हजारों की संख्या में बांध से प्रभावितों ने 4 किमी पैदल रैली निकाल जताया विरोध
अनूपपुर। नर्मदा नदी पर प्रस्तावित अपर नर्मदा परियोजना के तहत बाध बनाए जाने की प्रकिया शुरू होते ही विरोध के स्वपर उठने लगे हैं। बुधवार को कांग्रेस ने पुष्पराजगढ़ विधायक फुंदेलाल सिंह मार्को एवं कांग्रेस जिला अध्यदक्ष रमेश सिंह के नेतृत्व में अपर नर्मदा किसान संघर्ष मोर्चा पुष्पराजगढ़ के हजारो प्रभावितों ने राष्ट्रपति, राज्यपाल, प्रधानमंत्री एवं मुख्यमंत्री के नाम 14 सूत्रीय मांगो का ज्ञापन प्रभारी कलेक्टर अमन वैष्णव को सौप कर प्रस्तावित अपर नर्मदा परियोजना निरस्त करने की मांग की। इसके पूर्व कांग्रेस के नेतृत्व में अपर नर्मदा परियोजना निरस्त करने एवं भाजपा सरकार मुर्दाबाद के नारे लगाते हुए 4 किलोमीटर पैदल मार्च करते हुए कलेक्ट्रेट पहुंचे। इस दौरान छग के बलौदा बाजार की घटना से सबक लेते हुए संयुक्त कलेक्ट्रेट परिसर में भारतीय नागरिकता संहिता की धारा 163 प्रतिबंधात्मक आदेश लागू थी जहां पुलिस अधीक्षक जितेन्द्र सिंह पवॉर एवं इसहाक मंसूरी के निर्देश में परिसर के अंदर कड़ी सुरक्षा व्यवस्था की गई थी।
अनूपपुर नर्मदा नदी पर प्रस्तावित अपर नर्मदा परियोजना अनूपपुर एवं डिण्डौारी जिले की सीमा में ग्राम शोभापुर में बनाया जा रहा हैं। जिससे जिले की 27 ग्राम पंचायतों के लगभग 6.7 हजार से अधिक परिवार प्रभावित होगा, वहीं 67 हजार से अधिक आदिवासी का विस्थापित होगे। जहां नर्मदा नदी का बांध बनाने के लिए प्रस्तावित है उसके आसपास सैकड़ो एकड़ की भूमि पर हो खेती हो रहीं हैं।
विधायक फुंदेलाल सिंह मार्को ने बताया कि नर्मदा नदी देशवासियों की धार्मिक वा आस्था की नदी है, लेकिन म.प्र. नर्मदा घाटी विकास प्राधिकरण द्वारा अपर नर्मदा परियोजना नर्मदा नदी के उद्गम से मात्र 40 किमी नीचे बनाया जा रहा है। बांध निर्माण से वैज्ञानिक मत अनुसार नर्मदा उद्गम के जल स्त्रोत बंद हो जाते है, जिस पर परियोजना निर्माण के पूर्व जल स्त्रोत का विस्तृत अध्यन कराया जाए। अपर नर्मदा बांध शोभापुर परियोजना डिंडौरी व अनूपपुर जिले के पुष्पराजगढ़ में वर्ष 2024-25 में निर्माण के लिए स्वीकृत है। आदिवासियों की संस्कृति, एैतिहासिक विरासत, रूढ़ीप्रथायें, परम्परायें जिनके संरक्षण के लिए अरबों रूपए खर्च किए जाते है। लेकिन परियोजना निर्माण से सब नष्ट हो जाएगा। नर्मदा नदी उद्गम स्थल अमरकंटक अनूपपुर जिले से डिंडौरी में प्रवेश करती है।
विकासखंड पुष्पराजगढ़ एवं जिला डिंडौरी पांचवी अनुसूची क्षेत्र है। जहां राज्यपाल के आधिनस्थ है, पांचवीं अनुसूचि के साथ ही क्षेत्र में वन अधिकार मन्यता कानून व पेसा नियम लागू है। कोई भी परियोजना निर्माण से पहले यहां की ग्राम सभाओं की सहमति अनिवार्य है, जो नर्मदा घाटी विकास प्रधिकरण द्वारा नही ली गई है, जो अनुच्छेद 141 का उल्लंघन है। सर्वोच्च न्यायालय के विभिन्न आदेशों के बाद भी म.प्र. शासन, जिला प्रशासन संविधान एवं सर्वोच्च न्यायालय के आदेशों के विपरीत कार्य कर लाखों आदिवासियों का विस्थापन कर रही है, विभाग प्रमुखों पर कार्यवाही की जाये। अनुसूचित जनजातियों की आजीविका का मूल स्त्रोत कृषि के साथ वन उपज है, लेकिन इस परियोजना से जैव विविधता नष्ट हो जाएगी। नर्मदा परियोजना से प्रभावित क्षेत्र की कृषि भूमि अधिक उपजाऊ है, जिससे कृषि मंडी को सबसे अधिक राजस्व प्राप्त होता है, परियोजना निर्माण से समस्त उपजाऊ भूमि डूब जाएगी, वन अधिकार अधिनियम का नर्मदा परियोजना निर्माण में प्रक्रिया का पालन किए जाने, भूमि अधिक्रहण, पुनर्वास और पुनस्र्थापना में उचित प्रतिकर और पारदर्शिता का अधिकार अधिनियम 2013 के तहत स्थापित स्वशासन संस्थाओं और ग्राम सभाओं के परामर्श से भूमि अधिग्रहण के लिए मानवीय, सहभागी, सूचित और पारदर्शी प्रक्रिया सुनिश्चित करना है, आरएफसीटीएलएआरआर अधिनियम 2013 की धारा 41 कंडिका 1,2,3 के तहत जिला प्रशासन राजस्व विभाग व नर्मदा घाटी विकास प्राधिकरण ने अधिनियम व संविधान के विरूद्ध कार्य किया है, जो की ग्राम सहमति पत्र नर्मदा घाटी विकास प्राधिकरण द्वारा दस्तावेज में संलग्र किया गया है वह फर्जी सहमति है।
नर्मदा परियोजना निर्माण स्थल के समीप करोड़ो आदिवासियों के अराध्य देवी करबेमटटा करमश्री देवी स्थल है, इस स्थल के चारों ओर जलभराव हो जाएगा साथ ही ग्राम पंचायत बिलासपुर में स्थित गोंड़ जनजाति के धर्मगुरू पारि कुपार लिंगों का तपस्वी लिंगो पहाड़ है साथ ही जैव विविधता महत्वपूर्ण सिवनी संगम में एक मात्र राज्य में कल्पवृक्ष स्थित है, जो की जल भराव के कारण सब डूब जाएगा।
विधायक फुंदेलाल ने बताया कि नर्मदा परियोजना पर तुरंत रोक लगाई जाए, आदिवासी समाज बांध का विरोध नही करती बल्कि छोटे बांध बनाए जाए, लिफ्ट ऐरिकेशन सिस्टम से सिंचाई सुविधाओं का निर्माण हो प्रत्येक ग्राम स्तर पर जल संरक्षण के तहत प्रोजेक्ट निर्माण कार्य तैयार किया जाए, सामाजिक एवं आर्थिक नुकसान कम हो, संस्कृति रीति रिवाज पंरपराएं विद्यमान रहे, धार्मिक आस्था कायम रहे तथा भारत के संविधान का उल्लंघन ना हो, सर्वोच्च न्यायालय के आदेशों का पालन हो।