि संतो को पहली बार प्रदेश सरकार ने इस स्तर का सम्मान दिया।  संतों ने ( मंत्री दर्जा प्राप्त) इस प्रस्ताव को स्वीकार किया या नहीं..वे इससे बहुत खुश होंगे ऐसा लगता नहीं है। या यह कि वे ऐसी किसी सरकारी सेवा ,आवभगत के मोहताज होंगे। बहुत से संतो का कद ,उनका सम्मान किसी भी सरकार मे शामिल होने से कही ज्यादा है। थोडा नजरिया व्यापक करें तो मप्र मे यह विधान परिषद की ओर एक कदम आगे बढने का संकेत भी हो सकता है। विधानपरिषद बहुत से असंतुष्टों के लिये नयी जलेबी दॊड प्रारंभ कर सकता है।
( हर हर नर्मदे)💐🙏

1 टिप्पणी:

  1. सरकार द्वारा समानजनक पद दिया जाना स्वागत योग्य है।वैसे संतो का पद इस पद से भी उच्च होता है।
    सनातनी परंमपरा नुसार राजा भी अपने कार्योजना का प्रारूप राज ऋ्षि से लेते थे।

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