मनोज द्विवेदी की लेखनी
अनूपपुर। यह भारत ही है जहाँ लोकतंत्र..सहिष्णुता.. स्वतंत्रता के नाम पर अपनी / अपनो के कपडे उतारने की असहज आजादी है। थाम्पसन राईटर फांउण्डेशन नामक किसी संस्था द्वारा कुछ लोगों के बीच सर्वे कर एक रिपोर्ट के माध्यम से दुनिया को यह बतलाने की कोशिश की गयी है कि भारत महिलाओं के लिये सुरक्षित नही है। शायद इस संस्था को यह पता नही कि दुनिया का एकमात्र देश भारत है जहां नारी को शक्ति मानकर पूजा जाता है। कन्यापूजन की परंपरा दुनिया के किसी देश मे नही है,यह सिर्फ भारत मे होती है। भाई - बहन का पवित्र त्यौहार रक्षा बंधन. भारतीय पर्व है,,जहाँ सदियों से भाई अपनी बहन की रक्षा का संकल्प लेता है। भारत मे विवाह एक पवित्र संस्था है ,जिसके माध्यम से न केवल पारिवारिक संबंध बनते हैं, बेटी का हाथ किसी के हाथ मे देकर आजीवन साथ निभाने का वचन दिया- लिया जाता है। किसी संस्था के कुछ लोगों ने गिनती के लोगो के बीच कथित सर्वे किया, रिपोर्ट मे कह दिया कि भारत मे स्त्री सुरक्षित नहीं !!
२०१९ चुनाव के पहले ऐसे बहुत से प्रायोजित सर्वे होंगे ,रिपोर्ट मे भारत मे मानवाधिकार, दलित- आदिवासी, पत्रकार, नारी,किसानों की हालत खराब बतलाई जाएगी। ऐसा साबित करने की कोशिश होगी की दुनिया मे सबसे खतरनाक देश भारत है। जहाँ रोजगार, उत्पादन, व्यवसाय ,प्रगति के लिये उपयुक्त वातावरण नही है। आतंक का माहॊल है। महिलाओं का स्वतंत्रता से जीना,बाहर निकलना हराम है। असहिष्णुता बढ गयी है। हिन्दू आतंकवाद चरम पर है।
यह सब करने के लिये कथित बुद्धि जीवी पुरुस्कार वापसी करेंगे। कुछ नेता अमित्र देशॊं की गुप्त यात्रा करेगें। उनके राजदूतों से गोपनीय बैठकें भी कर सकते हैं। यह सब इसलिये नही कि उन्हे देश के हितों की चिंता है , न या कि यह कि उन्हे दुनियाभर की कोई चिन्ता है। राष्ट्रीय-- अन्तर्राष्ट्रीय साजिश के तहत यह प्रयास हो रहा है कि भारत विश्व शक्ति न बन सके। विगत कुछ वर्षों मे जिस तेजी से भारत की धमक विश्व मंच पर दिखी , बडी से बडी विश्व शक्तियों की बराबरी पर भारत जो जा खडा हुआ उसके कारण कभी कश्मीर मे मानवाधिकार के हनन की झूठी रिपोर्ट पेश होती है तो कभी स्त्री की दशा पर साज़िशन दशा खराब बतलाई जाती है।
भारत मे यदि नारी अपराध बढे हैं तो उसी तेजी से कार्यवाही भी हो रही है। लिंग परीक्षण को अपराध घोषित कर बेटियों के जन्म को प्रोत्साहित किया जा रहा है। म प्र जैसे भाजपा शासित राज्यों मे लाडली योजना जैसी तमाम प्रोत्साहन योजनाएं हैं। आज घर घर से महिलाएं नॊकरी या अन्य आजीविका गतिविधियों केलिये स्वतंत्रता पूर्वक,सुरक्षित तरीके से बाहर आना जाना कर रही हैं। बडे शहरों मे ग्रामीण क्षेत्रों की बेटियाँ बेटों की तरह बेखॊफ पढने,जाब के लिये पहुंच रही हैं। समाज मे आबादी के अनुरुप अलग कारणों से यदि अपराध हो रहे हैं तो उसी अनुरुप कदम उठाए जा रहे है। अब यह सब यदि सावन के अंधो या अक्ल / स्वार्थ के पूरों को दिखलाई नही पडता तो इस पर चिंता कर देश अपना दिमाग क्यो खराब करे ???
