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गुरुवार, 8 अक्तूबर 2020

समाज के ठकेदारो ने समाजिक संगठनो को बेचने की कर रहे तैयारी


विप्रो का एक संगठन राजनीतिक दलों से की सौदेबाजी
,
सामाजिक गतिविधियों में शून्यता खतरे का संकेत

अनूपपुर। देश में हिन्दुओं व अन्य संप्रदाय/ धर्मों के विपरीत तमाम जातिगत संगठन बना कर समाज तथा देश को कमजोर करने की साजिश होती रही है। ब्राम्हणों के कल्याण एवं उनकी एकजुटता के नाम पर शहर-शहर गांव-गांव संगठन बना कर स्वंमभू अध्यक्ष बन अपनी - अपनी ढपली अपना राग की तर्ज पर राजनीतिक रोटियां सेंक रहें हैं। जब भी चुनाव होते है ऐसे संगठन पार्टीयों के नेताओं को साधने में लग जाते हैं। इनकी मंशा उम्मीदवार या पार्टी के लोगों को बताना कि समाज हमारे साथ हैं असल में 50 भी नही होते।

अनूपपुर विधानसभा में उप चुनाव की तैयारी में सभी दल

लगें हुए हैं इनमे एक राजनैतिक दल के पक्ष में माहौल बनाने के लिये एक स्वंमभू संगठन जिसने गत लोकसभा उप चुनाव में ब्राम्हणों का ठेका लेने के लिए वृहद बैठक ्रकर दिखाया जिसके बाद उनकी और पर्दे के पीछे समाज की राजनीति करने वालो की भद् पिट गई थी। आज फिर अनूपपुर विधानसभा का उप चुनाव दहलीज पर हैं और यह संगठन फिर सक्रिय हो गया हैं। ब्राम्हणों को लामबंद करने की कोशिश हो रही है इसके लिये मोहरा बने विंध्य के एक कद्दावर नेता जिनके नाम अनूपपुर एवं बरगांवा में भीड़ कबाडऩे की तैयारी की गई किन्तु वह विफल हो गई। दिया। जिले में ब्राम्हणों के चार संगठन हैं किन्तु राजनीति में राजनीति एक संगठन करता है।

साजिश के चलते जिला मुख्यालय के विभिन्न क्षेत्रों में कार्यरत ब्राम्हणों जैसे व्यापारी, कृषक, पत्रकार, निजी व शासकीय क्षेत्रों में कार्य करने वाले लोग,आचार्य - पुरोहितों को न बुलाकर चंद लोगों की बैठक कर ब्राम्हण समाज की बैठक बताने का प्रयास किया गया। इससे वर्ष 2016 उप चुनाव की याद ताजा हो आई। तब उस वक्त के मप्र सरकार के एक मंत्री के इशारे पर ब्राम्हणों की ऐसी ही एक बैठक का आयोजन किया गया था। उस बैठक में जिले भर से दो हजार से अधिक ब्राम्हणों ने हिस्सा लिया था। इसके बाद आज तक ब्राम्हणों को जोडऩे का प्रयास नहीं किया गया।

अब चुनाव आया तो फिर वहीं खेल खेलकर राजनीतिक लाभ और अपनी जेब भरने प्रयास होने लगा। इस बैंठक में ब्राम्हण संगठनों के प्रमुख पदाधिकारियों, नामचीन चेहरों से इस लिये दूरी बनाए रखी कि कहीं उनकी खरी खरी बातों से आयोजकों का मायाजाल खंडित ना हो जाए।

समाज का बैठक के नाम पर गली, मोहल्ले ,परिवार के तीन दर्जन लोग ही मुश्किल से पहुंचे। इससे जिला ब्राम्हण विकास संगठन पर गंभीर सवाल तो खड़े हुए ही। साथ ही आरोप भी लगने लगा कि नगरपालिका चुनाव की संभावनाओं को देखते हुए कुछ लोगों ने पूर्व मंत्री के कंधों पर सवार होने की विफल कोशिश की है। समाज के लोगों ने यहाँ तक आरोप लगाया कि ब्राम्हणों को तोडऩे, उन्हे कमजोर करने की यह बड़ी साजिश हैं। दर असल सामाजिक संगठन को राजनैतिक उद्देश्य से अपने लाभ के लिये दुरुपयोग करना समाज के लोगों को अच्छा लगा नहीं है। स्वंमभू संगठन के वर्षो से अध्यक्ष बने उर्मलिया जी से सीधे स्तीफे की मांग कर डाली है। चुनावी नाव में सवार उर्मलिया यदि इस्तीफा नही देते तो संगठन उन्हे बाहर का रास्ता दिखाने के मूड में है। दर असल समाज के वरिष्ठ पदाधिकारीगण इस बात के हिमायती रहे हैं कि ब्राम्हण समाज स्वयं में सुधार, अनुशासन तथा समाज के कल्याण के लिये कार्य करे। इसमें विभिन्न दलों, अलग अलग विचारधारा के लोगों के सदस्य होने से सभी की भावनाओं का ध्यान रखा जाना चाहिए था। लेकिन विगत दो- तीन वर्षों से ऐसा होता नहीं दिख रहा है। आशंका है कि ऐसे मामलों से संगठन कमजोर होकर बिखर सकता है। अब किसी गैर राजनैतिक व्यक्ति को ब्राम्हण सुधार / कल्याण संगठन का अध्यक्ष बनाए जाने की मांग हो रही है।

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