अनूपपुर। कोतमा के गोंविदा कॉलोनी स्थित २३ जुलाई
की सुबह प्लास्टिक की थैली में घायलावस्था में मिले नवजात का जिला चिकित्सालय के एसएनसीयू
वार्ड में हो रहे उपचार में २५ जुलाई की सुबह डॉक्टरों ने उसे अब खतरे से बाहर बताया
है। बच्चे के मुंह पर लगे ऑक्सीजन को अब हटा दिया गया है। फेंकने के दौरन बच्चे के
सिर के उपरी हिस्से में बना गहरा जख्म भी अब भरने लगा है। बच्चे में पहले से अब कुछ
ज्यादा हरकते दिखने लगी है। एसएनसीयू के डॉक्टरों का कहना है कि नवजात की हालत अब सामान्य
दिख रही है। यहीं नहीं कल तक जहां एक मां ने अपने कंलक को छिपाने अपने ही नवजात को
प्लास्टिक की थैली में डालकर मौत के हवाले नर्सरी में फेंक दिया था, अब उसी नवजात के
पालन में कई माताएं जिला चिकित्सालय में कतार में खड़ीहो गई है। जिंदगी और मौत के बीच
सकरी खाई को पाटकर खतरे से बाहर हुए नवजात ने २५ जुलाई की सुबह पहली बार मां का दूध
पिया। २६ जुलाई को भी हालत स्थिर बताई। दूध पिलाने वाली खुद उसकी मां नहीं बल्कि एसएनसीयू
में कार्यरत स्टाफ सेमबाई प्रजाति है, जिसने सुबह रो रहे नवजात को अपने सीने से लगाकर
दूध पिलाया। डॉक्टरो का कहना है कि नवजात को सेप्लीमेंट्री डाईट के बजाय मां का दूध
मिल जाए तो अधिक सुपाच्य और स्वास्थ्यवद्र्धक होता है। सेमवाई प्रजापति ने इससे पहले
भी कई अज्ञात नवजातों को अपने सीने का दूध पिलाकर उसे नई जिदंगी दी है, और आज भी उसने
मां का फर्ज निभाते हुए नवजात को अपना दूध पिलाया है। एसएनसीयू के स्टाफों का कहना
है कि सेमबाई प्रजापति की अनुपस्थिति में एसएनसीयू में भर्ती अन्य नवजातों की माताएं
भी इस अज्ञात नवजात की मासूमियत पर अपना प्यार और दूध का कतरा बहा रही है। बच्चे के
भूख लगने पर कोई भी माता आकर उसे सीने से लगाकर अपना दूध पिला देती है। नवजात के खतरे
से फिलहाल बाहर बताए जाने पर एसएनसीयू में कार्यरत स्टाफों के बीच खुशी का माहौल बना
हुआ है। विदित हो कि २३ जुलाई की सुबह गोंविदा कॉलोनी नर्सरी में कुछ महिलाओं ने किसी
नवजात के रोने की आवाज सुनी, जहां आसपास के लोगों द्वारा जांच पड़ताल में थैली में
एक नवजात को पाया। जहां पुलिस को दी गई सूचना पर स्थानीय लोगों व पुलिस ने नवजात को
उपचार के लिए कोतमा सामुदायिक स्वास्थ्य केन्द्र फिर जिला अस्पताल के एसएनसीयू में
भर्ती कराया था। हालंाकि इससे पूर्व अनूपपुर नगरपालिका के वार्ड क्रमांक १० में २०
जुलाई को झाडिय़ों के बीच मिले नवजात को अधिक संक्रमण के कारण नहीं बचाया जा सका था।
नवजात के कम माह में पैदा होने के कारण फेंफड़ा पूर्णरूपेन नहीं बना और जन्म के बाद
उसे चीटियों ने लहूलुहान कर और अधिक संक्रमित कर दिया था। जिसके कारण नवजात बालक ने
२२ जुलाई की रात दुनिया को अलविदा कह दिया था। फिलहाल दूसरे अज्ञात नवजात के खतरे से
बाहर होने पर लोगों ने इसके बच जाने की कामना की है।
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