गांवों की
फसलों और वनीय जीवन पर पड़ रहा असर
अनूपपुर। विशाखापट्न के आरआर वेंकटनगर गांव में संचालित एलजी पॉलिमर इंडस्ट्री
से 7 मई को जहरीली गैस रिसाव हादसा तथा उनमें दर्जनभर से अधिक लोगों की मौत से देश
एक बार फिर से सिहर उठा। घटना ने वर्ष 1984 भोपाल गैस त्रास्दी की याद दोबारा दिला
दी। इस तरह के देश में अनेक फैक्ट्रियां रहवासी क्षेत्र के बीच संचालित हो रही है।
जिससे हादसों की आशंका बनी रहती है। अनूपपुर जिले के जैतहरी विकासखंड के मुर्रा
गांव में 1200 मेगावाट क्षमता वाली संचालित हिन्दुस्तार पावर प्लांट(मोजरबेयर
कंपनी) में भी 16 मई 2016 को बायलर फटने की घटना सामने आई। जिसमें दर्जनभर लोग
गम्भीर रूप से झुलस गए थे। इनमें एक की मौके पर मौत हो गई जबकि चार अन्य उपचार के
दौरान असामायिक मौत के शिकार बन गए। इस हादसे में टरबाईन और बायलर के बीच पाइप में
कोयला के कणों के जमा होने तथा उसकी निकासी नहीं होने अधिक तापमान होने के कारण
घटी थी। हालांकि इस घटना के दौरान भी कंपनी के अधिकारियों ने इसे सुधारने का काम
किया था, लेकिन अधिक उत्पादन और मशीनों के प्रति मेंटनेंश में बरती गई
लापरवाही ने दर्जनों की जान को खतरे में डाल दिया था। हिन्दुस्तार पावर प्लांट की
स्थापना को लेकर शुरूआत से ही किसानों और कंपनी प्रबंधकों व जिला प्रशासन के बीच
विवाद की स्थिति रही। वर्ष 2008-09 से जमीन अधिग्रहण और वर्ष 2011 कंपनी चालू करने
के बीच प्रशासनिक अधिकारियों व किसानों के बीच आमना सामना हुआ, जिसमें
भयावह स्थिति बनी थी। हालात यह रहे कि वर्ष 2016 में फैक्ट्री तक बिछाइ जाने वाली
रेल पटरी को लेकर हजारो किसानों ने विरोध प्रदर्शन किया, जिसमें पुलिस
पर पत्थर बरसाए, दर्जनों पुलिसकर्मी और प्रशासनिक अधिकारी घायल हुए थे। इसमें
सैकड़ा से अधिक किसानों के खिलाफ मामला दर्ज कर मुकदमा चलाया जा रहा है। जानकारी
के अनुसार पावर प्लांट के आसपास 8 गांव मुर्रा, बेलिया,
गुआंरी,
अमगवां,
चांदपुर,
क्योंटार,
टकौली,
लहरपुर
सहित चंद दूरी पर नगर पंचायत जैतहरी स्थित है। जहां लगभग 30 हजार की आबादी होगी
है। यहां फैक्ट्री के संचालन के बाद उससे निकलने वाली राखड़ से ये गांव प्रभावित
हुए हैं। फैक्ट्री से निकलने वाला धुंआ दो-तीन किलोमीटर की परिधि क्षेत्र को
प्रभावित करता है। हवा में घुला कोयला के कण, खेतों में
चिमनी से उडकर फैली राखड़ तथा इससे प्रभावित आसपास के पेड़ पौधों को आसानी से देखा
जा सकता है। यहीं नहीं फैक्ट्री से पांच किलोमीटर दूर बह रही सोन नदी में बनाए गए
बांध से नदी की जलधारा भी नौ माह के लिए विलुप्ल सी हो चली है। बारिश के दौरान
मात्र तीन माह ही सोननदी की जलधारा में दोनों किनारों से पानी के बहते देखा जा
सकता। शेष दिनों नदी के बीच हिस्से नाला के रूप में बहती है। लॉकडाउन के दौरान आवश्यक
सेवाओं में शामिल होने के कारण फैक्ट्री शटडाउन नहीं हुई, वहीं मजदूरों
की सुरक्षा के साथ फैक्ट्री पूर्व की लापरवाही का शिकार न हो विशेष टीम द्वारा
लगातार सुरक्षा मानकों के बीच काम ले रहा है।
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