अनूपपुर। ऋषि संस्कृति के प्रखर प्रकाश पुंज भगवान विष्णु के छठे
अवतार भगवान परशुराम का प्राकट्योत्सव अक्षय तृतीया का पावन पर्व श्रद्धा और
उल्लास के साथ जिला मुख्यालय अनूपपुर सहित जिले के चचाई, राजेन्द्रग्राम, अमरकंटक, बिजुरी, कोतमा, राजनगर, संजय नगर, भालूमांडा, जैतहरी सहित अन्य ग्रमीण क्षेत्रों में लोगों ने श्रध्दा
और उल्लास से मनाया। जिला मुख्यालय अनूपपुर में दो स्थानों में भगवान परशुराम का
प्राकट्योत्सव ब्राह्मण समाज द्वारा मनाया गया। ब्राह्मण समाज सेवा समिति एवं
विप्र समाज अनूपपुर द्वारा 10 मई को भगवान श्रीपरशुराम का जन्मोत्सव कार्यक्रम का
आयोजन किया गया। जिसमे चेतना नगर में वैदिक मंत्रो द्वारा पूरे रीती रिवाज से
अपरान्ह वैदिक पूजन अर्चन के बाद सुन्दर काण्ड का सस्वर पाठ एवं सायं से
प्रसाद (भण्डारा) वितरण का कार्यक्रम आयोजित किया गया है। वहीं शिवमारूती मंदिर
सामतपुर में परशुराम का प्राकट्योत्सव दोपहर पूजा के बाद शिवमारूती मंदिर सामतपुर
से शोभायात्रा निकाली गई जो नगर के प्रमुख मार्गो से होते हुए चेतनानगर के
शिवमंदिर, पुरानी बस्ती स्थिति बूढ़ीमाई से अमरकंटक
तिराहे के पास प्रवचन स्थल पर समाप्त हुई। जहां लोगों ने श्रीराघव कृष्ण महराज
द्वारा संगीतमयी अमृतवाणी का रसास्वादन किया। ब्रह्म समाज द्वारा निकाली गई भगवान
परशुराम की शोभायात्रा नगर के कई स्थानों में स्वागत से किया गया। ब्रह्म समाज ने
कहा कि ब्रह्माण शरीर का मस्तिष्क माना जाता है जिस पर जवाबदारी है कि सभी समाज और
धर्म को लेकर साथ चलें। राजेन्द्रग्राम में ब्राह्मण समाज ने भगवान श्री परशुराम
की पूजा अर्चना कर शोभायात्रा निकाली गई।
उल्लेखनीय है कि हिन्दू समाज के लिये अक्षय तृतीया एवं भगवान परशुराम प्राकट्योत्सव अत्यंत शुभ, सिद्ध एवं सर्वकल्याणकारी पर्व होने के कारण सुबह से ही लोगों ने पूजा अर्चना की तथा एक दूसरे को शुभकामनाएं दी। वहीं सुरक्षा की दृष्टि से पुलिस बल तैनात किया गया था। कोतमा में भगवान परशुराम प्राकट्योत्सव पर विप्र बंधुओं ने ठाकुर बाबा प्रांगण में भगवान परशुराम का पूजन उपरांत कन्या भोज का आयोजन किया गया।
कथाओं के अनुसार भगवान परशुराम का जन्म ब्राह्मण कुल में ऋषि
जमदग्नि और माता रेणुका के पुत्र थे। धार्मिक ग्रंथों में बताया जाता है कि ऋषि
जमदग्नि सप्त ऋषियों में से एक थे। ऐसा किवंदतियां प्रचलित हैं कि भगवान परशुराम
का जन्म 6 उच्च ग्रहों के योग में हुआ था, जिस कारण वे अति
तेजस्वी, ओजस्वी और पराक्रमी थे। इनके बारे में
किए वर्णन के अनुसार प्राचनी काल में एक बार इन्होंने अपने पिता की आज्ञा पर अपनी
माता का सिर काट दिया था। परंतु बाद में अपने पिता से वरदान के रूप में उन्हें
जीवित करने का वचन मां को पुन: जीवित कर लिया था। इसी प्रकार जब परशुराम ने
क्षत्रियों को मारना बंद कर दिया, तो उन्होंने खून से
सना अपना फरसा समुद्र में फेंक दिया, इससे समुद्र इतना
डर गया कि वह फरसा गिरने वाली जगह से बहुत पीछे हट गये समुद्र के पीछे हटने से जो
जगह बनी वो केरल बना, इसी मान्यता के आधार पर केरल में
परशुराम की पूजा की जाती है। शस्त्रविद्या के महान गुरु थे। उन्होंने भीष्म, द्रोण व कर्ण को शस्त्रविद्या प्रदान की थी। शस्त्रो में अवशेष
कार्यो में कल्कि अवतार होने पर उनका गुरुपद ग्रहण कर उन्हें शस्त्रविद्या प्रदान
करना भी बताया गया।
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