https://halchalanuppur.blogspot.com

शुक्रवार, 9 मार्च 2018

टिकट जो बेचन मैं चला... अथ कांग्रेस दुर्गति कथा

                                                                   मनोज व्दिवेदी , कोतमा- अनूपपुर
 
अभी हाल ही में देश की राजनैतिक मंडी मे  न ई  - नकोर दुकान  खुली है। दुकानदारी  चलेगी , नहीं चलेगी यह चर्चा बाद में ।पहले हम देखें कि राज्य दर राज्य पिटती कांग्रेस के इस आचरण का कारण ऒर परिणाम क्या हो सकता है ?
 म प्र कांग्रेस मे जान फूंकने आए एक बावरे से नेता के मन मे खयाल आया कि ऐसा कुछ करें कि कोई भी ऐरा - गैरा ,नत्थू खैरा न तो कांग्रेस की टिकट मांग सके न ही चुनाव लड सके। पार्टी सूत्र व समाचारी चकल्लसों से फैली चर्चा ने बतलाया कि अब पार्टी उसे टिकट का दावेदार मानेगी जो पार्टी को पचास हजार रुपये देगा/ देगी।  व्यापम नुमा तर्ज मे अब टिकट नामांकन का शुल्क ५०००० रु होगा। अन्दर खाने टिकट के कितने लगेगे यह नही बतलाया गया। राजनीति मे गिरावट कोई कांग्रेस के कारण आज आई हो या सिर्फ वही जिम्मेदार हो यह कहना सही नहीं । यूपी ,बिहार सहित कुछ अन्य राज्यों मे टिकट के बदले मोटी राशि वसूले जाने की शिकायतें मिलती रही हैं। जिन दलों ने टिकट काउंटर खोले ,उनका समूल पतन भी जनता के सामने है। लेकिन खुल्लमखुल्ला टिकट के ऐवज मे मोटी रकम की शर्त कम से कम यह संकेत तो देती है कि  कांग्रेस दिवालियापन की ओर अग्रसर है। अब यह दिवालिया पन आर्थिक है या दिमागी ,इसका निर्णय पार्टी शीर्ष या प्रबुद्ध जनता कर सकती है।
   ‌आम जनता यह मान चुकी है कि २०१८ विधानसभा चुनाव कैसे भी- किसी भी प्रत्याशी के बूते नहीं जीता जा सकता । न ही किसी लहर ,विचारधारा, नीति- रीति के मत्थे।  जो दल अपेक्षाकृत स्वच्छ, मेहनती,ईमानदार प्रत्याशी उतारेगा, उसकी जीत की संभावनाएं भी अधिक होगी।
   बहरहाल जो व्यक्ति पैसे देकर चुनावी टिकट खरीदेगा ,जीतने के बाद उसकी पूरी कीमत भी वसुळेगा। अब कांग्रेस मे टिकट का पंजीयन  शुल्क पचास हजार जो देगा ,वह एक लाख तो वसूलने का पार्टी की नजर मे हकदार हो ही जाएगा। इसका खुला अर्थ है कि चुनाव लडना आम कार्यकर्ताओं का नहीं ,धन्ना सेठों का अधिकार हो गया है। कांग्रेस मे चार दर्जे की व्यवस्था स्थापित हुई मानी जाए। नम्बर एक वे जो शीर्ष पर हैं। जो बावरे नेताओं को प्रदेशों मे टिकट वितरण के लिये अधिक्रत करते हैं। दूसरे नम्बर पर ऐसे नेता जो चुनाव से ठीक पूर्व प्रदेशों मे दुकानदारी सजाते हैं। तीसरे क्रम पर वे पचास हजारी आएगें जो कम से कम पचास हजार जमा कर टिकट का पंजीयन तो करा ही सकते हैं। अब सबसे अन्त मे ऐसे कार्य कर्ताओं को शामिल कर लीजिये जो जीवन भर पार्टी का झंडा बैनर बांधता है,दरी - कुर्सी उठाने - बिछाने का काम तो करता है। लेकिन जेब मे पचास हजार न होने से विधानसभा का टिकट तक नहीं मांग सकता।यह निम्नतर वैचारिकता की परले दर्जे की गिरावट है, जिस पर समाज मे यह चर्चा व्याप्त है कि जमीनी संगठनात्मक स्खलन से जूझ रही कांग्रेस की टिकट के लिये क्या वाक ई इतनी मारा मारी है ..या भाव बढाने की कवायद मात्र ? तीन पंच वर्षीय सत्ता से बाहर रहने वाली कांग्रेस ऐसे हठकंडों से आगामी दस साल सत्ता से बाहर रहने वाली है।

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

शराब ठेकेदार के गुर्गों की गुंडागर्दी: युवक को वाहन से कुचल कर मारने की कोशिश, 3 संदेही अभिरक्षा में

पूरी घटना सीसीटीव्ही  में कैद, वाहन जप्त  अनूपपुर। कोतमा थाना क्षेत्र में राष्ट्रीय राजमार्ग 43 स्थित एक ढाबे शनिवार - रविवार की रात से निकल...