वरिष्ठ पत्रकार की कलम को भला कौन चैलेन्ज कर सकता है ? पत्रकारिता के छात्रों के लिये चलती फिरती युनिवर्सिटी का प्रतीक किसी पत्रकार की लेखनी व्यवस्था के विरुद्ध चलती है या सरकार के विरुद्ध ...यह तय करना प्रबुद्ध पाठकों का कार्य है। लेकिन महज किसी सर्वे ,या किसी आंकड़े की कसौटी पर देश को आंकते है तो अन्य बहुत सी बातों का ध्यान रखा जाना चाहिए । विगत कुछ वर्षों मे महिला आरक्षण के बाद नॊकरी,आजीविका, राजनीति सहित अन्य क्षेत्रों मे महिलाओं के लिये अवसर बढे हैं । वे तेजी से अधिक आत्मनिर्भर, सशक्त हुई हैं। उनमे आत्मविश्वास बढा है ,समाज मे सम्मान भी।सरकार ने महिलाओं के विरुद्ध हिंसा/ अपराध रोकने के लिये कडे कानून बनाए हैं। पुलिसिंग बेहतर हुई है,शिकायतें दर्ज कराना सरल हुआ है। आन लाईन शिकायते दर्ज होने से किसी भी थाने के लिये किसी भी घटना को दर्ज करने की अनिवार्यता होने से ऐसा लगने लगा कि अपराध बढे हैं। जबकि मामले दर्ज होने पर कार्यवाही पर निगरानी चुस्त हुई है,आरोपियों के विरुद्ध त्वरित कार्यवाही हो रही है।
ऐसे मे भारत को महिलाओं केतब गब लिये खतरनाक बतलाना सर्वेक्षण की मंशा,उसके तरीके को संदिग्ध बनाते हैं।
अनूपपुर। यह भारत ही है जहाँ लोकतंत्र..सहिष्णुता.. स्वतंत्रता के नाम पर अपनी / अपनो के कपडे उतारने की असहज आजादी है। थाम्पसन राईटर फांउण्डेशन नामक किसी संस्था द्वारा कुछ लोगों के बीच सर्वे कर एक रिपोर्ट के माध्यम से दुनिया को यह बतलाने की कोशिश की गयी है कि भारत महिलाओं के लिये सुरक्षित नही है। शायद इस संस्था को यह पता नही कि दुनिया का एकमात्र देश भारत है जहां नारी को शक्ति मानकर पूजा जाता है। कन्यापूजन की परंपरा दुनिया के किसी देश मे नही है,यह सिर्फ भारत मे होती है। भाई - बहन का पवित्र त्यौहार रक्षा बंधन. भारतीय पर्व है,,जहाँ सदियों से भाई अपनी बहन की रक्षा का संकल्प लेता है। भारत मे विवाह एक पवित्र संस्था है ,जिसके माध्यम से न केवल पारिवारिक संबंध बनते हैं, बेटी का हाथ किसी के हाथ मे देकर आजीवन साथ निभाने का वचन दिया- लिया जाता है। किसी संस्था के कुछ लोगों ने गिनती के लोगो के बीच कथित सर्वे किया, रिपोर्ट मे कह दिया कि भारत मे स्त्री सुरक्षित नहीं !!
