राष्ट्रीय विधिक सेवा प्राधिकरण के निर्देश
पर शनिवार को अनूपपुर जिला न्यायालय सहित तहसील कोतमा व राजेन्द्रग्राम सिविल न्यायालयों
सहित गठित 12 खण्डपीठों में नेशनल लोक अदालत का आयोजन हुआ। प्रधान जिला न्यायाधीश एस.एस.
परमार ने दीप प्रज्जवलित कर लोक अदालत का शुभारंभ किया। इस अवसर पर सचिव जिला
विधिक सेवा प्राधिकरण विवेक शुक्ला, अपर जिला एवं सत्र
न्यायाधीश पंकज जायसवाल, अपर जिला एवं सत्र न्यायाधीश राजेन्द्र
प्रसाद सेवतिया, मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट महेन्द्र
कुमार उइके, न्यायिक मजिस्ट्रेट रामअवतार पटेल, न्यायिक मजिस्ट्रेट अंजली शाह, अधिवक्ता संघ के
अध्यक्ष संतोष सिंह, जिला विधिक सहायता अधिकारी दिलावर
सिंह सहित अधिवक्तागण एवं कर्मचारीगण, नगरपालिका, विद्युत, बैंक के अधिकारी, पक्षकार उपस्थित रहें।
लोक अदालत में राजीनामा योग्य दाण्डिक
प्रकरण, चेक अनादरण से सम्बधीत प्रकरण, बैंक वसूली प्रकरण, मोटर दुर्घटना दावा, वैवाहिक प्रकरण, श्रम विवाद, भूमि अधिग्रहण, सिविल प्रकरण एवं
बिजली व पानी के बिल से संबंधित प्रकरणों का निराकरण आपसी राजीनामा के द्वारा किया
गया। जिला मुख्यालय, अनूपपुर, तहसील कोतमा एवं राजेन्द्रग्राम में 1979 प्रकरणों लंबित प्रकरणों को
लोक अदालत में रेफर किया गया, जिनमे कुल 501 प्रकरणों का निराकरण
हुआ। प्रीलिटिगेशन के 3273 प्रकरणों में 223 प्रकरणों का निराकरण हुआ। लोक अदालत
में कुल राशि 18847630 अवार्ड पारित किया गया।
कुटुम्ब न्यायालय में मां-पुत्र व पति-
पत्नी के बीच विवाद का हुआ पटाक्षेप
कुटुम्ब न्यायालय में मां ने आरोप
लगाया था कि उसके पति की मृत्यु उपरांत पुत्र को अनुकम्पा नियुक्ति मिली थी। पुत्र
ने नियुक्ति के दौरान कहा था कि वह मां सहित सभी भाई-बहनों की देखभाल करेगा, किन्तु अनुकम्पा नियुक्ति मिलने के बाद उसने मां की देखभाल व भरण
पोषण करना बंद कर दिया। लोक अदालत में प्रधान जिला एवं सत्र न्यायाधीश एस.एस.
परमार द्वारा मां और बेटे को समझाईश दिये जाने पर पुत्र ने मां को साथ रखने एवं
उनका भरण पोषण करने की सहमति दी और दोनों के मध्य आपसी सहमति से राजीनामा हुआ।
इस प्रकार एक अन्य प्रकरण में पुत्री
के जन्म होने के बाद से पति का व्यवहार पत्नी के प्रति अच्छा नहीं था, पत्नी को उलाहना देना मारपीट करना, भरण पोषण नहीं देना जैसे आरोप के साथ पत्नी ने पति से भरण पोषण
पाने के लिये न्यायालय की शरण ली थी। जहां लोक अदालत में प्रधान जिला एवं सत्र
न्यायाधीश एस.एस.परमार द्वारा समझाईश दिये जाने पर पति ने अपनी पत्नी को साथ रखने
और उसका भरण पोषण करने पर सहमति देते हुए न्यायालय से दोनों राजीखुशी घर के लिये
रवाना हुये।
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