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बुधवार, 10 अप्रैल 2019

बोर के पानी से डायलसिस के मरीजों का हो रहा उपचार

 बाहर के पानी से मरीज बुझा रहे प्यास
अनूपपुर जिला चिकित्सालय अनूपपुर में हर वर्ष की भांति इस वर्ष भी अस्पताल प्रशासन की लापरवाही में पानी की समस्या बन गई है, जहां चिकित्सालय आने वाले मरीजों के साथ साथ उपचार के लिए भर्ती मरीजों को पीने के पानी नहीं मिल रहे हैं। 40 डिग्री सेल्सियस के गर्म तापमान में मरीज सहित परिजन पानी के लिए आसपास के वार्डो की ओर भाग-दौड़ मचा रहे हैं। लोगों को ठंडा पानी उपलब्ध कराने लगाया गया वॉटर कूलर भी मरीजों की संख्या में पानी उपलब्धता में अपर्याप्त साबित हो रहा है। ऐसा नहीं कि इस सम्बंध में अस्पताल प्रशासन के अधिकारियों को जानकारी नहीं, बावजूद पिछले साल पानी की बनी समस्या से निजात देने अबतक किसी प्रकार की पहल नहीं की गई। बताया जाता है कि जिला अस्पताल परिसर में पानी की सुविधा के लिए बोर कराए गए तीन बोर मशीनों में दो पानी के अभाव में फेल हो गए है। जबकि एक बोर पम्प मशीन से कम पानी की मात्रा निकलने के कारण उसे डायलसिस यूनिट के मरीजों के उपचार में खपाया जा रहा है। जबकि जलसंकट के कारण ही वर्तमान में अस्पताल प्रशासन ने वार्डो में कूलर की व्यवस्था नहीं बनाई है। मरीज व परिजन बाहर की दुकानों से महंगी सीलबंद बोतल का इस्तेमाल कर अपनी प्यास बुझा रहे हैं। इन असुविधा में सबसे अधिक गरीब परिवारों के मरीजों और परिजनों को परेशानी का सामना करना पड़ रहा है, जो मरीजों के लिए खुद ही खाना पकाने तथा पानी की व्यवस्था करते हैं। प्रसव कक्ष में पानी की कमी से काम प्रभावित हो रहा है। अस्पताल सूत्रों के अनुसार इस सम्बंध में पूर्व में ही जिला अस्पताल सिविल सर्जन को जानकारी दी गई थी। लेकिन जिला अस्पताल प्रशासन ने लापरवाही बरते हुए पेयजल सुविधा के लिए कोई व्यवस्था नहीं कराई। आलम यह है कि अब पूरा जिला अस्पताल पानी के लिए तरस रहा है।  दरअसल जिला अस्पताल में गर्मी के दौरान पानी की समस्या बनती है। इससे पूर्व दो बोर पम्प लगे थे, जो गर्मी के दिनों में पूरी तक बंद हो गए। जिसे देखते हुए वर्ष 2017 में तीसरी बोर कराया गया। लेकिन उस बोर से भी गर्मी के दिन कम पानी की मात्रा बह रही है। जिसका उपयोग डायलसिस यूनिट में प्रयोग किया जा रहा है। डायलसिस यूनिट में दो मरीजों के उपचार में कम से कम 4 हजार लीटर पानी की खपत होती है। वहीं प्रसव कक्ष में रोजाना 8-10 प्रसव केस आते हैं। इसके अलावा स्टाफों की जरूरतों के साथ साथ अस्पताल के शौचालयों के उपयोग में रोजाना आने वाले पानी की कम से कम 10 हजार लीटर पानी की आवश्यकता बताई गई है।
जिला कलेक्टर द्वारा स्वास्थ्य व्यवस्थाओं को बेहतर बनाने शासकीय विभागीय अधिकारियों सहित न्यायिक सवंर्ग अधिकारियों से स्वास्थ्य केन्द्रों के मॉनीटरिंग की जिम्मेदारी सौंपी गई थी। लेकिन जिला अस्पताल सहित अन्य स्वास्थ्य केन्द्रों पर जनवरी 2018 से अबतक किसी अधिकारी ने व्यवस्थाओं की जांच पड़ताल नहीं की और ना ही कलेक्टर को सुविधाओं व संसाधनों के सम्बंध में रिपोर्ट सौंपी। यह दुर्भाग्य है कि प्रशासनिक अधिकारियों के नाको तले अस्पताल में पानी के लिए मरीज भटक रहे हैं और अधिकारी बेखबर हैं।

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