800 प्रकरणों का हुआ निराकरण 1.85 करोड की राशि का अवार्ड पारित
अनूपपुर। मप्र राज्य विधिक सेवा प्राधिकरण जबलपुर के निर्देशानुसार एवं प्रधान जिला एवं सत्र न्यायाधीश एवं अध्यक्ष जिला विधिक सेवा प्राधिकरण माया विश्वलाल के मार्गदर्शन में 10 मई को जिला एवं सत्र न्यायालय अनूपपुर एवं तहसील सिविल न्यायालय कोतमा/राजेन्द्रग्राम सहित 14 खण्डपीठों में नेशनल लोक अदालत का आयोजन किया गया। जिसमे प्रीलिटिगेशन प्रकरण 328, कुल 800 प्रकरणों का निराकरण किया गया। इसमें कुल 1,85,90,517/-(एक करोड पचासी लाख नब्बे हजार पांच सौ सत्तह रूपयें) की राशि अवॉडिड की गई। वहीं जिला न्यायालय में पक्षकारों के मध्य आपसी सामंजस्य एवं राजीनामें के आधार प्रकरणों का निराकरण किया गया।
इस अवसर में प्रधान न्यायाधीश कुटुम्ब न्यायालय मनोज कुमार लढ़िया, द्वितीय जिला न्यायाधीश/संयोजक नेशनल लोक अदालत नरेन्द्र पटेल, प्रथम जिला न्यायाधीश प्रवीण पटेल, मुख्य न्यायिक दण्डाधिकारी चैनवती ताराम, सचिव जिला विधिक सेवा प्राधिकरण विनोद कुमार वर्मा, सुधा पाण्डेय न्यायिक मजिस्ट्रेट, बाबी सोनकर न्यायिक मजिस्ट्रेट, सृष्टि साहू न्यायिक मजिस्ट्रेट, जिला विधिक सहायता अधिकारी बृजेश पटेल, जिला अधिवक्ता बार संघ से अध्यक्ष संतोष सिंह परिहार, सचिव राम कुमार राठौर, शासकीय अभिभाषक पुष्पेन्द्र कुमार मिश्रा, लीगल एड डिफेंस काउंसेल संतदास नापित, जिला अधिवक्ता संघ के समस्त अधिवक्तागण खण्डपीठ के सुलहकर्ता सदस्य, पैरालीगल वालेंटियर्स तथा जिला न्यायालय के अधिकारी व कर्मचारी उपस्थित रहें।
नेशनल लोक अदालत में जिले में 14 खण्डपीठों का गठन किया गया। जिसमे जिला स्तर पर 08 खण्डपीठ, तहसील सिविल न्यायालय कोतमा हेतु 03 खण्डपीठ एवं राजेन्द्रग्राम हेतु 03 खण्डपीठ में आपराधिक 74, चैक बाउंस 23, क्लेम प्रकरण 06, वैवाहिक प्रकरण 20, विद्युत प्रकरण 75 एवं अन्य 265 एवं प्रीलिटिगेशन प्रकरण 328, इस प्रकार कुल 800 प्रकरणों का निराकरण किया गया। जिसमें कुल 1,85,90,517/-(एक करोड पचासी लाख नब्बे हजार पांच सौ सत्तह रूपयें) की राशि अवॉडिड की गई।
पति-पत्नि राजी खुशी गये घर
पति रवि कुमार राठौर निवासी ग्राम चुरभटी द्वारा अपनी पत्नि से तलाक हेतु न्यायालय में प्रकरण प्रस्तुत किया था। नेशनल लोक अदालत में प्रधान जिला एवं सत्र न्यायाधीश द्वारा पति रवि कुमार राठौर एवं पत्नि निधी राठौर दोनों को दाम्पत्य जीवन निर्वाहन् करने की समझाईश दी गई। जिस पर दोनों पक्ष राजी हो गए। जिस पर जिला न्यायाधीश द्वारा प्रकरण समाप्त किया और न्यायाधीश ने दोनों पति-पत्नि पौधा दिया। दोनो राजी खुशी घर रवाना हुए।
बुजुर्ग दंपत्ति समझाईश के बाद एक साथ रहने को हुए राजी
बुजुर्ग दंपत्ति के मध्य विवाद होने से 66 वर्षीय पत्नि द्वारा 70 वर्षीय पति से भरण पोषण राशि दिलाये जाने हेतु न्यायालय में आवेदन प्रस्तुत किया था। जिस पर न्यायालय द्वारा आवेदिका के पक्ष में आदेश पारित कर उसे प्रतिमाह 1800/-रूपयें भरण-पोषण राशि अनावेदक से दिलाय जाने का आदेश पारित किया। जिसके उपरांत पति द्वारा वसूली प्रकरण न्यायालय में प्रस्तुत किया गया था। जिसके बाद पति कई वर्षो से भरण पोषण राशि अदा कर रहा था। वहीं 70 वर्षीय पति की दो पत्नियॉ थी, जिनमें एक पत्नी की भृत्यु हो चुकी थी, 66 वर्षीय पति कुंठी बाई उसकी दूसरी पत्नी थी। नेशनल लोक अदालत में संबंधित न्यायालय में दोनो पति-पत्नि उपस्थित हुए जिस पर खण्डपीठ के पीठासीन अधिकारी एवं सुलहकर्ता द्वारा दोनों को समझाईश दिए जाने पर राजीनामा कर दोनो साथ-साथ रहनेकी बात कहीं जिस पर न्यायालय द्वारा प्रकरण की कार्यवाही समाप्त किया और पति-पत्नि एक साथ राजी खुशी से घर चले गए।
गाँव का छह वर्षा पुरान विवाद सुलझा
जिले के तहसील कोतमा के ग्राम सकोला में छह वर्षो से चले आ रहें पुराने विवाद को लोक अदालत ने सुलझा दिया है, जिससे दो परिवारों के बीच की दुश्मनी अब मिट गई है और एक बार फिर शांति कायम हुई है। वर्ष 2019 में गांव के मामूली विवाद को लेकर शुरू हुआ था। मामला पुलिस और निचली अदालत तक पहुँचा, लेकिन न्याय की प्रक्रिया में हो रहीं देरी पर मामला लोक अदालत में में सुना गया और दोनों पक्षों को समझौते के लिए राजी किया। दोनों पक्ष पुरानी दुश्मनी को भुलाकर एक-दूसरे से गले मिले।
इस पर न्यायाधीश अमनदीप सिंह छाबड़ा ने कहा कि यह कार्य लोक अदालत के माध्यम से संभव हो सका"हमारा उद्देश्य सिर्फ कानूनी विवाद सुलझाना नहीं, बल्कि लोगों के दिलों को जोड़ना भी है।"इस तरह, लोक अदालत ने न सिर्फ एक वर्षों पुराने विवाद को सुलझाया, बल्कि गाँव में शांति और एकता की मिसाल भी पेश की।
धारा- 294, 323, 506, 342, 34 एवं 325 के तहत- वकैया, समयलाल उर्फ गुल्लू, प्रेमलाल और दुख्खू पर प्रकरण 2021 में दर्ज हुआ था। जिस पर नेशनल लोक अदालत में मुख्य न्यायिक दण्डाधिकारी चैनवती ताराम और पक्षकारों के अधिवक्ताओं के प्रयासों से दोनों पक्षों को समझाईश दी गई। चूंकि मामला गंभीर प्रकृति का नही था और सभी धाराएं राजीनामा योग्य होने से न्यायालय की अनुमति से उक्त प्रकरण में राजीनामा कराकर, सभी आरोपियों को उन पर लगे अपराध से उन्मुक्त किया गया।