अनूपपुर। प्रदेश में आगामी दिनो में २४ विधानसभा में उप चुनाव होने है जिसमें
अनूपपुर विधानसभा भी शमिल है। जहां भाजपा के कांग्रेस से आये बिसाहूलाल सिंह का
मुकाबला कांग्रेस से है जिन्हे अभी अपना प्रत्यासी तय करना है। राष्ट्रीय कांग्रेस
पार्टी को अपने ही दल के कद्दावर जनाधार वाले नेताओं की अपमानजनक उपेक्षा भारी पड़
गई। 2003 से 2018 तक भारतीय जनता पार्टी ने ऐसा कोई कार्य नहीं किया जो जनता
विरोधी हो। सुश्री उमा भारती,
बाबूलाल गौर के बाद मुख्यमंत्री बनाए
गये शिवराज सिंह चौहान की सरलता,
विनम्रता,
सुलभता
पार्टी की बड़ी ताकत है। 2018 के पूर्व उनके विरुद्ध माई के लाल वाली साजिश की गई।
जिसके बाद सपाक्स ने एक मोहरा पार्टी की तरह सामान्य वर्ग के कुछ मतों को भाजपा से
तात्कालिक रुप से अलग किया। दूसरा,
टिकट वितरण में कुछ विधानसभाओं में की
गयी चूक से यदि चौहान बच जाते तो उन्हे पन्द्रह माह का वनवास ना भोगना पड़ता।
विभिन्न एजेंसियों के सुझाव को नकार कर अपने मन की कर लेना जनता को रास नहीं आया।
भाजपा नेता
मनोज द्विवेदी का कहना है कि पन्द्रह साल बाद सत्ता पर काबिज कांग्रेस ने अनूपपुर
के कद्दावर विधायक, कई बार के कैबिनेट मंत्री बिसाहूलाल सिंह सहित ऐंदल सिंह
कंसाना सहित अन्य वरिष्ठ नेताओं को सत्ता से दूर रखते हुए उन्हे लगातार उनके ही
क्षेत्र में उपेक्षा का शिकार बनाया।
पूर्व
केन्द्रीय मंत्री स्व. दलवीर सिंह (जिन्होंने अजीत जोगी के पांव यहाँ जमने के पहले
ही उखाड़ दिये थे) इंदिरा गांधी, राजीव गांधी के समकालीन कद्दावर जनजातीय
नेता रहे हैं। उनके बाद जनजातीय समाज में विंध्य तथा महाकौशल प्रांत में बिसाहूलाल
सिंह के कद का एक भी नेता कांग्रेस में नहीं रहा।
2018 के
चुनाव मे भाजपा प्रत्याशियों (ना कि भाजपा) से जनता तथा दल के ही लोगों की नाराजगी
के चलते कांग्रेस कोतमा, पुष्पराजगढ,अनूपपुर में
जीत सकी। यह कांग्रेस की जीत से अधिक भाजपा प्रत्याशियों की हार इसलिए मानी गई
क्योंकि समूचे विंध्य क्षेत्र में अजय सिंह राहुल समेत एक भी प्रत्याशी कांग्रेस
जिता नहीं पाई।
अनूपपुर
विधायक बिसाहूलाल सिंह को मंत्री बनने से रोकने के लिये अलग - अलग कारणों से
पुष्पराजगढ़ विधायक फुन्देलाल सिंह तथा कोतमा विधायक सुनील सराफ ने हाथ मिला लिया।
दिग्विजय सिंह तथा कमलनाथ ने भी अपने - अपने अहं एवं स्वार्थ के लिये बिसाहूलाल
सिंह को मंत्री नहीं बनाया। पन्द्रह साल बाद सत्ता में आई कांग्रेस की यह बड़ी
रणनीतिक चूक थी। रही सही कसर बिसाहूलाल के प्रति पुष्पराजगढ़ एवं कोतमा विधायकों
के अपमानजनक व्यवहार ने पूरी कर दी।
अमरकंटक में
मुख्यमंत्री कमलनाथ,दिग्विजय सिंह सहित
तमाम मंत्रियों की उपस्थिति में आयोजित मंचीय कार्यक्रम में पुष्पराजगढ़
विधायक फुन्देलाल सिंह की बिसाहूलाल पर अपमानजनक टोकाटाकी ने मानो ताबूत में
अन्तिम कील ठोंकने का काम कर दिया। अमरकंटक नर्मदा महोत्सव 2020 के शुभारंभ अवसर
पर मंच मे उपेक्षित किनारे बैठे बिसाहूलाल सिंह को स्वत: मुख्यमंत्री ने अपने पास
बुलाकर बैठाया तथा उनसे वे स्वंय चर्चा कर रहे थे। माईक पर भाषण दे रहे फुन्देलाल
को यह इतना नागवार गुजरा कि उन्होंने मंच पर ही हजारों जनता के सामने बिसाहूलाल को
