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शुक्रवार, 23 अप्रैल 2021


आज भी लगा हैं शिलालेख बखान कर रहा रीवा महाराजा का पराक्रम

अनूपपुर। अनूपपुर जनपद अंतर्गत ग्राम भोलगढ़ के समीप स्थित छुईहाई के बीहड़ जंगल में आदमखोर बाघ की दहशत से स्थानीय ग्रामीण खौफ के साए में जीवन जीने को विवश थे। आदमखोर बाघ ने जंगल के नजदीक ही बहते जल स्रोत को अपना ठिकाना बना रखा था, जहां पानी के लिए पहुंचने वाले मवेशियों का शिकार करने साथ ही कभी कभी ग्रामीणों का शिकार कर आदमखोर हो चुके बाघ ने ग्रामीणों को भी अपना शिकार बनाना शुरू कर दिया था। अपने परिवार के सदस्यों को बाघ के शिकार में मरता देखकर लोग डर से अब गांव छोडक़र पलायन करने लगे थे। तब यह इलाका सोहागपुर क्षेत्र के अंतर्गत शामिल था। आदमखोर बाघ और ग्रामीणों के पलायन की जानकारी इलाकेदार के माध्यम से महाराजा रीवा रियासत वेंकट रमण सिंह के पास पहुंची और महाराजा के द्वारा आदमखोर बाघ के खौफ से मुक्ति दिलाने के लिए यहां पहुंचते हुए आदमखोर बाघ का शिकार कर लोगों को इसके भय से मुक्ति दिलाई गई।

103 वर्ष पूर्व किया था शिकार

महाराजा वेंकटरमण सिंह के द्वारा 103 वर्ष पूर्व वर्ष 1918 में 19 जून रविवार के दिन इस बाघ का शिकार किया गया था। जिसके बाद स्थानीय ग्रामीणों को बाघ के भय से मुक्ति मिल सकी थी। बाघ के शिकार के बाद इस स्थल पर घटना से संबंधित शिलालेख भी लगाया गया है।

इसके बाद नहीं किया बाघ का शिकार

छुईहाई कैंप सीतापुर जो कि अब भोलगढ़ नाले के नाम से जाना जाता है, यहीं पर महाराजा के द्वारा अंतिम बाघ का शिकार किया गया था। इसके बाद उनके द्वारा किसी भी बाघ का शिकार नहीं किया गया। शिलालेख में इसके प्रमाण भी उत्कीर्ण हैं। उल्लेखनीय है कि आज भी भोलगढ़ के जंगल बाघ तो नहीं तेंदुए का रहवास स्थल के रूप में जाना जाता है। जंगलों की कटाई के कारण अब बाघों ने अहिरगवां या बांधवगढ़ के जंगल को अपना आश्रय स्थल बनाया है।

 

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