अनूपपुर। सिंधु समाज के नववर्ष की शुरुआत इनके प्रमुख त्योहार (चेटीचंड) आराध्य देवता भगवान झूलेलाल के जन्मोत्सव के रूप में मनाया 10 अप्रैल को जिला मुख्यालय अनूपपुर सहित कोतमा में धूमधाम से मनाया गया। इसे झूलेलाल जयंती के नाम से भी जाना जाता हैं। भगवान झूलेलाल का जन्म सद्भावना और भाईचारा बढ़ाने के लिए हुआ था। सिंधी समाज के लोग सुबह से गुरूद्वारा में भगवान झूलेलाल की विधि विधान से पूजा अर्चना की गई इसे बाद भण्डारा का आयोजन किया गया। शाम को भगवान झूलेलाल की शोभायात्रा पूरे शहर में निकाल कर मड़फा तलाब में विसर्जन किया गया।
सिंधी समाज के लोग 10 अप्रैल की सुबह से गुरूद्वारा में भगवान झूलेलाल की विधि विधान से पूजा अर्चना कर भण्डारे
का प्रसाद लोगो को खिलाया। शाम को भगवान झूलेलाल की शोभायात्रा पूरे शहर में महिला
शक्तियों ने डांडिया खेलते हुए भगवान झूलेलाल के भजन गाते निकाले रहें। नगर भ्रमण
के दौरान पूरे रास्ते में फूल की पंखुड़ियों से शोभायात्रा का स्वागत किया गया। इसके
बाद सामतपुर के मड़फा सरोवर मे विसर्जन के बाद कार्यक्रम समाप्त होगा।
महत्व और कथा
धार्मिक मान्यता है कि संत झूलेलाल वरुण देव के अवतार हैं। चेटीचंड
के दिन भगवान झूलेलाल की पूजा से सुख, समृद्धि का वरदान
मिलता है और व्यापार में कभी कोई रुकावट नहीं आती। उपासक भगवान झूलेलाल को
उदेरोलाल, घोड़ेवारो, जिन्दपीर, लालसाँई, पल्लेवारो, ज्योतिनवारो, अमरलाल आदि नामों से भी पूजते हैं।
भगवान झूलेलाल ने इसलिए लिया था अवतार
संवत् 1007 में पाकिस्तान में सिंध प्रदेश के ठट्टा नगर में
मिरखशाह नामक एक मुगल सम्राट राज्य करता था. उसने जुल्म करके हिंदू आदि धर्म के
लोगों को इस्लाम स्वीकार करने पर मजूबर कर दिया. उसके आतंक से तंग आकर सभी ने
सिंधू नदी के किनारे एकत्रित होकर भगवान का स्मरण
किया. भक्तों की कड़ी तपस्या के परिणाम स्वरूप नदी में मछली पर सवार एक
अद्भुत आकृति नजर आई और फिर ठीक सात दिन बाद चमत्कारी बालक ने श्रीरतनराय लोहाना
के घर जन्म लिया, यही भगवान झूलेलाल कहे गए।
कोतमा में भगवान झूलेलाल मनाया गया प्रकृट्यत्सव
कोतमा में भगवान झूलेलाल का प्रकृट्यत्सव धूमघाम से मनाया गया। इस अवसर
पर कोतमा नगर में शोभा यात्रा निकल गई। धार्मिक मान्यता अनुसार भगवान झूलेलाल का जन्म, अत्याचारी शासक के जुल्मों से बचाने के लिए उनका जन्म हुआ था
सिंधी में चैत्र के महीना को चैत कहा जाता है। जब चैती चैत्र के दौरान जब अमावस्या
के बाद पहली बार चंद्रमा दिखाई देता है तो इसे चेटीचंड कहा जाता है। सिंधी मान्यता अनुसार इसी तिथि पर सिंधी समाज के आराध्य देव
भगवान झूलेलाल जी का जन्म भी हुआ था सिंधी समाज के साथ लोग इसे बड़े ही धूमधाम के
साथ मानते हैं। इन दिन से सिंधी नव वर्ष की शुरुआत भी मानी जाती है। यह पर्व हर
साल चैत्र शुक्ल पक्ष की द्वितीया तिथि को मनाया जाता है। कोतमा नगर में सिंधी
समाज द्वारा भगवान झूलेलाल की शोभायात्रा निकली गई। इस दौरान प्रदेश के राज्यमंत्री
स्वतंत्र प्रभार दिलीप जायसवाल भी शामिल होकर भगवान झूलेलाल का आशीर्वाद लिया। शोभायात्रा
के बाद सिंधी धर्मशाला में लंगर का आयोजन किया गया जिसमें नगर के सभी धर्म के
लोगों ने बढ़-कर हिस्सा लिया।
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