लताड़ लगा दी। इस असंस्कारित आचरण से कमलनाथ, दिग्विजय
सिंह,उपस्थित
हजारों लोग तथा बाद में जिसने भी सुना वह सभी हतप्रभ रह गये। सत्तर साल के
बिसाहूलाल सिंह का मंचीय अपमान कांग्रेस, भाजपा सहित अन्य राजनैतिक- गैर
राजनैतिक लोगों को अच्छा नही लगा।
भारतीय जनता
पार्टी के प्रदेश उपाध्यक्ष तथा अनूपपुर मे बिसाहूलाल के चिर प्रतिद्वंद्वी रामलाल
रौतेल ने इस पर कड़ी प्रतिक्रिया दी तथा कहा कि भले ही बिसाहूलाल कांग्रेस से मेरे
प्रतिद्वंद्वी हैं. लेकिन फुन्देलाल का यह सार्वजनिक आचरण उचित नहीं है। यदि ऐसा
भाजपा के मंच पर हमारा नेता कर जाता तो अब तक कार्यवाही हो गयी होती। आश्चर्यजनक
तरीके से दिग्विजय सिंह, कमलनाथ या किसी अन्य शीर्ष नेता ने
फुन्देलाल के आचरण की कोई सार्वजनिक निंदा नहीं की। लेकिन अखबारो में इसकी कड़ी
प्रतिक्रिया हुई।
बिसाहूलाल
सिंह 1980 से कांग्रेस के विधायक रहे हैं। दिग्विजय सिंह के साथ उनके दोनो
कार्यकाल में लोकनिर्माण, खनिज, अनुसूचित
जनजाति, ऊर्जा जैसे महत्वपूर्ण विभाग के कैबिनेट मंत्री रहे हैं। मप्र
में कांग्रेस के कद्दावर जनजातीय नेताओं में उनकी गिनती होती रही है। अत्यंत सरल,सौम्य,
विनम्र,
हंसमुख
होने के बावजूद प्रदेश के सामाजिक ताने बाने की उन्हे गहरी समझ रही है।
पुष्पराजगढ़ में जनजातीय समाज के एक आयोजन में कुछ वर्ष पूर्व अलावा सहित गोंगपा,
कांग्रेस,
भाजपा,
सपा,
बसपा,
वाम
दलों से जुड़े समाज के नेताओं के जमावड़े के बीच कुछ लोगों ने सामान्य वर्ग के
विरुद्ध जहर उगलना शुरु किया तो बिना बुलावे के ही बिसाहूलाल सिंह मंच पर जा चढ़े
और उन्होंने सामाजिक विद्वेष फैलाने के लिये मंच से ही जमकर खिंचाई की तथा लानत
मलानत कर दी थी।
बिसाहूलाल
सिंह विंध्य तथा महाकौशल प्रांत में आदिवासी अस्मिता के बड़े प्रतीक रहे हैं।
अपने ही दल
के नेताओं तथा बहुत कनिष्ठ विधायकों के हाथों पन्द्रह माह तक अपमान का कड़वा विष
पीने के बाद टूटे हुए मन से कांग्रेस को तिलांजलि दे दी। बिसाहूलाल का कांग्रेस
छोडऩा पार्टी के लिये गहरा झटका है। हताश परेशान कांग्रेस अब उन पर बिकाऊ होने का
आरोप लगा रही है। जनजातीय समाज को जाने अनजाने अपमानित करने का यह कार्य भी
कांग्रेस के विरुद्ध जाता दिख रहा है। बिसाहूलाल को बिकाऊ बतलाए जाने से जनजातीय
समाज मे व्यापक आक्रोश है। हाल फिलहाल के वर्षों में इस नुकसान की भरपाई करता कोई
नहीं दिखता। कांग्रेस उन्होंने तब छोड़ा जब उसकी सरकार थी। शिवराज सिंह चौहान की
उपस्थिति में डंके की चोट पर कांग्रेस छोड़कर उन्होंने भाजपा की सदस्यता ली है। यह
आने वाले वर्षों मे भाजपा को बहुत ताकत देने वाली है। यद्यपि भारतीय जनता पार्टी
में फग्गन सिंह कुलस्ते, ओमप्रकाश धुर्वे, रामलाल रौतेल,
ज्ञानसिंह,
जयसिंह
मरावी, मीना सिंह तथा हिमाद्री सिंह जैसे जनजातीय नेता हैं। बिसाहूलाल
सिंह के भाजपा में आने से कांग्रेस 15 साल पीछे चली गयी है। जनजातीय अस्मिता को
उपेक्षित- अपनानित करने का आरोप उस पर
हमेशा लगता रहेगा। भाजपा ने बिसाहूलाल सिंह को हाथों हाथ लिया है। संभव है कि
शीघ्र वे मंत्री बनाए जाएं। उप चुनाव में भी उनके मुकाबले का कोई नेता कांग्रेस के
खेमे में अभी तो नहीं ही है। जिसके कारण चुनावी तस्वीर एकतरफा जाती दिख रही है।