खरी-खरी
अनूपपुर। जैसे-जैसे
मतदान की तिथि करीब आ रही है, वैसे-वैसे प्रत्याशियों की धड़कन तेज हो रही है। कम समय और पूरे
लोकसभा में प्रत्येक लोगों से मिलना संभव नहीं हो पा रहा है। इसके लिए पार्टियों ने
सबको जिम्मेदारी दे रखी है। जहां प्रत्याशी न पहुंच सके वहां उनके प्रतिनिधि के रूप
में पार्टीजन लोगों के पास पहुंचकर अपने पक्ष में मतदान की अपील कर रहे हैं। किंतु
इस अपील का असर कितना होता है यह तो समय बतायेगा। वहीं मतदाताओं के बीच प्रत्याशी का
न होना लोकसभा में मतदान प्रतिशत में गिरावट का मुख्य कारण रहा है। इसके लिए प्रशासन
ने प्रयास कर रहा है कि अधिक से अधिक मतदान के लिए आम लोगों को प्रेरित किया जा सके।
किंतु इस चुनाव में अभी तक कोई शोरगुल अथवा यह प्रतीत नहीं हो रहा कि क्षेत्र में चुनाव
हो रहे हैं। न पार्टियों के झण्डा, बैनर और ना ही जनसंपर्क दिख रहा है। गत दिनों प्रदेश के मुख्यमंत्री
कमलनाथ ने भी अनूपपुर में चुनावी दौरे में उन्होंने अपने पूरे भाषण में प्रत्याशी का
न नाम लिया और ना ही वोट मांगा और ना ही इनके आने की कोई उत्साह लोगों में नहीं रहा।
अपना चुनावी दौरा कर मुख्यमंत्री रवाना हो गये शहर में इस बात की कोई चर्चा भी नहीं
हो सकी। ऐसे में लगता है कि शहडोल लोकसभा कांग्रेस के लिए बेमन की लड़ाई है। तो वहीं
दूसरी ओर कांग्रेस संगठन ने प्रदेश में अधिक सीटों के लिए क्षेत्रों के मंत्रियों की
तैनाती की है, इसके साथ ही उन विधायकों को भी लालीपॉप पकड़ाया गया है कि अगर आप अपने क्षेत्र
में अधिक मतदान पार्टी के पक्ष में करायेंगे तो मंत्री पद से नवाजा जायेगा। यह दिव्य
स्वप्र पार्टी ने विधायकों को दिखाया है, जिससे विधायक अपने-अपने क्षेत्रों में सक्रिय होकर पार्टी
के पक्ष में मतदान करा सकें। अनूपपुर जिले की तीनों विधानसभा में कांग्रेस का कब्जा
है और यह कांग्रेस के विधायकों के लिए कठिन परीक्षा है कि अपने-अपने क्षेत्रों से पार्टी
प्रत्याशी के लिए अधिक से अधिक मतदान कराकर मुख्यमंत्री के करीबी हो सकें और मंत्री
पद पा सकें। कांग्रेस ने अनूपपुर विधायक बिसाहूलाल सिंह को मंत्री न बनाकर पहले ही
अपमान कर चुकी है अब यह चुनावी लालीपॉप पकड़ा कर उन्हें फिर से सक्रिय करने का प्रयास
किया है। इसी सक्रियता में बिसाहूलाल ने मुख्यमंत्री के सामने प्रण लिया है कि अपने
क्षेत्र में कांग्रेस को अधिक मत दिलाऊंगा नहीं तो भोपाल नहीं जाऊंगा। ऐसा प्रण लेना
राजनीति में कहां तक सही है। विधानसभा में लोग भाजपा के प्रत्याशी व मुख्यमंत्री से
नाराजगी के कारण कांग्रेस को विजय मिली थी। जरूरी नहीं कि लोकसभा में भी लोग उसी दल
का अपना मतदान करें। समय के साथ व्यक्ति और पार्टियां बदल जाती हैं। मतदान विधानसभा
में व्यक्ति को मतदान किया था न कि पार्टी को, किंतु पार्टी ने यह माना कि यह मतदान
पार्टी के पक्ष में रहा है। भाजपा विधानसभा चुनाव में जिले की तीनों सीटों में प्रत्याशी
चयन सही करती तो शायद यह स्थिति न होती। इसीलिए शिवराज का गुरूर मतदाताओं ने तोड़ा
और बता दिया कि मतदाता से बड़ा कोई नहीं होता है। विधानसभा पुष्पराजगढ़ में भी कमोवेश
ऐसे ही हालात हैं, जहां लोग विधानसभा में प्रत्याशी से नाराज थे, जिसका फायदा कांग्रेस को मिला। तो
दूसरी ओर लोकसभा में स्थिति विपरीत है। मंत्री पद की चाहत पुष्पराजगढ़ विधायक ने प्रत्याशी
के साथ दौरे कर यह बता रहे हैं कि पार्टी के लिए जुटे हैं। पार्टी व्यापम के आरोपी
को मंत्री पद नहीं बना पायेगी इनके लिए भी यह लालीपॉप से कम नहीं है। कोतमा विधानसभा
में पहली बार विधायक बने सुनील सराफ के लिए जरूर अपनी विश्वसनीयता साबित करने का दबाव
है। जिसमें वो कितना सफल होंगे यह तो समय बतायेगा। चुनावी शोरगुल शांत, मतदाता की खामोशी का ऊंट
किस करवट बैठेगा यह तो २३ मई को पता चलेगा, किंतु एक बात तय है कि मतदाता अपने
मन में ठान चुका है कि वह किसे अपना मत देकर दिल्ली पहुंचायेगा। नये चेहरे अथवा पुराने
प्रत्याशी में किसे चुनता है।
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