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गुरुवार, 11 अप्रैल 2019

गठन के बाद से फाईलों में कैद टूरिज्म प्रमोशन कौंसिल तथा ईको टूरिज्म विकास की योजना

विकास की योजनाओं से दूर अनमोल धरोहर,कागजों में सिमटा पर्यटक स्थलों का विकास

अनूपपुर जिले में पयर्टन को बढ़ावा देने के लिये प्रशासन ने टूरिज्म प्रमोशन कौंसिल तथा ईको टूरिज्म का गठन किया और गठन के बाद इसके विकाश की योजनायें फाईलों में दम तोड़ रही है। इसका उद्देश्य स्थानीय ग्रामीणों को रोजगार के साधन उपलब्ध कराने अमरकंटक सहित आसपास के ग्रामीण क्षेत्रों को पर्यटक स्थल बनाने की थी। जिला टूरिज्म प्रमोशन कौंसिल तथा ईको टूरिज्म बोर्ड की बैठक पिछले पांच सालों से आयोजित नहीं की गई है। जिसके कारण अमरकंटक सहित आसपास के चिह्नित 5 स्थलों व गांवों में पर्यटन विकास की जिला प्रशासन और वनविभाग की संयुक्त परियोजनाओं को अमल में नहीं लाया जा सका है। परियोजना में प्रस्तावित पोंडकी जलाशय, जोहिला जलाशय, गढ़ीदादर,किररघाट सहित बैहारटोला ग्राम पंचायत के ऐसे स्थल शामिल थे, जिन्हें प्राकृतिक विरासत को थोड़ा निखारकर पर्यटकों के लिए आकर्षक बनाया जा सकता है। जिसमें खास तौर पर वृहत स्थल के रूप में प्रकृति सौन्दर्यो से सुशोभित पोंडकी जलाशय, जोहिला जलाशय, भुंडकोना जलाशय को जलविहार के साथ मत्स्य उत्पादन और पर्यटक स्थल के रूप में अधिक विकसित बनाया जाना था। जबकि वनीय व पहाड़ी क्षेत्रों में शामिल गढ़ीदादर, किररघाट तथा बैहारटोला को वनविभाग के सहयोग से रॉक क्लाईमिंग, रॉप वे सहित अन्य साहसिक योजनाओं को शामिल करते हुए विकसित किया जाना था। लेकिन सारी की सारी योजनाओं पर अबतक अमल नहीं किया जा सका। इसका मुख्य कारण योजनाओं के सम्बंध में शासन को भेजे गए प्रस्तावों के अनुरूप दिशा निर्देश नहीं होना बताया गया है। जबकि योजना में शामिल रहे अधिकारियों के तबादले के उपरांत जिला टूरिज्म प्रमोशन कौंसिल तथा ईको टूरिज्म बोर्ड के बैठक परियोजना से दूर होती चली गई। बताया जाता है कि वर्ष 2015 के उपरांत जिला टूरिज्म प्रमोशन कौंसिल तथा ईको टूरिज्म बोर्ड की कोई बैठक आयोजित नहीं हुई है, जिसके आधार पर अमरकंटक सहित आसपास के चिह्नित स्थलों पर विचार विमर्श किया जा सके। बताया जाता है कि इस योजना का मुख्य उददेश्य जिले में पर्यटन की अपार संभावनाओं को देखते हुए अमरकंटक में जनसंख्या या पर्यटकों का अत्याधिक दबाव को कम करना था। इसके तहत पर्यटकों को स्थानीय स्तर पर सुविधाएं प्रदान करने सहित लोगों को भी आजीविका के साधन उपलब्ध कराने के लिए ऐसे स्थानों में लोगों के रुकने, भोजन आदि की व्यवस्था कराई जाती। प्रशासन का मनाना है कि इस प्रकार की योजनाओं से जहां पर्यटन के क्षेत्र में विकास होता वहीं, आदिवासी सांस्कृति कलाओं पर आधारित बांस, मिट्टी और पत्थर से बनी सामग्रियों को भी पर्यटकों को आसानी से उपलब्ध कराया जाता। विभागीय सूत्रो की माने तो शुरूआती समय में जिस प्रकार से योजनाओं को प्रस्तावित किया गया था, अगर उसे रेगुलटी में लाया जाता तो सम्भव था कि कुछ स्थान विकसित हो सकते थे। वहीं कम बजट के उपरांत इस योजना के लिए बोर्ड द्वारा अधिक बजट के लिए शासन को रिवाईज भी नहीं भेजा गया। जबकि यह जरूरी था कि बोर्ड द्वारा प्रस्तावों पर लगातार प्रयास किए जाए। पुष्पराजगढ़ में आदिवासी बहुल्य क्षेत्र होने के साथ साथ आदिवासी कलाकृतियों से जुड़ी व्यवसाय भी लगभग लुप्त होने की कगार पर पहुंच चुकी है। इसके अलावा अमरकंटक एकीकृत स्थली के रूप में विकसित हो रही। इसके लिए जरूरी था कि आदिवासी कला कृतियों व व्यवसाय के साथ पर्यटक को विकेन्द्री बनाया जा सकता था। इतना ही नही पोंड़की जलाशय में झील महोत्सव मनाए जाने की भी योजनाए बनाई गई थी। इसका मकसद जलविहार तथा मत्स्य उत्पादन को बढ़ावा देना था। इसमें पोंडकी जलाशय,भुंडाकोना, जोहिला जलाशय जैसे स्थल शामिल हैं। प्रकृति स्वरूपों तथा पहाड़ी ढालों के नीचे बसी ये जलाशय कश्मीर की डलझील के समान दिखती है।

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