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शनिवार, 30 मई 2020

इंगांराजविवि के कुलपति ने रचा विश्वविद्यालय का कुलगीत

इंगांराजविवि के कुलपति ने रचा विश्वविद्यालय का कुलगीत

अनूपपुर। इंदिरा गांधी राष्ट्रीय जनजातीय विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो.प्रकाश मणि त्रिपाठी द्वारा विश्वविद्यालय के कुलगीत की रचना की। कुलपति ने बताया कि प्रत्येक विश्वविद्यालय का अपना कुलगीत होता है, जिससे विश्वविद्यालय की पहचान उसकी शान और मान का बोधक होता है। कुलगीत में विश्वविद्यालय की उपलब्धियों और स्थापना के उद्देश्य का उल्लेख होता है। कुलगीत किसी भी आयोजन के आरंभ में गाया जाता है। ज्ञात हो कि विश्वविद्यालय की स्थापना वर्ष 2007 में की गई थी, परंतु अभी तक विश्वविद्यालय के पास स्वयं का कुलगीत नहीं था। कुलपति ने इस ओर ध्यान देते हुए स्वयं कुलगीत का सृजन किया। यह कुलगीत आनेवाले समय में विश्वविद्यालय के इतिहास में सबसे बड़ा सांस्कृतिक योगदान होगा।

विश्वविद्यालय के विद्यार्थियों में कुलगीत से विश्वविद्यालय के प्रति प्रेम और ऊर्जा की भावना जागृत होती है। कुलगीत में कुलपति ने अमरकंटक के इतिहास, साहित्य, प्रा.तिक सौंदर्य, संस्कृति, जीवन मूल्यों, चेतना, ज्ञान एवं शोध आदि पक्षों का उल्लेख किया है। कुलगीत लयात्मकता के साथ रचित है और इसकी लयात्मकता इसे विशिष्ट पहचान बनाती है। कुलगीत बनने के बाद पद्मश्री प्रो. राजेश्वर आचार्य (वाराणसी) इसे संगीतबद्घ कर रहे हैं। कुलगीत का वाचन विश्वविद्यालय के सहायक कुलसचिव डॉ. संजीव सिंह द्वारा शैक्षणिक परिषद की बैठक में किया गया।

कुलगीत की कुछ प्रमुख पंक्तियां इस प्रकार हैं

''यह धर्म भूमि, यह कर्म भूमि, जीवन दर्शन की मर्म भूमि

यह ज्ञान भूमि, यह ध्यान भूमि, यह सतत् लक्ष्य संधान भूमि

यह बोध भूमि, यह शोध भूमि, यह ''चरैवतिÓÓ अनुरोध भूमि

यह तत्व भूमि, यह सत्व भूमि, यह मेधा की अमरत्व भूमि

 गुप्त नर्मदा से अभिसिंचित विश्व विदित गुरुधाम।ÓÓ

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