अनूपपुर। मध्य प्रदेश सरकार ने श्रम कानून में परिवर्तन कर 8 घंटे के स्थान पर 12
घंटे काम करने की मंजूरी देकर, श्रम कानूनों के परिपालन के लिए जॉच एवं
निरीक्षण पर रोक, ठेका श्रमिकों के लिए ठेकेदारों की मनमर्जी, दुकानों
एवं संस्थाओं में 18 घंटे काम करने की व्यवस्था आदि निर्णय लेकर मजदूरों के साथ
बहुत बड़ा विश्वासघात किया है। पिछली सरकार ने घोषणा किया था कि इस महामारी की
अवधि में जो लोग ड्यूटी नहीं करेंगे उनकी मजदूरी भी मालिकों को देना पड़ेगा। उक्त
आशय का विचार रविवार को मध्यप्रदेश राज्य एटक के प्रांतीय अध्यक्ष एवं संयुक्त
कोयला मजदूर संघ (एटक) एसईसीएल के केंद्रीय महामंत्री कामरेड हरिद्वार सिंह ने
कही।
उन्होने
मध्यप्रदेश की मौजूदा सरकार के श्रम आयुक्त ने 6 मई को परिपत्र जारी कर कहा है कि
लॉक डाउन समाप्त होने के बाद खुले उद्योगों में बुलाए जाने पर यदि मजदूर काम पर
नहीं आते हैं तो मालिक उस अवधि का मजदूरी देने के लिए बाध्य नहीं होंगे। प्रदेश
सरकार मजदूरों को दास प्रथा के युग में ले जाना चाहती है। सरकार का असली चरित्र
उजागर हो रहा है। छल, प्रपंच, धन, प्रलोभन के
दम पर बनी भाजपा सरकार ऐसे समय में मेहनतकश मजदूरों के ऊपर हमला किया है जब मजदूर
सर्वाधिक बेहाल, तंग और परेशान हैं और बेहद संकट के दौर से गुजर रहे हैं। समूचा
देश कोविड-19 जैसे महामारी से जूझ रहा है। संक्रमित मरीजों की बढ़ती संख्या तथा
मरने वालों का आंकड़ा देखकर समूचा देश हिल रहा है। मध्यप्रदेश में हालात बहुत ही
बदतर हैं ऐसे नाजुक समय में सरकार महामारी की रोकथाम में पूर्णत: असफल बताया।
मुख्यमंत्री
शिवराज सिंह चौहान पर पूंजीपतियों की कृपा से बने बताते हुए मजदूरों के पेट पर लात
मार कर देश के सामने भाजपा एवं अपने आप को नंगा कर दिया है। संयुक्त ट्रेड
यूनियनों ने 11 मई को समूचे प्रदेश में सांकेतिक विरोध प्रदर्शन का ऐलान किया है। 12
घंटे काम का कानून या श्रम आयुक्त का निर्देश वापस नहीं हुआ तो बड़ी लड़ाई का
सामना करने के लिए सरकार को तैयार रहना होगा।
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