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बुधवार, 6 मई 2020

कोरोना वॉयरस से इंसानो को मिली सीख, लाँकडाउन से रिचार्ज होती प्रकृति

चैतन्य मिश्रा

आज जब सुबह नींद खुली तो बाहर आकर देखा की वहां सुकून और ताजगी भरी ठंड हवा के साथ विलुप्त हो चुकी गौरैय्या चिडिय़ा जो आंगन में फुर्र-फुर्र कर यहां से वहां उड़ रही थी। मानो कह रही हो कि अब वातावरण में ताजगी आ गई है। एक तरफ जहन में कोरोना का डर और तो दूसरी तरफ प्रदूषण मुक्त वातावरण से प्रकृति पूरी तरह से रिचार्ज हो गई हो। वैश्विक महामारी कोरोना के कारण संपूर्ण देश में लॉकडाउन के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के फैसले से न केवल कोरोना के फैलते प्रभाव को रोकने में उठाए गए कदम सराहनीय रहा बल्कि देश का पर्यावरण भी काफी स्वच्छ हो गया है। लॉकडाउन के तीसरा फेज में जहां सड़कें सूनी पड़ी हैं। कामकाज ठप्प पड़ा है और लोग घरों में लॉकडाउन खुलने का इंतजार कर रहे हैं। लेकिन इन सबके बीच एक अच्छी खबर की देष वायु, जल और ध्वनि प्रदूषण से मुक्त हो रहा है। दुनिया जिस पर्यावरण की रक्षा और चिन्ता के लिए लगातार बड़ी-बड़ी बैठकें कर कार्य योजनाएं बनती रहीं, जिसके लिए वैश्विक चिन्तन होता रहा, बड़े-बड़े धनकोष बनाये गये, पानी के जैसे पैसे बहे लेकिन नतीजा शून्य ही निकलता रहा। वहीं यह काम कोरोना वायरस ने कर दिखाया। यकीनन मानवता पर भारी कोरोना ने सबको बड़ी सीख दे दी है। अब भी समय है चेतने और जाग उठने की वरना प्रकृति कहीं बागी तेवर न दिखाने लगे। जिसे सूक्ष्म से कोरोना वायरस ने पहले ही जता दिया है। लॉकडाउन के बाद आसमान और पृथ्वी के वायुमंडल में बहुत तेजी से बदलाव हो रहा है। वैज्ञानिक इससे भौंचक्के हैं। मानने को मजबूर हैं कि विश्वव्यापी लॉकडाउन से ही यह सब हुआ है। कार्बन के कम उत्सर्जन से गरम इलाके के लोगों का हवा से जलन भी नहीं हो रही है। यह क्या जिस जिस कोरोना वायरस ने पूरी दुनिया में लॉकडाउन के हालात पैदा कर दिये। एकदम से दुनिया की रफ्तार थम गयी और इंसान को घरों में कैद करके रख दिया, उसी ने प्रकृति को उसका खोया हुआ स्वरूप लौटाना शुरू कर दिया वह कर दिखाया जिसको लेकर दशकों, बल्कि कहें अर्ध शताब्दी या उससे भी ज्यादा समय से खूब माथा पच्ची हो रही है लेकिन नतीजा कुछ खास निकला नहीं उसी कोरोना ने कर दिखाया, जिसने जानकार होने एवं हर समस्या का हल ढूंढने की इंसानी गलतफहमीं को चुटकियों में खत्म कर दिया। कभी नंगी आंखों से कोसों दूर मौजूद पहाड़ दिखना बीती बातें बन गई है, मई में  बहने वाली ठंडी एवं सुकून देती हवा सपना हो गया था। तभी आंखों से न दिखने वाले खतरनाक वायरस ने वह सब कर दिखाया जो इस दौर में असंभव था अगर बात हवा की करें तो कल तक जो हवा खुद बीमार थी आज वह साफ हो गयी। तमाम तरह के प्रदूषण से युक्त हवा सांस के जरिये फेफड़ों में पहुंच कई असाध्य और दूसरे रोगों को बढ़ा रहे थे। इससे उपजी अनगिनत और अनजान बीमारियां शरीर तोड़ रही थी। जमीन आसमान और जल मार्ग में खपत होने वाले ईंधन जो जहरीली हवा में तब्दील हो जाते हैं की देन थी। कोरोना संक्रमण के इस दौर में विशेषज्ञ नदियों की अपने स्तर पर की जाने वाली साफ-सफाई को एक भावी मॉडल के रूप में देख रहे हैं, ताकि भविष्य में सभी नदियों को पुनर्जीवित करने का रास्ता बन सके। मई-जून में पडऩे वाली भीषण गर्मी में आज जहां वातावरण में पूरी तरह से ठंडक है, लोग सुकुन के साथ आनंदमय सांस ले रहे है। कोरोना वॉयरस इंसानो के लिए सबसे खतरनाक है, लेकिन यह वॉयरस इंसानो को बहुत कुछ सीख भी दे रही है। अगर इंसान समय रहते इन सीखों को नही समझा तो आगे चलकर कोरोना वॉयरस से बचने के बाद इंसानो को प्रकृति की मार झेलने के लिए भी तैयार रहना पड़ेगा।

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