अनूपपुर। साधक, संन्यासी और स्वामी थे,साधक अपने लक्ष्य पर चलते हैं,
संन्यासी
निजी स्वरूप को छोड़कर पूरे मानव जाति के हो जाते हैं और स्वामी सकल विश्व का
संरक्षक होते हैं। बुधवार को इंदिरा गांधी राष्ट्रीय जनजातीय विश्वविद्यालय अमरकंटक
में शिक्षा संकाय द्वारा दायरे से परे स्वामी विवेकानंद के शैक्षिक विचार विषयक दो
दिवसीय संगोष्ठी एवं कार्यशाला समापन में कुलपति इंदिरा गांधी राष्ट्रीय जनजातीय
विश्वविद्याल प्रो.प्रकाश मणि त्रिपाठी ने अध्यक्षीय उद्बोधन में स्वामी विवेकानंद
के तीन रूपों की चर्चा करते हुए कहा। उन्होंने स्वामी विवेकानंद के विचारों को
अपनाने की प्रेरणा छात्रों की दी।
कुलपति पंडित सुंदर लाल शर्मा (मुक्त)
विश्वविद्यालय, छत्तीसगढ़ प्रो.बंश गोपाल सिंह ने कहा कि यह बड़े हर्ष का विषय
है कि स्वामी विवेकानंद के विचारों को वर्तमान शिक्षा नीति में जगह दी गई है। यह
हमारी शिक्षा नीति के लिए एक बहुत ही सकारात्मक कदम है। उन्होंने बस्तर और कोटा,
रायपुर
का उदाहरण देते हुए कहा कि कई पश्चिमी सिद्धांत की प्रमाणिकता के उलट आदिवासी
बच्चे हर क्षेत्र में बेहतर करने की काबिलियत रखते हैं। प्रो.पवन शर्मा, राजनीति
विज्ञान चौधरी चरण सिंह विश्वविद्यालय मेरठ ने कहा कि वर्तमान समय की शिक्षा
व्यवस्था को पुरानी शिक्षा व्यवस्था के साथ सामंजस्य स्थापित करने की जरूरत है।
ब्रिटिश हुकूमत ने हमारी शिक्षा व्यवस्था को ध्वस्त कर दिया था जिसे स्वामी
विवेकानंद ने वापस खड़ा करने में योगदान दिया। संगोष्ठी में प्रो.जी.डी.शर्मा
कुलपति,अटल बिहारी वाजपेयी विश्वविद्यालय बिलासपुर, प्रो.जी.सी.नंदा,
आई. सी.एस.एस.आर.फेलो, उत्कल विश्वविद्यालय, ओडिशा
ने स्वामी विवेकानंद के विचारों से छात्रों और शोधार्थियों को आलोकित किया। आयोजित
संगोष्ठी के छ तकनीकी सत्रों में 38 शोधार्थियों और शिक्षकों के द्वारा स्वामी
विवेकानंद के विभिन्न पहलुओं से संबंधित शोध पत्रों को प्रस्तुत किया गया। विभिन्न
प्रतियोगिताओं फूड विदआउट फायर, कबड्डी, डांस,
दौड़,
गीत
आदि का आयोजन किया गया। संगोष्ठी में संयोजक शिक्षा संकाय की अधिष्ठाता प्रो. संध्या
गिहर, प्रो.खेम सिंह डहेरिया, प्रो. अजय
वाघ, प्रो.भूमिनाथ
त्रिपाठी, प्रो.तीर्थेश्वर सिंह, प्रो. अजय शुक्ला,प्रो.आलोक
क्षोत्रिय सहित अन्य उपस्थित रहे।
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