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बुधवार, 3 फ़रवरी 2021

काम वासना, कर्म आदि को नियंत्रित करने का नाम ही योग हैं -प्रो.चाँद किरण सलूजा


प्राचीन भारत में योग परंपरा एवं सांस्कृतिक विरासत पर सात दिवसीय राष्ट्रीय कार्यशाला का दूसरा दिन

अनूपपुरइन्दिरा गांधी राष्ट्रीय जन जातीय विश्वविद्यालय अमरकंटक में योग विभाग एवं प्राचीन भारतीय संस्कृति एवं पुरातत्व विभाग के संयुक्त तत्वाधान में प्राचीन भारतीय योग परंपरा एवं सांस्कृतिक विरासत विषय पर आयोजित सात दिवसीय राष्ट्रीय कार्यशाला के दूसरे दिवस 3 फरवरी को तकनीकी सत्र में देश के विभिन्न भागों से लगभग 450 प्रतिभागी आनलाइन माध्यम से जुड़े।

तकनीकी प्रथम सत्र में संस्कृत संवर्धन प्रतिष्ठान दिल्ली की विशेषज्ञ प्रो.चाँद किरण सलूजा ने भारतीय संस्कृति के अंतर्गत योग से संबन्धित हिन्दी साहित्य के कवि जय शंकर प्रसादजी के ग्रंथ कामायनी की पंक्तियों के माध्यम से जड़ एवं चेतन को बताते हुये ङ्क्षचता,आशा,श्रद्घा ,काम वासना, कर्म आदि उमड़ते है तथा इनको नियंत्रित करने का नाम ही योग है अर्थात इनसे परे हो जाना आनंदमय हो जाना बताया है। आयुर्वेद से जोड़कर सत, रज, एवं तम को भी विस्तार से समझाया। साथ ही योग को मिलना, जुडऩा, संकलन, केन्द्रीकरण के अर्थ मे बताया इसके माध्यम से जीवन को सही दिशा देना होगा। श्रीमद भगवद गीता एक योगमय आधारित ग्रंथ है जो हमें अनुशासित रहने के साथ साथ आगे बढऩे के लिए प्रेरित करता है ।

प्रो.सलूजा ने बताया कि योग पुरातन है ङ्क्षसधु घाटी सभ्यता से लेकर अनेक ग्रन्थों में भी योग के इतिहास को बताया। आनंद की प्राप्ति ही योग है। इसका वर्णन तैत्रीयोपनिषद के अंतर्गत पंचकोशों में हैं। श्रीमद भगवद गीता के छठवें अध्याय में मन एवं नाम की चंचलता को उल्लेखित करते हुये श्री कृष्ण ने अर्जुन को बताया कि मन को शान्त/ नियंत्रित करके अपनी ऊर्जा को सकारात्मक दिशा में लगायें साथ ही योग दर्शन में वॢणत अष्टांग योग को भी बहुत ही सरल शब्दों में बताया। साथ ही शिक्षा के चार सोपानों को भी बताया 1. ज्ञान हेतु शिक्षा 2. कर्म हेतु शिक्षा 3. एक साथ रहने हेतु शिक्षा 4. मनुष्य बनने हेतु शिक्षा को विस्तार पूर्वक बताया। वर्तमान शिक्षा नीति को भी योग से जोड़ते हुये बताया महॢष पतंजलि, अरविदों एवं रजनीश की भी चर्च की अंत में यह भी बताया कि योग अंतर्यात्रा करने वाला दर्शन है एवं स्वयं मे प्रतिष्ठित हो जाना योगहै।

तकनीकी के दूसरे सत्र में विशेषज्ञ के रूप में मेजर (डॉ) गुलशन शर्मा ने अपनी यात्राओं के बारे में बहुत ही मार्मिक वर्णन किया उन्होने भारत कि आध्यात्मिक परम्पराओं का सांस्कृतिक विरासत की चर्चा की,उन्होने भारतीय शिक्षा नीति के संदर्भ देते हुये भारतीय परम्पराओं एवं योग सिद्घांतों को एक एक करके रेखांकित किया और योग विषय को भारतीय अध्यात्म परंपरा से जोडऩे एवं योग में अध्यात्म यात्रा नामक विषय पर बल दिया।

कार्यशाला के प्रथम दिन मंगलवार को इन्दिरा गांधी राष्ट्रीय जन जातीय विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. श्रीप्रकाश मणि त्रिपाठी ने भारतीय संस्कृति के अभिन्न अंग के रूप योग के विभिन्न पहलुओं पर प्रकाश डाला। उन्होंने कहा कि मन को नियंत्रित करने की विद्या ही योग है जिसके द्वारा तन एवं मन निर्मल होते है। योग को पर्यावरण को जोड़ते हुए उसकी शुद्घता पर विषेश बल दिया। मंगलवार को न्यायमूर्ति गिरिधर मालवीय, कुलपति काशी हिन्दू विश्वविद्यालय एवं विशिष्ट अतिथि प्रो.वीआर रामकृष्ण कुलपति स्वामी विवेकानंद योग अनुसंधान संस्थान बेंगलुरू ने भाग लिया।

इस दौरान डॉ हरेराम पाण्डेय,प्रो. जितेंद्र कुमार शर्मा,डॉ मनोज कुमार, डॉ जिनेन्द्र जैन, डॉ जनार्दन बी., डॉ गोङ्क्षवद मिश्रा, डॉ पूनम पाण्डेय, डॉ प्रवीण कुमार गुप्ता, डॉ श्याम सुंदर पाल, गुरुनाथ करनाल शमिल रहें।   

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