प्रधानमंत्री
को पत्र लिखकर की नवाचार की मांग
अनूपपुर। देश
मे बढती बेरोजगारी व किसानों की आत्महत्या से विचलित भाजपा नेता व जय भारत मंच
अनूपपुर के जिलाध्यक्ष मनोज व्दिवेदी ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को पत्र लिखकर
कुछ नवाचार करने हेतु सुझाव दिये हैं। २० मार्च, २०१८ को दिये गये सुझावों को यदि
परीक्षण उपरांत लागू किया जाता है तो किसानों की समस्याएं समूल नष्ट हों , न हों , कम जरुर हो जाएगीं।
रोजगार के अवसर बढने के साथ प्रशिक्षित वैज्ञानिक खेती होने से क्रषि लाभ का कार्य
बन जाएगा। इससे देश की आर्थिक दशा मे मजबूती आएगी। किसान तनाव मुक्त होगा तो कमजोर
अलाभकारी खेती, उधार
के कारण आत्महत्या नही करेगा।
मंगलवार को
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को लिखे पत्र मे
खेती से जुडे नवाचार पर ध्यानाकर्षण / सुझाव देते हुए श्री व्दिवेदी ने कहा
है कि देश में किसानों की आत्महत्या, उनके
आन्दोलन तथा युवाओं को रोजगार के अवसर बढाने के लिये मेरे कुछ सुझाव हैं। अभी लोग सरकार से जमीन लीज पर लेते हैं, कब्जा कर लेते
हैं लेकिन देश की उपलब्ध जमीनों पर खेती
पूरी तरह न होने के कारण जमीनें खाली पडी रहती हैं। विभिन्न कारणों से नयी पीढी
खेती मे रुचि नही ले रही जिसके कारण क्रषि का रकवा तेजी से कम हो रहा है। इसके
कारण युवा वर्ग मे बेरोजगारी बढी है। खेती करने वाले भी आए दिन कम लाभ होने,मुफ्त बिजली- पानी- खाद-
सब्सिडी- लाभ को लेकर आन्दोलन करते हैं।नुकसान होने पर किसान आत्महत्या कर लेता
है। खेती व रोजगार आपस मे जुडा मामला है। सुझाव है कि ---
१. जो किसान
खेती नहीं करते,जिनकी
जमीनें दो या अधिक वर्ष तक खाली रहे या खेती करने मे सक्षम नहीं हैं उन सब की जमीन
सरकार लाभ- हानि ,सिंचित-
असिंचित- पडती आदि का सर्वेक्षण कराकर किसानों से लीज पर ले।२. इन जमीनों पर
रोजगार गारंटी योजना के मजदूरों से खेती कराई जाए। पांच एकड या कम या ज्यादा जमीन पर ( आंकलन के अनुरूप) वेतन
भोगी युवाओं से काम लें। इनके ऊपर क्रषि वैज्ञानिकों व राजस्व अधिकारियों को
निगरानी के लिये नियुक्त करें।
३. इस तरह की
खेती मे बीज,खाद,जुताई,कटाई ,गहाई सब कुछ सरकारी
हो। यानि खेती का सरकारीकरण करें। इस पर समुचित निगरानी हो। फसलों का चयन सरकार
वैग्यानिक तरीके से मॊसम, मिट्टी
व मांग के अनुरुप करेगी तो क्रषि लाभ का धंधा बनेगा। इसका देश की GDP पर असर दिखेगा।४ . जमीन
के मूल मालिकों को साल मे जब एक बार लाभ मिलेगा तो वे खेती के नुकसान से बचेगें।
सरकार को ओला पाला, अतिबारिश, कीडे लगने आदि का
मुआवजा नही देना होगा। सब्सिडी की बचत होगी। बिजली-पानी की चोरी रुकेगी। राजस्व
बढेगा,लाभ
भी बढेगा।५. ऐसे मे किसान न आत्महत्या करेगा न सडकों पर आन्दोलन के लिये बाध्य
होगा। वह अन्य किसी अनुकूल कार्य से जुडेगा । जिन किसानों को लीज के बदले लाभांश
मिले उन्हे नॊकरी न देकर हायर सेकेंडरी, ग्रेज्यूयेट युवक को खेती मे नौकरी मिले।६. इससे खेती का
रकवा बढेगा, आत्मनिर्भरता
बढेगी,GDPबढेगा,रोजगार के अवसर
बढेगें,वैग्यानिक
खेती होने से पैदावार बढेगी,किसानों
को तनाव मुक्त जीवन जीने का अवसर मिलेगा।७. संक्षिप्त में , सरकारी खेती होने से
न जमीनें खाली रहेगी न ही फसलें जानकारी के आभाव मे खराब होगी। किसानो- बेरोजगारों
- सरकार- समाज सभी की समस्याएं कम होंगी।लाभ,
रोजगार, कानून
व्यवस्था सब कुछ बेहतर होगा।
दर असल खेती को लाभ का धंधा तब बनाया जा सकता है
जब किसान प्रशिक्षण प्राप्त कर वैज्ञानिक तरीके से खेती करे।मोसम की अनियमितता या
अन्य प्राकृतिक- अप्राकृतिक कारणों से यदि फसल नुकसान हुई तो उधार लेकर खेती करने
वाला किसान बेमॊत मारा जाता है। लाभ के लिये बंपर पैदावार होने पर उसका समुचित
उपयोग नही हो पाता। जब खेती न करने वाले किसानों से जमीन लेकर वेतनभोगी
कर्मचारियों से यह कार्य कराया जाएगा तो समुचित निगरानी मे एक ही क्षेत्र मे
आवश्यकता अनुसार अलग अलग पैदावार होगी। तब सरकारी खेती व व्यक्तिश: खेती मे स्वस्थ
मुकाबला होगा। कम्पटीशन मे दोनो तरह के किसानों को बेहतर कार्य करना होगा। रोजगार
के अवसर बढेगें, पुष्पराजगढ
जैसी जगह मजदूरों का पलायन रुकेगा। जाहिर है प्रधानमंत्री को प्रेषित सुझाव मे गुण
दोष हो सकते हैं ।लेकिन सुझाव क्रांतिकारी है,सही
ढंग - उचित मंशा से इसे लागू किया गया तो परिवर्तन अच्छे व सकारात्मक होंगे।
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