वैष्णव शर्मा की लेखनि से ईद पर चिन्तन------
रमजाने पाक मास की जान एवं शान है जीवन शक्ति अर्जन प्रक्रिया रोजा।रोजा से आत्मशुद्धि होती है। तन की शुद्धि होती है। मन की शुद्धि होती है। शुद्ध तन मन वाले व्यक्तियों में ही अल्लाह/ईश्वर का वास होता है।रमजान का रोजा माध्यम है अल्लाह तक पहुंचने का, अल्लाह का बंदगी करने का।
सर्व धर्म में उपवास की प्रथा है। उपवास सशक्त टूल/तकनीक है स्व शुद्धि का।रमजाने पाक का रोजा भी इसी तकनीक का एक रूप है।
ऋतु संक्रमण काल में रमजान मास प्रतिवर्ष होता है। गर्मी का अंत एवं बरसात का आगमन मानव शरीर में अनेकानेक रूपान्तरण लाता है। यह परिवर्तन आसानी से,शरीर को बिना नुकसान पहुंचाए हो, इसमें रोजा इफ्तार की परंपरा मददगार होता है।अतः ऋतु संक्रमण के समय रोजा का पाक माह रमजान आता है।
मुबारकी ईद प्रतिफल है रोजा से प्राप्य पावनता के चरमोत्कर्ष का,अल्लाह से सामिप्य का।इसीलिए ईद मिलन प्रावधानित है। मिलन मतलब दो से एक हो जाना है।शरीर दो हो लेकिन गिले शिकवे विस्मृत कर एक हो जाना। भूत की स्मृति को स्खलित करना ही ईद मिलन है।प्रेमालिंगन ही है ईद मिलन।
सभी धर्मों का मूल उद्देश्य है व्यक्ति का उत्थान, मानव समाज का उत्थान, विश्व का उत्थान।रोजा इफ्तार एवं ईद का उत्सव भी उसी उद्देश्य प्राप्ति का एक तरीका है। धर्म केवल और केवल जोडता है व्यक्ति को व्यक्ति से, व्यक्ति को समाज से, व्यक्ति को उसके निर्जीव सजीव वातावरण से।धर्म जोडने का सर्वोच्च तरीका है।कोई धर्म कभी तोडता नही किसी को किसी से।
सादर ईद मुबारक।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें