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शुक्रवार, 12 अप्रैल 2019

मुख्यमंत्री क्या कर पायेंगे डैमेज कंट्रोल, कांग्रेस का अंतरकलह कहीं मतदाताओं के बीच पडे न भारी

ससुराल पक्ष में जाने से क्या हिमाद्री को होगा फायदा या प्रमिला को कांग्रेस के मतदाता करेंगे स्वीकार
राजेश शुक्ला
अनूपपुर। मौसम के बदलते मिजाज से जहां आम जन परेशान है। वहीं 40 डिग्री के तापमान में लोगों ने घरों से निकलना कम किया है तो दूसरी ओर राजनीतिक पारा दिनोंदिन बढ़ता ही जा रहा है। शुक्रवार को नाम वापसी के बाद 13 प्रत्याशी मैदान में हैं, जिनमें मुख्य मुकाबला दो दलों में है, दोनों ही दल के प्रत्याशी एक-दूसरे दल के दलबदलू हैं। इससे पार्टी कार्यकर्ताओं के साथ आम मतदाता भी सोचने को मजबूर हो गया है। मतदाता यह तय नहीं कर पा रहा कि अपना मत किसे दें, आज जिसे हम मत देकर  जितायें कल वह अपने स्वार्थ के लिए दल बदल दे इससे कार्यकर्ता और मतदाता दोनों अपने आपको ठगा महसूस करते हैं। मतदाताओं को चुनना एक को ही है, अभी अनिर्णय की स्थिति बनी हुई है। शहडोल लोकसभा में भाजपा और कांग्रेस के बाद गोंडवाना और बसपा ने अपनी पहचान बनाई है, इसके बाद कम्युनिष्ट पार्टी का भी कुछ क्षेत्रों मेें प्रभाव है। विधानसभा चुनाव में भाजपा से टिकट न मिलने से नाराज जयसिंहनगर के पूर्व विधायक प्रमिला सिंह को कांग्रेस में शामिल कर लोकसभा का प्रत्याशी बनाया है। जिनका राजनीतिक इतिहास गत 5 वर्ष पहले जयसिंहनगर विधायक रहते हुए कोई खास नहीं रहा, जिससे भाजपा ने इनका टिकट काटा। विधानसभा चुनाव के दौरान कांग्रेस में शामिल होने के बावजूद भी कांग्रेस को कोई फायदा नहीं हुआ है। इसके बावजूद भी पार्टी ने इन पर अपना विश्वास जताते हुए नये चेहरे के रूप में दांव खेला है। यह दांव कितना कारगर साबित होगा यह तो आने वाले दिनों में देखने को मिलेगा, जहां प्रत्याशी के पास अपनी उपलब्धि बताने के लिए कुछ खास नहीं है, वहीं पूरे लोकसभा में अपरिचित चेहरा भी है। इनकी पैठ जयसिंहनगर विधायक के साथ आस-पास क्षेत्रों में है। किंतु पार्टी का सहयोग रहा तो मतदाताओं के बीच अपनी पैठ बना सकती हैं। अनूपपुर जिले की तीन विधानसभा सीटें कांग्रेस के पास हैं, इसके बावजूद भी तीनों विधायकों में अपने बर्चस्व की लड़ाई के लिए एक-दूसरे की टांग खिंचाई में कोई कोर कसर नहीं छोड़ रहे हैं, जिसका नजारा 5 अप्रैल को देखने को मिला। जहां कलेक्ट्रेट परिसर में अनूपपुर विधायक के समर्थक से कोतमा विधायक भिड पडे और बीच बचाव कोतवाली निरीक्षक को करना पड़ा। इतना ही नहीं इसके बाद परिसर के बाहर भी दोनों के बीच हाथापाई की नौबत आई, जिसमें प्रभारी मंत्री प्रदीप जायसवाल ने बीच बचाव कर समर्थक को कड़ी फटकार लगाई। इसके पूर्व मंच पर पुष्पराजगढ़ विधायक ने अनूपपुर विधायक के समर्थकों को कड़ी चेतावनी देते हुए कहा कि अगर मैं नारे लगाऊंगा तो कोई भी नहीं रह पायेगा, इसके बाद अनूपपुर विधायक ने जब मंच पर माईक संभाला तो उन्होंने भी कुछ ऐसे शब्दों का प्रयोग किया, जिसके बाद प्रभारी मंत्री माईक लेकर स्थिति को संभाला। ऐसी स्थिति में जब तीनों विधायक एक नहीं हैं तो पार्टी किसके दम पर लोसभा का चुनाव में फतह की सोच रही है। अंतरकलह को देखते हुए मुख्यमंत्री कमलनाथ १३ अप्रैल को अनूपपुर मुख्यालय में चुनावी सभा को संबोधित करने आ रहे हैं, जिसके प्रभारी स्थानीय विधायक बिसाहूलाल को बनाया गया है। विधायकों की आपस में बढ़ती दूरियां कार्यकर्ताओं एवं मतदाताओं के लिए शुभ संकेत नहीं है। इस रिपोर्ट के बाद मुख्यमंत्री तीनों विधायकों से चर्चा कर सकते हैं और पार्टी हित में अपने-अपने अहम को दूर रख लोकसभा की तैयारियों की जिम्मेदारियां सौंप सकते हैं। कांग्रेस की यह अंतरकलह लोकसभा चुनाव में जनता के बीच क्या संदेश जायेगा यह तो आगामी दिनों में देखने को मिलेगा, किंतु एक बात साफ है कि विधायकों में मंत्री बनने की चाह जिसमें पुष्पराजगढ़ विधायक फुंदेलाल जोर लगा रहे हैं जिन पर व्यापम मामले में पुत्र को अनैतिक ढंग से प्रवेश दिलाने के कारण न्यायालय से जमानत पर हैं। दूसरी ओर कोतमा विधायक अभी पहली बार निर्वाचित हुए हैं, जिससे उन्हें भी अपने क्षेत्र में कांग्रेस को विजय दिलाने का जिम्मा दिया गया है। इसके साथ ही अनूपपुर विधायक बिसाहूलाल भी जोर लगा रहे हैं कि अपने विधानसभा में कांग्रेस को बढत दिलाई जा सके, किंतु वहीं सूत्र बता रहे हैं कि दिग्विजय सिंह के विरोध के चलते इनका मंत्री पद पाना संभव नहीं दिखाई दे रहा है। अब यह तय करना कमलनाथ को है कि किसे इस क्षेत्र से मंत्री पद से नवाजा जाये।

भाजपा में भी कमोवेश कुछ कांग्रेस की तरह ही अंतरकलह से जूझ रही है, 2016 के उपचुनाव में कांग्रेस से प्रत्याशी रही हिमाद्री सिंह को भाजपा में शामिल किया है, जिससे पार्टी का एक वर्ग खासा नाराज चल रहा है। इसके साथ ही सांसद ज्ञान सिंह की नाराजगी भी चल रही है। वहीं कांग्रेस से भाजपा में आई हिमाद्री सिंह के पास जनता को बताने के लिए कोई खास उपलब्धि नहीं है। इनके पास सिर्फ अपने पिता स्व. दलवीर सिंह एवं माता स्व. राजेश नंदिनी सिंह की उपलब्धियां हैं किंतु दोनों ही कांग्रेस से रहे हैं, जहां आम मतदाता इस दल-बदल से पशोपेश में हैं वहीं कुछ इस बात को लेकर नाराज हैं कि जिनके माता-पिता पूरी जिंदगी कांग्रेस में रह कर जीवन समाप्त कर दिये तो वहीं बेटी ससुराल जाते ही ससुराल पक्ष की होकर रह गई। हिमाद्री का ससुराल पक्ष पूरी तरह भाजपा में है, जिनमें पूर्व मंत्री जयसिंह मराबी, पति नरेंद्र सिंह जिन्हें आयोग का अध्यक्ष बनाया गया था। इसके साथ ही इनका पूरा परिवार भाजपा को समर्पित हैं। वर्तमान में दो विधायक इनके परिवार से हैं। हिमाद्री पर परिवार का दबाव होने के कारण भाजपा में शामिल होना पड़ा, जिससे इस परिवार से जुडा व्यक्ति इस बात से नाराज चल रहा है। इन रूठों को मनाने की जिम्मेदारी भी इन्हीं पर है, इसके साथ ही गृह ग्राम पुष्पराजगढ़ के कार्यकर्ताओं की नाराजगी भी है कि जिनके खिलाफ वर्षों से हम लडते आ रहे हैं आज उनके पक्ष में कैसे मतदान की अपील करें। भाजपा को इस विरोध का सामना करना पड रहा है। ऐसे में चुनाव की डगर कठिन दिखाई दे रही है। अब पूरा दारोमदार 20 दिन के चुनाव प्रचार और रूठों को मनाने पर निर्भर है।

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