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बुधवार, 3 नवंबर 2021

कोरोना ने छीनी घर की खुशियां,दीपावली पर बहुत याद आएंगे

कोरोना ने दिए गहरा जख्म: पर्व में रहती थी कभी रौनक अनूपपुर। कोरोना की जंग लड़ते लड़ते आखिर वे जिंदगी की जंग हार गए। कहीं पूरा परिवार बीमार तो कहीं कई महीने अस्पताल में परेशानियों के बीच समय बीत गया। कई आंखों के सामने दम तोड़ गए तो कोई ठीक होने के बाद उम्मीद बंधाकर बादा तोड़ गए। इस दौरान एक ही परिवार में एक से अधिक मौतों ने भी शहर को भी अंदर तक हिला दिया, कोई पिता और बेटा था तो कोई भाई। कोई भाई-बहन थे तो कोई मां-बेटी। कोरोना के भयावह काल में इन परिवारों को वो जख्म मिले, जिन्हें पूरी जिंदगी भूल नहीं पाएंगे। जहां पूरी दुनिया कोरोना के इस ताडंव के बीच घोर अंधेरे में लिपटी हुई थी, वहीं कोरोना ने इन परिवारों की खुशियों को भी चोट पहुंचाई। ऐसा दर्द दे दिया जो हर दर्द से गहरा था। आज आसपास के घरों में दीपावली के दीप जलेंगे, खुशियां बिखरेगी, लेकिन उन परिवारों में आज भी उनके जाने का गम दीपावली की खुशियों पर भारी होगा, क्योंकि इस दीपावली पर वो बहुत याद आएंगे...कोरोना ने उनके घर की खुशियां छीनी है, पर्व में उनके रहते, रहती थी कभी रौनक। जाने के गम भुला नहीं पा रहे हैं परिवारजन अनूपपुर के स्थानीय नागरिक रामचंद्र नायडू का 6 जून को निधन हो गया था। 13 अप्रैल को वह जिला चिकित्सालय में कोरोना जांच कराने के लिए गए हुए थे, जहां से आने के बाद ही उनकी तबीयत बिगडऩे लगी। जिसके बाद उन्हें इलाज के लिए जिला चिकित्सालय में दाखिल कराया गया जहां कोरोना रिपोर्ट पॉजिटिव पाए जाने के बाद इलाज के दौरान ही वह ब्लैक फंग्स बीमारी के शिकार हो गए। जिसकी जांच व उपचार के लिए उन्हें रायपुर ले जाया गया जहां उपचार के दौरान ही 6 जून को उनकी मौत हो गई । श्री नायडू अपने पीछे पत्नी रमा नायडू व एक बेटे को छोड़ गए हैं। परिवार पर तो उनके जाने के बाद जैसे दु:खों का पहाड़ टूट पड़ा है। दीपावली का पर्व प्रतिवर्ष वह अपने बेटे के साथ मनाने थे, लेकिन इस दीपावली उन्हें अपने पिता और पति को खोने का गम सता रहा है। परिजनों को अकेला छोड़ कर चले गए कोरोना काल के दौरान संक्रमित होने के बाद बिजुरी निवासी हजारी लाल केवट अपने पीछे भरा पूरा परिवार छोड़ कर चले गए है। 57 वर्षीय हजारीलाल वार्ड क्रमांक 13 कुरजा निवासी थे। पुत्र पुरुषोत्तम केवट ने बताया कि 22 अप्रैल को खांसी तथा बुखार आने पर चिकित्सालय ले जाया गया जहां से उन्हें पॉजिटिव रिपोर्ट आने पर जिला चिकित्सालय में उपचार के लिए दाखिल किया गया। लेकिन उपचार के दौरान 10 दिनों के बाद उनकी मौत हो गई। वह शुगर की बीमारी से भी पूर्व से ग्रसित थे, वे कुरजा कॉलरी में कार्यरत थे। अपने पीछे चार बेटी तथा दो बेटों का भरा पूरा परिवार छोड़ गए हैं। परिवार के मुखिया होने के कारण सभी की जिम्मेदारी उन्हीं के ऊपर थी। दीपावली के मौके पर वह परिवार के सदस्यों के बीच हंसते हुए खुशियां मनाते थे। उनकी मौत पर सहायता के रूप में एसईसीएल के द्वारा आर्थिक सहायता प्रदान की गई है, लेकिन अभी तक अनुकंपा रोजगार प्रदान नहीं किया गया है।

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