
15 अगस्त फिर वही भाषण,वही राग,फिर वही देश प्रेम के गीत, स्वतंत्रता का इतिहास, कुछ चली आ रही परिपाटी,न जाने क्या क्या इस राष्ट्रीय पर्व की अब यही एक तस्वीर रह गईं है। आइए इतिहास मे कुछ पीछे से आगे वर्तमान तक आने का प्रयास हम इस पावन राष्ट्रीय पर्व पर करे। हम अपने आप से प्रश्न करे कि आजादी के इतने वर्षों बाद हमने क्या पाया उतर है हमने बहुत कुछ पाया,हमने क्या नही पाया उतर है हमने बहुत कुछ नही पाया यह एक स्वस्थ वाद विवाद का प्रश्न हो सकता है।
ब्रिटिश हुकुमत से आजादी की जंग की शुरुवात करने वालों ने कभी इस देश के विभाजन की कल्पना भी नही की होगी,15 अगस्त से ठीक पहले 14 अगस्त आता है जो आ?ादी से पहले देश विभाजन की गवाही का दिन है,धर्म के आधार पर विभाजन आजाद भारत को कुछ ऐसे नासूर दे गया जो आज भी सड़ांध मार रहे है। कहने का तातपर्य हम आजाद नही हुऐ पहले हम धर्म केआधार परविभाजित हुऐ फिर तथाकथित धर्मनिरपेक्ष रूप में स्वतंत्र हुऐ। इतिहास इस कृत्य के लिये जिस किसी को दोषी ठहराता है यह एक अलग प्रश्न है। खैर जो होना था हुआ, इस अखण्ड भारत की नियति मे जो लिखा था वो हुआ ऐसा विचार कर संतोष किया जा सकता है।
समय धीरे धीरे आगे बड़ा योग्य नेतृत्व मिला गलतियां भी हुई,भूल भी हुई लेकिन देश लगातार आगे बड़ा विभिन्न विचारधाराओं के राजनैतिक दलों को सत्ता मे भागीदारी का अवसर जनतां ने दिया किन्तु देश के विकास की दशा दिशा क्या होनी चाहिये थी और क्या हो गई यह विचारणीय प्रश्न है।
देश के नवनिर्माण मे राष्ट्रीयता की भावना जगाने के प्रयास हुऐ,कई चीजों को राष्ट्रीय घोषित किया गया जैसे राष्ट्रीय भाषा,राष्ट्रीय पशु, राष्ट्रीय पक्षी, राष्ट्रीय पर्व, इत्यादि हमने बनाए परंतु बड़े अफसोस की बात है कि हम एक राष्ट्रीय चरित्र का सृजन नही कर पाए।
विडम्बना है कि सत्ता की सांठ गांठ से जो राष्ट्रीय चरित्र बना वह है भस्टाचार बड़े शर्म की बात है कि आ?ादी के इतने बर्षों बाद पंच से लेकर प्रधान मंत्री के पद तक भ्र्ष्टाचार के आरोपों की आंच आई है। देश की सम्पदा की लूट का सिलसिला मुगल काल,ब्रिटिश काल से लेकर आज तक अनवरत चला आ रहा है बस तरीका बदल गया है,हर चुने हुऐ जनप्रतिनिधि के ठाट बाट देख कर इस बात का अंदाज लगाए कि लोकतंत्र की कोटिंग किया हुआ अनेकों राजाओ वाला ये तथाकथित राजतंत्र ही तो है।
वर्तमान सांसदों, विधायकों पूर्व सांसदों, विधायकों को मिलने वाली सुविधाऐ आम जनता को चिढा रही है
सता से बाहर रह कर कुछ और सत्ता मैं आते ही कुछ और उस पर मजबूर जनता सिर्फ दलों की अदला बदली के मकडज़ाल मे फंसी नजर आती है, दूसरी ओर दलों की आपसी समन्वयता यह कि जो भी है वो तेरा है या मेरा है यही राग गा कर मजा कर रही है। कभी हमने इस बात पर विचार किया क्या आजादी दिलाने वाले देश को कैसे राजनैतिक हालात पर छोड़ गए राजनीति सेवा न होकर व्यापार होकर रह गई।
चिंता इस बात की है कि विकल्प क्या है, विकल्प हम सभी को अपने अन्दर खोजना होगा हम सभी को एक राष्ट्रीय चरित्र ईमानदारी ही सर्वोत्तम नीति है वाली बात अपनानी पड़ेगी अगर यह सम्भव हुआ तो यह देश एक बार पुन: स्वर्णडिम युग मे आ सकेगा जहां सबको खुशहाल जिंदगी नसीब होगी। ईमानदारी से चलने का संकल्प इस बार स्वतंत्रता दिवस पर ले एवम अपनी आने वाली पीढ़ी का भविष्य उज्वल बनाए। तब कहीं जा कर वह पीढ़ी कह सकेगी निसंदेह सारे जहां से अच्छा हिन्दोस्तान हमारा।
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