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गुरुवार, 23 मार्च 2023

सिंधु समाज ने धूमधाम से मनाया भगवान झूलेलाल के जन्मोत्सव, निकाली गई शोभायात्रा

अनूपपुर। सिंधु समाज के नववर्ष की शुरुआत इनके प्रमुख त्योहार (चेटीचंड) आराध्य देवता भगवान झूलेलाल के जन्मोत्सव के रूप में मनाया 23 मार्च को अनूपपुर में धूमधाम से मनाया गया। इसे झूलेलाल जयंती के नाम से भी जाना जाता हैं। भगवान झूलेलाल का जन्म सद्भावना और भाईचारा बढ़ाने के लिए हुआ था। सिंधी समाज के लोग सुबह से गुरूद्वारा में भगवान झूलेलाल की विधि विधान से पूजा अर्चना की गई इसे बाद भण्डाुरा का आयोजन किया गया। शाम को भगवान झूलेलाल की शोभायात्रा पूरे शहर में निकाल कर मड़फा तलाब में विर्सजित किया गया। सिंधी समाज के लोग 23 मार्च की सुबह से गुरूद्वारा में भगवान झूलेलाल की विधि विधान से पूजा अर्चना कर भण्डागरे का प्रसाद लोगो को खिलाया। शाम को भगवान झूलेलाल की शोभायात्रा पूरे शहर में महिला शक्तियों ने डांडिया खेलते हुए भगवान झूलेलाल के भजन गाते निकाले रहें। नगर भ्रमण के दौरान पूरे रास्ते में फूल की पंखुड़ियों से शोभायात्रा का स्वागत किया गया। जहां नगरपालिका के अध्यक्ष, उपाध्यक्ष एवं पार्षदों द्वारा नगरपालिका परिसर मे जलपान की व्यवस्था की गई। किराना संघ के अध्यक्ष राकेश गौतम जी द्वारा सामतपुर में पेयजल और शीतल पेय की व्यवस्था की गई। इसके बाद सामतपुर मड़फा सरोवर मे विसर्जन के बाद कार्यक्रम समाप्त हुआ।
महत्व और कथा धार्मिक मान्यता है कि संत झूलेलाल वरुण देव के अवतार हैं। चेटीचंड के दिन भगवान झूलेलाल की पूजा से सुख, समृद्धि का वरदान मिलता है और व्यापार में कभी कोई रुकावट नहीं आती। उपासक भगवान झूलेलाल को उदेरोलाल, घोड़ेवारो, जिन्दपीर, लालसाँई, पल्लेवारो, ज्योतिनवारो, अमरलाल आदि नामों से भी पूजते हैं।
भगवान झूलेलाल ने इसलिए लिया था अवतार संवत् 1007 में पाकिस्तान में सिंध प्रदेश के ठट्टा नगर में मिरखशाह नामक एक मुगल सम्राट राज्य करता था. उसने जुल्म करके हिंदू आदि धर्म के लोगों को इस्लाम स्वीकार करने पर मजूबर कर दिया. उसके आतंक से तंग आकर सभी ने सिंधू नदी के किनारे एकत्रित होकर भगवान का स्मरण किया. भक्तों की कड़ी तपस्या के परिणाम स्वरूप नदी में मछली पर सवार एक अद्भुत आकृति नजर आई और फिर ठीक सात दिन बाद चमत्कारी बालक ने श्रीरतनराय लोहाना के घर जन्म लिया, यही भगवान झूलेलाल कहे गए। मिरखशाह के जुल्मों से बचाया मिरखशाह ने उसे मारने की कई बार कोशिश की लेकिन वो नाकाम रहा। बालक ने मिरखशाह को कई बार हिंदूओं पर अत्याचार न करने की चेतावनी भी दी लेकिन वो नहीं माना। अवतारी युगपुरुष भगवान झूलेलाल ने मिरखशाह को हरा दिया. वहीं एक मान्यता है कि प्राचीन काल में जब सिंधी समाज के लोग व्यापार से संबंधित जलमार्ग से यात्रा करते थे। तब यात्रा को को सकुशल बनाने के लिए जल देवता झूलेलाल से प्रार्थना करते थे और यात्रा सफल होने पर भगवान झूलेलाल का आभार व्यक्त किया जाता था. इसी परंपरा का निर्वहन करते हुए चेटीचंड का त्योहार माना जाता है। छाया-(फोटो) संदीप गर्ग

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