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बुधवार, 3 अप्रैल 2019

शरीर का कोई अंग चुनाव चिन्ह क्यों ? आचार संहिता का खुलेआम होता है उल्लंघन.


मनोज द्विवेदी की कलम
अनूपपुर। लोकतंत्र का सर्वाधिक मजबूत हिस्सा चुनाव है। चुनाव मतलब मतदाता द्वारा निष्पक्ष, निर्भीक, स्वतंत्र रुप से बिना प्रलोभन- बिना दबाव के अपने मताधिकार का प्रयोग कर अपना प्रतिनिधि चुनना। यह प्रक्रिया आदर्श आचार संहिता के साये में निर्वाचन आयोग के कडे , निष्पक्ष मार्गदर्शन मे संपन्न होता है।
आदर्श आचार संहिता निष्पक्ष निर्वाचन की जान होती है। इसके तहत देश मे सभी कर्मचारी, अधिकारी निर्वाचन आयोग के आदेश पर कार्य करने को बाध्य होते हैं। निर्वाचन आयोग को कानून प्रदत्त वे सभी अधिकार प्राप्त हैं जो स्वतंत्र , निष्पक्ष निर्वाचन के लिये आवश्यक होते हैं।
लोकतंत्र की मजबूती के लिये समय समय पर निर्वाचन आयोग नियम कायदों मे परिवर्तन करता रहता है। टी एन शेषन का नाम इसके लिये हमेशा याद किया जाता रहेगा।
आज जब देश एक बार आम चुनाव की दहलीज पर है, निर्वाचन की प्रक्रिया प्रारंभ हो चुकी है , कुछ सवाल मुझ जैसे  अग्यानी के मन मे कॊंध रहे हैं। मुझे नही पता कि आदर्श आचार संहिता के बीच मुझे ऐसे सवाल उठाने चाहिये या नहीं ? लेकिन तब भी एक आम स्वतंत्र मतदाता की हैसियत से जिम्मेदार लोगों से कुछ मुद्दों पर ध्यानाकर्षण जरुर चाहूंगा ।
*** घोषणापत्र पर जवाबदेही क्यों नहीं -- विभिन्न राजनीतिक दल चुनाव के ठीक पहले घोषणा पत्र ,वचन पत्र, शपथपत्र के माध्यम से मतदाताओं को अपने विजन,अपनी विचारधारा बतलाने की जगह सत्ता में आने पर क्या क्या करेंगे ,यह बतलाते हैं । विकास के तमाम वायदे किये जाते हैं। जो सत्ता मे आने पर या चुनाव जीतने के बाद कभी पूरे नहीं होते। यह मतदाता के साथ विशुद्ध धोखाधड़ी से अधिक कुछ नहीं होता। चुनाव से पूर्व किये गये वायदों, घोषणाओं को जीतने के बाद पूरा न करने पर उस व्यक्ति, दल के विरुद्ध किसी तरह की कार्यवाही का प्रावधान क्यों नहीं है ? लिखित घोषणापत्र जारी करने के बाद जीत जाने पर वायदे,घोषणाएं पूरा न करने पर संबंधित के विरुद्ध आपराधिक प्रकरण दर्ज क्यों नहीं किया जाता ??
*** नोट फार सत्ता --- प्रत्येक चुनाव में राजनैतिक दल, नेता,व्यक्ति जब वोट के लिये पैसे, सामान ,शराब आदि बांटते हैं तो निर्वाचन आयोग कार्यवाही करता है। लेकिन जब यह कहा जाता है कि आप हमें वोट दें ,जब हम जीत जाएगें ,हमारी सरकार बन जाएगी तो आपके खाते मे इतना इतना पैसा हम सीधे डालेगें। या लैपटाप, मोबाइल, घडी, जमीन,घर देंगे। यह मतदाताओं के लिये खुला प्रलोभन क्यों नहीं है ??
*** दी जाती हैं धमकियां -- कुछ नेता खुले आम धमकियां देते दिखेगे कि हम जीते, सत्ता मे आए तो इस संस्था को बन्द कर देंगे, फलाने अधिकारी ध्यान रखें ,हम सरकार मे आने वाले हैं । या ये योजना बन्द कर देगे, वह कानून बदल देंगे । क्या यह लोगों को ,संस्थान को डराने,धमकाने का मामला नहीं है ???
*** मंत्री क्यों करते हैं चुनाव प्रचार --- दलगत भावना से ऊपर सोचें तो सरकार ,उसके मंत्री सिर्फ अपने दल, अपने कार्यकर्ता, अपनॆ मतदाता के लिये ही नहीं होते, बल्कि सभी के लिये होते हैं। ऐसे में आवश्यक है कि आदर्श आचार संहिता लागू होते ही प्रधानमंत्री, मुख्यमंत्री को छोडकर सभी मंत्रियों ,सांसद ,विधायक से स्तीफा ले लेना चाहिए । जब मंत्री ,सांसद ,विधायक अपने दल ,अपने चुनावचिन्ह के लिये वोट मांगता है तो वह सरकार या जनता के प्रति नहीं ,बल्कि अपनी पार्टी के लिये कार्य कर रहा होता है। निर्वाचन आयोग को इसपर ,इसके विकल्प पर विचार क्यों नहीं करना चाहिये???
*** शारीरिक अंग या जीव चुनाव चिन्ह क्यों ??? ---
आम तॊर पर चुनाव चिन्ह इस तरह से आवंटित  किये जाते हैं जो प्रचार प्रसार के लिये प्रतीकात्मक हों। आदर्श आचार संहिता के दॊरान पार्टी के चिन्ह, प्रतीक या चुनाव चिन्ह के प्रदर्शन को लेकर तमाम तरह के नियम कायदे हैं‌ । मसलन आप शासकीय कार्यालयों ,संपत्ति ,क्षेत्र मे चुनाव चिन्ह, झंडे आदि का प्रयोग नहीं कर सकते। लेकिन जब चुनाव चिन्ह गाय ,बछडा, बकरी या शरीर का कोई अंग ,जैसे हाथ या पंजा हो तो उसके प्रदर्शन पर निर्वाचन आयोग कोई निगरानी नहीं रखता, कोई कार्यवाही नही करता। उदाहरण के लिये जब रिटर्निंग आफिसर के कार्यालय मे प्रत्याशी नामांकन दाखिल करता है तो आप चुनाव चिन्ह झाडू, लालटेन,ताला, फूल ,ढोलक आदि लेकर नहीं जा सकते लेकिन जब चुनाव चिन्ह पंजा, हाथ या पैर हो तो उसका प्रदर्शन तो खुले आम होगा, लेकिन कार्यवाही लगभग असंभव होता है। निर्वाचन आयोग इसपर स्वयमेव विचार क्यों नहीं करता ???
*** निधन के बाद फिर चुनाव क्यों ??---- देखा यह गया है कि निर्वाचित प्रतिनिधि के आकस्मिक निधन उपरान्त पुन: उप चुनाव कराया जाता है। बहुत बार यह महीने ,साल,दो साल बाद ही कराना होता है। जबकि कार्यकाल पांच वर्ष का होता है। ऐसे मे इसका कोई बेहतर विकल्प निकालना होगा। फिर भले ही वह प्रशासक जैसी व्यवस्था क्यो न हो।
इसके अलावा भी समय समय पर बहुत से सवाल उठते रहे हैं। उन सभी पर हर पांच दस साल मे विचार / समीक्षा करने की जरुरत है। ‌

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