२०१९ चुनाव के पहले ऐसे बहुत से प्रायोजित सर्वे होंगे ,रिपोर्ट मे भारत मे मानवाधिकार, दलित- आदिवासी, पत्रकार, नारी,किसानों की हालत खराब बतलाई जाएगी। ऐसा साबित करने की कोशिश होगी की दुनिया मे सबसे खतरनाक देश भारत है। जहाँ रोजगार, उत्पादन, व्यवसाय ,प्रगति के लिये उपयुक्त वातावरण नही है। आतंक का माहॊल है। महिलाओं का स्वतंत्रता से जीना,बाहर निकलना हराम है। असहिष्णुता बढ गयी है। हिन्दू आतंकवाद चरम पर है।
यह सब करने के लिये कथित बुद्धि जीवी पुरुस्कार वापसी करेंगे। कुछ नेता अमित्र देशॊं की गुप्त यात्रा करेगें। उनके राजदूतों से गोपनीय बैठकें भी कर सकते हैं। यह सब इसलिये नही कि उन्हे देश के हितों की चिंता है , न या कि यह कि उन्हे दुनियाभर की कोई चिन्ता है। राष्ट्रीय-- अन्तर्राष्ट्रीय साजिश के तहत यह प्रयास हो रहा है कि भारत विश्व शक्ति न बन सके। विगत कुछ वर्षों मे जिस तेजी से भारत की धमक विश्व मंच पर दिखी , बडी से बडी विश्व शक्तियों की बराबरी पर भारत जो जा खडा हुआ उसके कारण कभी कश्मीर मे मानवाधिकार के हनन की झूठी रिपोर्ट पेश होती है तो कभी स्त्री की दशा पर साज़िशन दशा खराब बतलाई जाती है।
भारत मे यदि नारी अपराध बढे हैं तो उसी तेजी से कार्यवाही भी हो रही है। लिंग परीक्षण को अपराध घोषित कर बेटियों के जन्म को प्रोत्साहित किया जा रहा है। म प्र जैसे भाजपा शासित राज्यों मे लाडली योजना जैसी तमाम प्रोत्साहन योजनाएं हैं। आज घर घर से महिलाएं नॊकरी या अन्य आजीविका गतिविधियों केलिये स्वतंत्रता पूर्वक,सुरक्षित तरीके से बाहर आना जाना कर रही हैं। बडे शहरों मे ग्रामीण क्षेत्रों की बेटियाँ बेटों की तरह बेखॊफ पढने,जाब के लिये पहुंच रही हैं। समाज मे आबादी के अनुरुप अलग कारणों से यदि अपराध हो रहे हैं तो उसी अनुरुप कदम उठाए जा रहे है। अब यह सब यदि सावन के अंधो या अक्ल / स्वार्थ के पूरों को दिखलाई नही पडता तो इस पर चिंता कर देश अपना दिमाग क्यो खराब करे ???
वरिष्ठ पत्रकार की कलम को भला कौन चैलेन्ज कर सकता है ? पत्रकारिता के छात्रों के लिये चलती फिरती युनिवर्सिटी का प्रतीक किसी पत्रकार की लेखनी व्यवस्था के विरुद्ध चलती है या सरकार के विरुद्ध ...यह तय करना प्रबुद्ध पाठकों का कार्य है। लेकिन महज किसी सर्वे ,या किसी आंकड़े की कसौटी पर देश को आंकते है तो अन्य बहुत सी बातों का ध्यान रखा जाना चाहिए । विगत कुछ वर्षों मे महिला आरक्षण के बाद नॊकरी,आजीविका, राजनीति सहित अन्य क्षेत्रों मे महिलाओं के लिये अवसर बढे हैं । वे तेजी से अधिक आत्मनिर्भर, सशक्त हुई हैं। उनमे आत्मविश्वास बढा है ,समाज मे सम्मान भी।सरकार ने महिलाओं के विरुद्ध हिंसा/ अपराध रोकने के लिये कडे कानून बनाए हैं। पुलिसिंग बेहतर हुई है,शिकायतें दर्ज कराना सरल हुआ है। आन लाईन शिकायते दर्ज होने से किसी भी थाने के लिये किसी भी घटना को दर्ज करने की अनिवार्यता होने से ऐसा लगने लगा कि अपराध बढे हैं। जबकि मामले दर्ज होने पर कार्यवाही पर निगरानी चुस्त हुई है,आरोपियों के विरुद्ध त्वरित कार्यवाही हो रही है।
ऐसे मे भारत को महिलाओं केतब गब लिये खतरनाक बतलाना सर्वेक्षण की मंशा,उसके तरीके को संदिग्ध बनाते हैं।
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