इंगांराजविवि में धारा 370 पर राष्ट्रीय कार्यशाला आयोजित, कई पहलुओं पर चर्चा हुई
अनूपपुर, 26 अगस्त। इंदिरा गांधी राष्ट्रीय जनजातीय विश्वविद्यालय
अमरकटंक के तत्वावधान में राष्ट्र निर्माण
और धारा 370 विषय पर एक दिवसीय
कार्यशाला सोमवार को आयोजित की गई। इस अवसर पर प्रमुख शिक्षाविद् प्रो.अशोक कुमार
कौल ने कश्मीर को भारत का अभिन्न अंग बताते हुए कश्मीरियत के भारत से जुड़ाव की
ऐतिहासिक पृष्ठभूमि को सभी के समक्ष रखा। अन्य वक्ताओं ने धारा 370 के हटने के बाद कश्मीर का भारत के साथ
भौगोलिक और सांस्कृतिक एकीकरण संभव होगा और कश्मीर में विकास की एक नई बयार बहेगी।
प्रो.कौल ने कार्यशाला का उद्घाटन करते हुए
कहा कि कश्मीर प्राचीनकाल से राष्ट्रीयता का एक प्रतीक बना हुआ है। शीतयुद्घ के
दौरान जब अमेरिका ने पाकिस्तान को महत्व देना शुरू किया तो उसने कश्मीर मुद्दे को
अंतर्राष्ट्रीय मंचों पर उठाना शुरू कर दिया। इस दौरान कश्मीर में पहले भाषा को
खत्म करने का प्रयास किया गया फिर हिंदू-मुस्लिम साझा संस्कृति को खत्म किया गया।
जब वहां के मूल निवासी ही वहां नहीं रह पाए तो फिर किस कश्मीरियत का मुद्द उठाया
जाता है। उन्होंने कहा कि नरसंहार 1990 में किया गया तब अंतर्राष्ट्रीय कौम क्यों चुप रही। उनका कहना था कि
कश्मीर का भविष्य अब समृद्घ भारत के साथ है न कि असफल राष्ट्र के रूप में उभर रहे
पाकिस्तान के साथ। उन्होंने कश्मीर की ऐतिहासिक पृष्ठभूमि और इसमें कश्मीरियत की
भावना के बारे में भी विस्तार से जानकारी दी।
इंगांराजविवि के राजनीति शास्त्र विभागाध्यक्ष
प्रो.नरोत्तम गान ने कहा कि वर्तमान में कश्मीर के जिस इतिहास की बात की जा रही है
वो 200 वर्ष ही पुराना है जबकि
कश्मीर का भारत से जुड़ाव 5000
वर्ष से अधिक पुराना है। कश्मीर का नाम महर्षि कश्यप के नाम पर पड़ा। कश्मीर
प्रारंभ से ही भारतीय ज्ञान और संस्कृति का केंद्र रहा है जिसे भारत का अविभाज्य
अंग माना जाता है। ऐसे में धारा 370
का हटना कश्मीर को भारत के साथ सांस्कृतिक रूप से पुन: जुडऩे के लिए प्रेरित
करेगा। कुलपति प्रो. टी.वी.कटटीमनी ने समसामयिक विषयों पर निरंतर कार्यशालाएं
आयोजित करने के लिए शिक्षकों को प्रेरित किया। उनका कहना था कि संविधान रचियता
डॉ.बी.आर.अंबेडकर ने दूरदर्शिता का परिचय देते हुए धारा 370 को अस्थायी रूप से संविधान का हिस्सा बनाया था जिसे
वर्तमान में हटाकर कश्मीर को शेष राष्ट्र के साथ जोडऩे का सराहनीय प्रयास किया गया
है। कार्यशाला में बड़ी संख्या में शिक्षकों और छात्रों ने भाग लिया। मूल रूप से
कश्मीर के रहने वाले प्रो.कौल की कश्मीर पर कई किताबें और शोधपत्र प्रकाशित हो
चुके हैं। वह बनारस विश्वविद्यालय के वरिष्ठ प्रोफेसर रहे हैं।
राजेश शुक्ला
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें