इंगांराजवि
में जनजातीय दर्शन पर कार्यशाला प्रारंभ
अनूपपुर। इंदिरा
गांधी राष्ट्रीय जनजातीय विश्वविद्यालय अमरकटंक में सोमवार से मध्य भारत के
जनजातियों पर आधारित कार्यशाला प्रारंभ हुई। कार्यशाला में जनजातीय दर्शन को
बहु-उपयोगी बताते हुए वर्तमान समय में इसे उच्च शिक्षा और शोध के पाठ्यक्रम का भाग
बनाने का सुझाव दिया गया। नार्थ ईस्टर्न हिल यूनिवर्सिटी के प्रो.बी.के. अग्रवाल
ने कहा कि जनजातियों का दर्शन विकसित समाज के दर्शन से कई मायनों में अलग है। अभी
तक इसे भारतीय दर्शन में उचित स्थान नहीं मिल सका है। यदि इस पर अध्ययन और शोध
किया जाए तो जनजातियों की कई प्रकार की विचारधाराओं और उनके सामाजिक मूल्यों को
समझन में मदद मिल सकती है। उन्होंने जनजातीय दर्शन को पाठ्यक्रम में उचित
प्रतिनिधित्व देने का सुझाव दिया। बस्तर, छत्तीसगढ़
के प्रगतिशील किसान डॉ. राजा राम त्रिपाठी ने कहा कि जनजातियों की कई परंपराओं से
विकसित समाज प्रेरणा ले सकता है। उनके द्वारा महिलाओं को समाज में दिया गया स्थान
हो या प्रकृति के साथ तारतम्य बनाकर स्वस्थ रहना और कई बीमारियों को दूर करने वाली
दवाइयां बनाना इसका उदाहरण हैं। उन्होंने प्रकृति की भाषा और क्षमता को पहचान कर
इसे अपने जीवन का अभिन्न भाग बना लिया है। कुलपति प्रो. टी.वी. कटटीमनी ने
जनजातियों के ज्ञान को सहजने के लिए हर संभव कदम उठाने का आश्वासन दिया। उन्होंने
कहा कि विभिन्न परियोजनाओं के माध्यम से जनजातियों के ज्ञान को संरक्षित कर इसका
लाभ समाज तक पहुंचाने का प्रयास किया जाएगा। निदेशक (अकादमिक) प्रो. आलोक श्रोत्रिय
ने जनजातियों की प्रकृति के साथ तारतम्यता का उल्लेख करते हुए कहा कि इसके पीछे
उनकी पीढ़ी दर पीढ़ी सहेजा गया ज्ञान है जो उनके जीवन को आज भी दैवीयकरण और
मानवीयकरण करने में मदद देता है। इसी वजह से वे जीवन में संसाधनों का अभाव होते
हुए भी वे प्रकृति के प्रति प्रशंसा का भाव रखते हैं। कार्यशाला का आयोजन जनजातीय
अध्ययन विभाग और इंडियन काउंसिल ऑफ फिलोसोफिकल रिसर्च के संयुक्त तत्वावधान में
किया गया। उद्घाटन सत्र का संचालन डॉ. अमित सोनी ने किया। संयोजन डॉ. राकेश सोनी
का है। इस अवसर पर डॉ. नरसिंह कुमार की लिखी और संपादित दो पुस्तकों का भी विमोचन
हुआ।
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