अनूपपुर। भारतीय परम्परा के कई अवलंबन है, पहला अवलंबन है परिचर्चा। इस परिचर्चा के दो सामान्य बिम्व है पंचायत और पनघट प्राचीन भारत में पनघट भी जन में होने वाली हलचल या सूचनाओं का केन्द्र थे। सबसे सुलभ प्रचलित सूचना का माध्यम हमारे यहॉ पंचांग था जिसमें मौसम, नक्षत्र, राशि, व्रत, त्यौहार हर प्रकार की सूचना हमें मिल जाती थी यह सूचना सम्प्रेशण का सबसे प्रभावी, वैज्ञानिक माध्यम था। यह प्राचीन भारत में और आज भी प्रासंगिक है। उक्त आशय का विचार सोमवार को इंदिरा गाँधी राष्ट्रीय जनजातीय विश्वविद्यालय अमरकंटक में संचार परम्पराओं की प्रासंगिकता'' विषय पर एक दिवसीय वेबिनार के आयोजन की अध्यक्षता कर रहे कुलपति प्रो.प्रकाशमणि त्रिपाठी ने कही। वेबीनार में प्रो.वी.के.मल्होत्रा, सदस्य सचिव, भारतीय सामाजिक विज्ञान अनुसंधान परिषद, नई दिल्ली,वेबिनार विषय विशेषज्ञ प्रो. संजीव भानावत, प्रो. अनिल अंकित राय, मनोज टिबडेवाल रहे।
कुलपति ने कहा जन सामान्य को आकाशवाणी द्वारा सूचना मिल जाती थी। स्वप्न विधान भी था। स्वप्न के माध्यम से भी संदेश पहुंचाये जाते है। ये आगत का बोध कराते हैं। ध्यान, अध्यात्म भी सूचना सम्प्रेषण का माध्यम है। सूचना बोधगम्य, ध्यानगम्य, प्रामाणिक होनी चाहिए। हमें शब्द का ध्यान रखना चाहिए। शब्द ब्रह्म में जहॉ हम शब्दों के माध्यम से सूचना भेजते हैं वहीं नाद ब्रह्म जिसमें वाद्ययंत्रों के माध्यम से सूचना व संदेश भेजे जाते थे। उन्होंने प्राचीन भारत में प्रचलित पॉच सूचना केन्द्रों परिचर्चा, पनघट, पंचायत, पत्र-पत्रांक और प्राचीन भारतीय वाडमय पर अपनी बात कही।
प्रो.वी.के.मल्होत्रा ने कहा कि संचार की सफलता तब मानी जाती है जब वह सम्प्रेषक से ग्रहीता तक उसी रूप में तथा प्रभावी रूप में पहुचता है। हमारी संचार परम्परा वसुधैव कुटुम्बकम पर आधारित है। भारत विश्व की सबसे पुरानी सभ्यताओं में से है। हमारी परम्पराए हमें बताती है कि हम संकट के समय में भी कैसे सुरक्षित रह सकते है। आभ्यान्तर संचार आध्यात्मिक संचार है जब हम स्वयं से बात करते हैं तो हम ईष्वर से बात करते हैं। भारतीय परम्परागत ज्ञान, हमारे रीति-रिवाज रामायण, महाभारत के विषय में भी अपनी बात रखी।
प्रो.संजीव भानावत ने कहा कि संचार की परम्परा धूमंतू जीवन से प्रारंभ होते हुए श्रुति, स्मृति से आगे बढ़ी। प्राचीन काल में शिलालेख लोककल्याण की बातों के सम्प्रेषण के लिए होते थे। धार्मिक संस्कारों द्वारा भी सामाजिक संचार को विकसित किया गया। प्रो. अनिल अंकित राय, मोतीहारी बिहार ने कहा कि हमारे यहां संचार की परम्पराएॅ जनहिताय और लोक कल्याणकारी रही है। वैदिक साहित्य संचारित परम्परा पर आधारित है। इन परम्पराओं का प्राचीन स्वरूप हम अषोक के शिलालेखों में देख सकते है। नचिकेता-यमराज के बीच हुए संवाद के विषय में भी बात की। मनोज टिबडेवाल ने कहा कि संचार ही जीवन है और सूचना ही शक्ति है। प्राचीन काल से वर्तमान काल तक संचार की विकास यात्रा के विषय में बात की और सामाजिक मीडिया के महत्व को भी बताया। वेबिनार में लगभग 850 से अधिक प्रतिभागियों ने अपना पंजीयन करवाया था। वेबिनार का संचालन एसोसिएट प्रोफेसर, पत्रकारिता एवं जनसंचार डॉ. मनीषा शर्मा ने किया।