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रविवार, 13 जून 2021

कविता के जज्बे के आगे गम का तूफान भी बौना, पिता के अंतिम संस्कार बाद लौटी काम पर

कविता के जज्बे के आगे गम का तूफान भी बौना, पिता के अंतिम संस्कार बाद लौटी काम पर

अनूपपुर। कोरोना महामारी की दूसरी लहर के खिलाफ लड़ाई में अपनों की मौत के गम के आंसुओं का तूफान भी हमारे वॉरियर्स का रास्ता नहीं रोक पाया है। जिला चिकित्सालय के कोविड आइसोलेशन वार्ड में कार्यरत 34 वर्षीया महिला सामुदायिक स्वास्थ्य अधिकारी कविता राठौर जो पिता के अंतिम संस्कार के तुरंत बाद संक्रमितों की सेवा में जुट गई।

कोविड आइसोलेशन वार्ड में भर्ती कोरोना संक्रमितों को स्वस्थ करने में दिनरात एक कर चुनौती काल में एक पल वह भी आया, जब पिता कोरोना संक्रमित होकर उसी कोविड आइसोलेशन वार्ड में आ गए, जहां वह कार्यरत हैं। कविता ने बताया कि दूसरे मरीजों के साथ-साथ अपने पिता की भी भरपूर सेवा की। मगर वह बच ना सके। पिता की मौत का गम आंसुओं के सैलाब के रूप में फूट पड़ा। पारिवारिक दायित्व निभाने पिता के अंतिम संस्कार में जाना पड़ा। किन्तु वहां उनका मन यह सोचकर व्याकुल हो उठा कि कहीं पिता की तरह किसी अन्य मरीज के साथ ऐसा ना हो जाए। इसी उधेड़बुन के चलते वह पिता के अंतिम संस्कार के बाद घर पर रुक नहीं सकीं और सीधे काम पर लौट आईं।

कविता ने बताया कि कोरोना के संक्रमण से परिवार को बचाने के लिए घर पर नहीं रहतीं,बल्कि स्टाफ के साथ रेस्ट हाउस में रहती हैं। पति ने भी उन्हें प्रोत्साहित किया कि ईमानदारी से अपनी ड्यूटी करो, घर मैं संभाल लूंगा। मरीजों की सेवा को देखते हुए सवा साल से ड्यूटी से कोई अवकाश नहीं लिया। वह जब भी मरीजों को देखती तो पिता का चेहरा सामने आ जाता है और मरीजों को स्वस्थ करने का उन पर जुनून सवार हो जाता। मरीजों की सेवा में से वह अपने लिए २४ घंटे में से ४ घंटे निकाल पाती हैं। जब कोई मरीज स्वस्थ होकर अपने घर लौटता है, तो उन्हें इतनी प्रसन्नता होती है जिसका अंदाजा लगाना मुश्किल है। तब उन्हें लगता है कि मेहनत सफल हो गई।

कविता बताती हैं कि ऐसे मरीजों से भी सामना हुआ, जो अपनी बीमारी को लेकर डरने, घबराने और रोने लगते थे। रात-रात भर जाग कर ऐसे मरीजों को समझाकर उनका मनोबल बढ़ाती थीं। मरीजों के प्रति हमेशा चौकस रहतीं। उन्हें ड्रिप लगाने, ब्लड सेंपल लेने, मेडीकेशन करने, बी.पी. चेक करने, ऑक्सीजन लेवल चेक करने का काम करती और डॉक्टर का भ्रमण करवाती तथा डॉक्टर की सुझाई दवाइयां मरीजों को समय पर देतीं थीं। उनके मधुर एवं सहज व्यवहार ने उन्हें लोकप्रिय बना दिया है। कोरोना की विकट स्थिति में मानव सेवा के अपने इस जज्बे को कायम रखते हुए कविता जिस तरह से काम कर रही हैं, वह सराहनीय है।

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