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गुरुवार, 25 फ़रवरी 2021

अनुरक्ति के सबसे बड़े साधक कबीर कहे जाते हैं - प्रो. श्रीप्रकाष मणि त्रिपाठी


इंगांराजवि में कबीर और आज का युग विषय पर ई-संगोष्ठी संगोष्ठी

अनूपपुर। आज का दौर भक्ति और अनुरक्ति का है। जिसके सबसे बड़े साधक कबीर कहे जाते हैं। इन्हें ध्यान और अनुमान का कवि,समाज सुधार का अग्रदूत कहा जाता हैं। इनकी रचनाओं में साखी, सबद, रमैनी प्रसिद्ध हैं। शब्दावली में इतना तेज था कि आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी उन्हें वाणी का डिक्टेटर कहते थे। अपनी रचनाओं में हमेशा अच्छाई और भद्रता की बात करने वाले उलटबंासी के माध्यम से परिष्कार का प्रयास करते हैं। कबीर कहते हैं-बुरा जो देखन मैं चला, बुरा न मिलाया कोय, जो दिल खोजा आपना, मुझसे बुरा न कोय। यह बात इंदिरा गांधी राष्ट्रीय जनजातीय विश्वविद्यालय अमरकंटक के हिन्दी विभाग में आयोजित कबीर और आज का युग विषय पर ई-संगोष्ठी  गुरूवार को संगोष्ठी की कुलपति प्रो. श्रीप्रकाश मणि त्रिपाठी ने कही।

कुलपति ने कहा हम सभी को इसी पर आत्ममंथन और आत्मचिंतन की जरूरत है। कबीर इकलौते कवि हैं जो उलटबासी के माध्यम से समाज की संरचना करते हैं। आज किसी कवि में वह साहस नहीं जो भक्तिकाल में कबीर के पास थी। मगहर को तेजस्विता की भूमि बताते हुए उन्होंने ने कहा कि अमरकंटक सारे कंटक को दूर करने वाली भूमि है। आज के युग को कबीर की तलाश है। कबीर को संबल और प्रेरक व प्रेम का भाव रखने वाले कबीर स्वत्व को ईश्वरत्व और अमरतत्व तक पहुँचाने का काम भी करते है।

निर्भीकता के कवि कबीर हमें विभेद रहित समरस समाज का आग्रह करना सिखाते हैं।

महात्मा गांधी अंतरराष्ट्रीय हिन्दी विश्वविद्यालय वर्धा के हिन्दी विभाग के प्रो कृष्ण कुमार सिंह ने कहा कि शब्द की ताकत को जानना है तो सबसे पहले कबीर आते हैं। भाषा से जो कबीर कहलवाना चाहते हैं वह भाषा कह देती है। कबीर के चार शब्द सत्य, प्रेम, सहजता व एकता को परिभाषित करते हुए कहा कि कबीर की कविता से आधुनिक युग की कविता का तार लगा हुआ है आधुनिक युग के कवियों में सर्वश्रेष्ठ कवियों में शामिल रवीन्द्र नाथ टैगोर ने कबीर की 100 कविताओं का अनुवाद अंग्रेजी में किया, जिसके कारण अंतरराष्ट्रीय कविता मंच पर कबीर को जगह मिली। आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी की पुस्तक न आई होती तो आज हिन्दी आलोचना में बड़े अभाव की पूर्ती न होती। अंहकार के विरोध की बात समझाने के लिए ही कबीर ने लिखा कि-ढ़ाई आखर प्रेम का पढ़े सो पण्डित होय।

प्रो. सिंह जी ने कहा कि रवीन्द्र नाथ टैगोर ने भी अपनी बंगला भाषा में रचित कविता में कहा कि अन्य की बात मुझे समझ में नहीं आती मुझे सीधी बात समझ में आती है। कबीर कहते है कि मेरा मुझमें कछ नहीं जो कुछ है से तेरा , तेरा तुझको सांपता क्या ल्यागे मेराकबीर से पहले खुसरो न भी लिखा है कि बहुत कठिन है डगर पनघट की। अत : कबीर की प्रांसगिकता आज के दौर में निश्चित रूप से स्मृहणीय है। ई-संगोष्ठी में हिन्दी विभागाध्यक्ष प्रो. तीर्थेष्वर सिंह, प्रो.खेमसिंह डहेरिया, प्रो.रेनू सिंह,डॉ.पूनम पाण्डेय, डॉ.वीरेन्द्र प्रताप डॉ. प्रवीण कुमार शामिल रहें।

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