मान्यता: आंवला के वृक्ष की पूजा करने से व्यक्ति के सभी पापों का होता हैं नाश
अनूपपुर। आंवला नवमी के अवसर पर आज मंगलवार को जिले भर में जगह-जगह
आंवला वृक्ष की पूजा की गई। महिलाएं परिवार के साथ पूजन करते हुए वृक्ष के नीचे
कथा श्रवण और वृक्ष की पूजा की। रक्षा सूत्र बांध फेरे लिए। आंवला वृक्ष में भगवान
विष्णु का वास होता है,इसलिए नवमी
तिथि पर पूजा होती है। लोग आंवला वृक्ष के नीचे बैठकर भोजन किया।
कार्तिक मास के
शुक्ल पक्ष के नौंवे दिन आंवला नवमी पर्व पर को अक्षय नवमी के नाम से भी जाना जाता
है। हिंदू धर्म में आंवला नवमी का भी विशेष महत्व है। इस दिन दान-धर्म का भी खास
महत्व है। आंवला नवमी 21 नवंबर के अवसर पर पूरे जिले में जगह-जगह आंवला वृक्ष की
पूजा कर महिलाएं परिवार के साथ पूजन सामग्री और खाने की चीजें लेकर पहुंची। वृक्षों
के नीचे कथा श्रवण और वृक्ष की पूजा की। रक्षा सूत्र बांध फेरे लिए। आंवला वृक्ष
में भगवान विष्णु का वास होता है,इसलिए नवमी तिथि पर पूजा होती है। लोग आंवला वृक्ष के नीचे बैठकर
भोजन करते हैं। जिला मुख्यालय अनूपपुर सहित पवित्र नगर अमरकंटक, राजेन्द्रग्राम, चचाई, जैतहरी, कोतमा, बदरा, पसान, बिजुरी, राजनगर, रामनगर सहित पूरे नगरीय
व ग्रमीण क्षेत्रों में आंवला वृक्ष की पूजा कर महिलाएं परिवार सहित वृक्ष के नीचे
भोजन किया। जिला मुख्यालय में सोन नदी के तट पर भगवान शिव मंदिर में लोगों ने आंवला
वृक्ष की पूजन कर नीचे बैठकर भोजन किया। वहीं पिकनिक का आनंद लिया।
मान्यता है कि इस
दिन दान आदि करने से पुण्य का फल इस जन्म में मिलता है। ग्रंथों में बताया गया है
कि इस दिन आंवला के वृक्ष की पूजा करने से व्यक्ति के सभी पापों का नाश होता है।
बता दें कि इस दिन आवंला के वृक्ष की पूजा करते हुए स्वस्थ रहने की कामना की जाती
है। इस दिन आंवला वृक्ष की पूजा आदि करने के बाद वृक्ष के नीचे बैठकर ही भोजन किया
जाता है। इस प्रसाद के रूप में आवंला खाया जाता है। इस दिन से सैर सपाटे को पिकनिक
की शुरुआत भी हो जाती है। लोग घर से बने पकवान लेकर आंवला के नीचे पहुंचते हैं और
परिवार के साथ दोस्तों के साथ बैठकर भोजन करते हैं तरह-तरह के पकवान लेकर यहां
बैठने से दिन अच्छा बीतता है। आपस में स्नेह भी देखने को मिलता है।
धार्मिक मान्यताओं
के अनुसार अक्षय नवमी के दिन आंवले के वृक्ष में भगवान विष्णु एवं शिवजी का निवास
होता हैं। आंवला नवमी के दिन इस वृक्ष के नीचे बैठने और भोजन करने से रोगों का नाश
होता है। शास्त्रों के अनुसार इस दिन किया गया पुण्य कभी समाप्त नहीं होता है। द्वापर युग की
शुरुआत कार्तिक शुक्ल नवमी को हुई थी, यह युगादि तिथि है। आज के ही दिन श्री विष्णु ने कुष्मांडक दैत्य
को मारा था। जिसके रोम से कुष्मांड-सीताफल की बेल निकली थी,इसीलिए इसे कुष्मांडक नवमी भी कहा जाता है।
यह प्रकृति के
प्रति आभार व्यक्त करने का भारतीय संस्कृति का पर्व हैं, क्योंकि आंवला पूजन पर्यावरण के महत्व को दर्शाता है, जागरूक करता है। प्रदूषण आदि से शरीर कि रक्षा करता है। इस दिन
आंवले के पेड़ का पूजन कर परिवार के लिए आरोग्यता व सुख -समृद्धि की कामना की जाती
है। इस दिन किया गया तप, जप, दान इत्यादि व्यक्ति को सभी पापों से मुक्त कर मनोकामनाओं की
पूर्ति करने वाला होता है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार अक्षय नवमी के दिन आंवले
के वृक्ष में भगवान विष्णु एवं शिवजी का निवास होता है। इस दिन इस वृक्ष के नीचे
बैठने और भोजन करने से रोगों का नाश होता है। शास्त्रों के अनुसार इस दिन किया गया
पुण्य कभी समाप्त नहीं होता है।