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बुधवार, 3 जून 2020

मोटे अनाज के प्रसंस्करण से बने उत्पाद की मांग अर्थव्यवस्था को दे सकते है गति - कुलपति

कोरोना संकट लौटे श्रमिकों की आजीविका के लिए इंगांराजविवि ने बनाई योजना

अनूपपुर/अमरकटंक औषधीय गुणों से युक्त पारंपरिक फसलों की खेती, प्राचीन (मोटा) अनाज का प्रसंस्करण उद्यम एवं इनके खाद्य उत्पाद हेतु मोटा अनाज खाद्य प्रसंस्करण उद्योग आजीविका के लिए संजीवनी साबित हो सकता है और इससे स्वस्थ, स्वतंत्र व सम्मानजनक स्थिति में स्वरोजगार का अवसर उपलब्ध होगा। बाजार में मोटे अनाज की बढ़ती मांग ने इनकी कीमत भी बढ़ा दी है, वैज्ञानिक अब मोटे अनाज के क्षेत्र में ग्रामीण युवाओं के लिए भविष्य तलाश रहे हैं, मोटे अनाज के प्रसंस्करण उद्यम तथा खाद्य उद्योग में इससे बने उत्पाद की मांग एवं खपत, निर्यात की संभावनाओं में अर्थव्यवस्था को गति देने स्थिति अनुकूल है। इससे गाँव में काफी संभावनाएं बन जाएगी तथा ग्रामीण भारत को आत्मनिर्भर बनाने का यह एक सुदृढ़ आधारस्तम्भ हो सकता है। यदि लोगों को आजीविका के लिए अपने क्षेत्र में ही काम मिलने लगे तो भला घर-परिवार को छोड़कर बाहर कौन जाना चाहेगा। इस कारण औषधीय गुणों वाले पारंपरिक फसलों में खाद्य प्रसंस्करण उद्योग को पल्लवित करने की संकल्प शक्ति के साथ-साथ अनुसंधान शक्ति की भी जरुरत है। अनूपपुर, डिंडौरी, गौरेला-पेंड्रा-मरवाही जिलो के लिए जरूरी है। कोरोना संकट के चलते अन्य राज्यों से कामगारों के लौटने के बाद अमरकंटक अरण्य क्षेत्र में आये प्रवासी के लिए जीविकोपार्जन रोजगार एक बड़ी चुनौती बनकर उभरी है, ऐसे श्रमिकों के भविष्य में कार्य करने के अवसर, आजीविका की संभावनाएं तथा उनके जीविकोपार्जन में निरन्तरता बनाए रखने के लिए बुधवार को  इंदिरा गाँधी राष्ट्रीय जनजातीय विश्वविद्यालय, अमरकंटक के कुलपति प्रो. प्रकाशमणि त्रिपाठी ने विभिन्न विभागों के वैज्ञानिकों के साथ बैठक की अध्यक्षता करते हुए श्रमिकों को आजीविका उपलब्ध कराने की योजना पर प्रभावी रणनीति तैयार करने की बात कही।

कुलपति ने कहा गेहूं और धान की अपेक्षा मोटे अनाज की खेती में कम लागत आती है इसकी खेती के लिए रसायनिक उर्वरक की जरूरत कम पड़ती है। खरीफ की इन फसलों के लिए वर्षा जल पर्याप्त रहता है। इसकी मांग बढऩे के पीछे इसके पोषक तत्व हैं, जो अन्य अनाजों की अपेक्षा ज्यादा होते हैं। अवशेष भी पशुओं के लिए पौष्टिक होते हैं, जो दूध की पौष्टिक क्षमता बढ़ाते हैं। यह किसानों की आय बढ़ाएगा लेकिन किसान इन फसलों के प्रति इतने जागरुक नहीं हैं। पिछले चार दशक में देशी फसलें लुप्त हो रही है कई ऐसे अनाज हैं जो आज ढूंढऩे से भी नहीं मिल रहे हैं। नई पीढ़ी कई फसलों के नाम तक भूल गई है। खाद्य प्रसंस्करण उद्योग का मूल्य 258 अरब अमेरिकी डॉलर है, घरेलू रूप से पांचवां सबसे बड़ा उद्योग है। मोटा अनाज खाद्य प्रसंस्करण उद्योग क्षेत्र स्वरोजगार के लिए अच्छे करियर का एक बेहतर विकल्प साबित हो सकता है। ग्रामीण परिवार आजीविका के अपने मुख्य साधन के रूप में इससे उच्च लाभ का विकल्प बना सकते है इस क्षेत्र में किसानों की आय में भारी सुधार के साथ-साथ रोजगार वृद्घि की संभावनाएं हैं।

