अनूपपुर। जिले के
आदिवासी बाहुल्य विकाशखंड पुष्पराजगढ़ में आज भी ऐसे सुदूर बांव है जहां मूलभूत सुविधओं
से वंचित है। यहा के रहवासियो को पीने के पानी के लिये पहाड़ चढ़ कर मीलों सफर के बाद
एक डब्बा पानी नसीब होता है। यह यहा कि दिनचर्या बन चुकी है। विकाशखंड पुष्पराजगढ़
के ग्राम पंचायत पडऱी बकान का चौरादादर ग्राम जहां करीब 80 परिवार रहता है। जिन्हेे
पानी के लिये रोजाना 10 किमी
का सफर तय करना पड़ता है। विकास के तमाम दावो को झुठलाता यह गांव शौच मुक्त घोषित है,जहां आधे अधूरे कुछ शौचालय
स्वच्छता अभियान के तहत बनाये गये है। इससेे शौचालय की उपयोगिता कितनी होगी सहज ही
अंदाजा लगाया जा सकता है।
चौरादादर ग्राम मे पानी की विकराल समस्या है,ग्रामीण पानी की जरूरत बकान
गांव के तालाब से पूरा करते है। इसके लिये ग्रामीणो को 3 किमी.दुर्गम पहाड़ी का रास्तो को
तय करना होता है। जिसे दिन मे दो बार आना-जाना करते है। इसके लिये बच्चे, बड़े, महिलाये एवं बुजुर्ग शामिल
रहते है। पडऱी ग्राम पंचायत अतर्गत आने वाला चौरादादर गांव एक टापू नुमा पहाड़ पर स्थित
है। यहां अधिकांश गोंड़ जनजाति के लोग रहते है। यहा के लोगों को बचपन से ही पानी के
लिये जद्दो जहद कर अपना जीवन यापन रहे है। यहा पानी प्राकृतिक सोत्र झरने, झिरिया, कुंआ दिसंबर से जनवरी में
सूख जाते है। तब से लेकर बरसात तक ग्राम बकान के तालाब पर निर्भर रहना होता है। रास्ता
बेहद दुर्गम, पथरीला और पहाड़ी है। जंगली जानवरों का भय बना रहता है। जल संसाधन विभाग द्वारा
तीन हैण्डपंप अलग अलग वर्षो मे लगवाये गये किन्तु पानी की आपूर्ती नही हो पाती इतना
ही नही प्रशासन ने उर्जा चलित बोरवेल स्थापित किया गया था। देखभाल के आभाव मे बंद पड़ा
हुआ है। ग्रामीणों के अनुसार इस उर्जा चलित बोरवेल में पर्याप्त पानी उपलब्ध है किन्तु
अब इससे पानी नही लिया जा सकता। दो वर्ष पूर्व पंचायत द्वारा आधे पहाड़ तक टैंकर के
माध्यम से पानी पहुंचाया जाता रहा है। वह भी भुगतान न होना बताकर बंद कर दिया गया है।
नेताओ के चुनावी वादे
विगत दो वर्ष पूर्व चौरादादर समेत
पडऱी, बकान,
नगुला, विचारपुर मे हैजे की बीमारी
फैली थी। तब चौरादादर के १७ लोग इस बीमारी के चपेट मे आ गये थे। दो व्यक्तियों की मौत
भी हो गई थी। डॉक्टरों ने इसे गंदे पानी का उपयोग से किया जाना पाया तब जल संसाधन विभाग
हरकत मे आया और कुछ दवाईयां बांटकर अपने कर्तव्यों को पूरा कर लिया था। इधर चुनाव आते
ही स्थानीय नेता ग्रामीणों से रुबरु होने पहुंचते है। चुनाव परिणाम आते ही अगले चुनाव
तक इन्हे देख पाना ग्रामीणों के लिये कोरी कल्पना सा होता है।
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