उन्होने कहा बीते पचास सालों में नए चलन की खेती और उत्पादन बढ़ाने की होड़ में औषधीय गुणों वाली पारंपरिक फसलों बकला, खेरही, कौनी, बाजरा, लड़कटिया, तीसी, कुसमी, कुर्थी, चीन्ना (चेना) तुलबुली मकई, सांवा, टागुन (टवनी/बालटाउन), कोदो, मेडुआ (मरुआ/ रागी) जैसी देशी फसलें विलुप्ति की कगार तक पहुँच गई हैं, इन अनाजों की कमी से दूरस्थ और आदिवासी इलाकों में रहने वाले लोगों को पोषण सम्बन्धी कई परेशानियों का सामना करना पड़ रहा है। विश्वविद्यालय छोटे जोत के आकार अर्थात कम जमीन वाले श्रमिकों/किसान की रुचि तथा कौशल के अनुसार किसान उत्पादक कंपनी (एफपीसी) एफपीसी प्रारम्भ कराकर पारंपरिक फसलों से जुड़ी व्यावसायिक गतिविधियों को संचालित करवाया जाएगा। केंद्र तथा राज्य सरकार द्वारा प्रवासी श्रमिकों के लिए चलाई जा रही विभिन्न योजनाओं का लाभ उन्हें दिलाकर आत्मनिर्भर बनाने की जरुरत है।

आजीविका की संभावनाओं पर कुलपति ने बताया कि स्वास्थ्यवर्धक आइसक्रीम प्रसंस्करण उद्योग (चिया आइसक्रीम, सीताफल, रामफल, बेल आइसक्रीम, बेसिल आइसक्रीम एवं तेन्दुफल आइसक्रीम), स्वास्थ्यवर्धक बिस्कुट/ बेकरी/ फ्लेक्स उत्पाद प्रसंस्करण उद्योग, प्राचीन अनाज के स्वास्थ्यवर्धक आटा / दलिया उत्पाद उद्योग सहित बांस उत्पाद, रेशम उत्पाद, मधुमक्खी पालन, मशरूम उत्पादन: डिब्बाबंद मशरूम (निर्यात उन्मुख) तथा मशरूम पाउडर, निर्जलित सब्जियां, कटहल उत्पाद, आलू, केला वफर, सोया आधारित खाद्य उत्पाद सहित कई खाद्य प्रसंस्करण उद्योग इसके अंतर्गत शामिल है।

कुलपति ने पारंपरिक फसलों के इस ज्ञान की बानगी को बचाने एवं उस पर आधारित आजीविका की संभावनाएं को तराशने, प्रवासी श्रमिकों के मोबाइल पर मैसेज भेजने, उनसे विडिओ कॉल पर बात करने, पंचायतवार वाट्सऐप ग्रुप बनाने, कृषि आधारित उद्यम की जानकारी देने, श्रमिकों के किसान उत्पादक कंपनी (एफपीसी) का पंजीयन करवाने, मुद्रा लोन, एमएसएमई लोन की व्यवस्था हेतु फोर्म भरवाने, उद्यमिता की रूपरेखा एवं डॉक्युमेंट करने, व्यवहार्यता परियोजना रिपोर्ट को अंतिम रूप देकर श्रमिकों को आत्मनिर्भर बनाने के लिए विश्वविद्यालय ने समस्त संकाय के अधिश्ठाता, कृषि विज्ञान केन्द्र, राष्ट्रीय सेवा योजना, राष्ट्रीय कैडेट कोर, भारत सरकार के प्रोजेक्ट कोऑर्डिनेटर सहित प्रशासनिक अधिकारी को सम्मिलित करके एक वृहद समिति बनाकर कार्य किया जाएगा। इस योजना का अधिक से अधिक लाभ क्षेत्रीय जनजातीय परिवार को मिलेगा।     बैठक में प्रो.ए.के. शुक्ला, प्रो. हरी नारायण मूर्ति, प्रो. अजय वाघ, डॉ. संजीव सिंह, डॉ. विकास सिंह, कुलसचिव पी. सिलुवैनाथन तथा अन्य वैज्ञानिक उपस्थित रहे।

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